۱۸ تیر ۱۴۰۳ |۱ محرم ۱۴۴۶ | Jul 8, 2024
आयतुल्लाह यूसूफ़ मूसवी

हौज़ा / प्रस्तुति: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी जैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, आग़ा यूसुफ़ मूसवी सन १९०२ ई॰ मुताबिक़ सन १३२२ हिजरी में सरज़मीने “बडगाम” सूबा कश्मीर पर पैदा हुए , आपका शजरा सातवें इमाम हज़रत इमामे मूसा काज़िम तक ३७ ओर “हज़रत मीर सय्यद शमसुद्दीन मोहम्मद इराक़ी” तक चोदह सिलसिलों से पहुंचता है।

मोसूफ़ ने इबतेदाई तालीम अपने वालिद से हासिल की, उनके इनतेक़ाल के बाद सन १३५३ हिजरी में आला तालीम के लिए नजफ़े अशराफ़ चले गये ओर वहाँ जाकर आयतुल्लाह अबुल हसन इसफ़हानी, आयतुल्लाह ज़िआउद्दीन इराक़ी, आयतुल्लाह शेख़ मोहम्मद इसफ़हानी, आयतुल्लाह मीर अबुल हसन मिशकीनी, आयतुल्लाह सय्यद मोहसेनूल हकीम, आयतुल्लाह सय्यद जमाल मूसा गुलपाएगानि वगैरा जैसे जय्यद ओलमा से कस्बे फ़ैज़ किया। आपके असातेज़ा आपकी इल्मी इस्तेदाद ओर सलाहियत के क़ायल थे, नजफ़े अशरफ़ में एक मुद्दत तक क़याम करने के बाद कश्मीर वापस आ गये, ओर अपने भाई सय्यद अहमद की वफ़ात के बाद सन १३६४ हिजरी में कश्मीर के मरजा­ ए वक़्त क़रार पाए।

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तमाम लोग आपके इल्म, हिल्म, तक़वा, हुस्ने तदबीर,परहेज़गारी,दयानतदारी, बुज़ुर्गी, अज़मत, ओर ज़हानत के क़ायल थे, यहाँ तक के ओमरा, वोज़रा, सियासतदान, ओर ओलमा भी इस ज़ुमरे में शामिल हैं जिन में से: आयतुल्लाह सय्यद मोहसेनूल हकीम, आयतुल्लाह सय्यद अबुल हसन इसफ़हानी, आयतुल्लाह सय्यद महमूद शाहरूदी, आयतुल्लाह सय्यद इब्राहीम हुसैनी, आयतुल्लाह सय्यद हुसैन तबातबाई बुरुजर्दी, आयतुल्लाह सय्यद जमालुद्दीन गुलपाएगानी, अल्लामा आग़ा बुज़ुर्ग तेहरानी ओर अल्लामा सय्यद मोहसिन जलाली जैसे बुज़ुर्ग ओलमा आपकी शराफ़त, फ़ज़ीलत ओर इल्मी सलाहियत का एतराफ़ करते थे।

आग़ा यूसुफ़ मूसवी शियों के हुक़ूक़ के सिलसिले में आवाज़ बुलंद करते रहे, इसी लिए आपने क़ोमी फलाह व बहबूद के लिए “ अंजुमने शिआने जम्मू व कश्मीर” की दाग़ बेल डाली ओर ये तंज़ीम आपकी ज़ेरे निगरानी मज़हबे हक़्क़ा की तबलीग व तरक़्क़ी में मसरूफ़ रही, १७ रबीउल अव्वल  सन १३७० हिजरी में लोगों को इस्लामी उलूम सिखाने के लिए “मदरसे बाबुल इल्म” की बुनयाद डाली ओर उसी साल यहाँ तदरीस का सिलसिला शुरू हो गया, उसकी शाखें तमाम जम्मू व कश्मीर में खोली गईं ताके कोई भी शख्स दीनी तालीम से महरूम न रहे, आपने बाबुल इल्म की फ़लाह के लिए लाखों रूपये की मिल्कियत की ज़मीनें वक्फ कर दीं थीं,

इसके अलावा आपने “ कश्मीर यूनिवर्सिटी” के ओरियंटल फ़ेकल्टी” में शिया स्टूडेंट्स के लिए इमामया निसाब मंज़ूर करवाया, शहरी ओर देहाती इलाक़ों में मदरसों के अलावा “अंजुमने शरई” के तहत इमामबाड़े ओर मसाजिद भी तामीर कराये जिनमे से: इमामबाड़ा बडगाम ओर हसनआबाद की मरम्मत कराई, ओर इमामबाड़ा मीर गुंड, जामा मस्जिद बडगाम ओर ख़ानक़ाह जड़ी बल को अज़ सरे नो तामीर कराया, इलाक़ए जड़ीबल को अज़ सरे नो तामीर कराया, इलाक़ा जडीबल ओर बडगाम में ओक़ाफ की केई इमारतें तामीर कराईं, आपकी खिदमात को याद रखते हुए आपके नाम पर कई इदारे इस वक़्त काम कर रहे हैं जिनमें से: आयतुल्लाह यूसुफ़ मेमोरियल ट्रस्ट, आयतुल्लाह यूसुफ़ मरकज़ी इमामबारगाह बिमना ओर आयतुल्लाह यूसुफ़ मेमोरियल डिस्ट्रिक्ट बडगाम के अस्मा सरे फेहरिस्त हैं।

आग़ा सय्यद यूसुफ़ ने अपने घर पर शरई अदालत क़ायम की थी जहाँ शरई निज़ाम के तहत फैसले होते थे, ना फ़क़त शिया बल्कि अहले सुन्नत यहाँ तक के ग़ैर मुस्लिम भी उन फैसलों का एहतराम करते थे, बाज़ सरकारी अदालतें तो पेचीदा मामलात में उन्हीं की तरफ़ रुजू करती थीं, आप ना तो सरकारी ओहदे पर फाइज़ थे ओर ना ही सियासत से कोई सरोकार था लेकिन उसके बावजूद मुल्क के बड़े बड़े सियासतदान ओर सरकारी अफ़सर भी उनका बहुत एहतराम करते थे, कश्मीर के साबिक़ वोज़राए आला बख्शी ग़ुलाम मोहम्मद, ख्वाजा ग़ुलाम मोहम्मद सादिक़, सय्यद मीर कासिम ओर शेख़ मोहम्मद अब्दुल्लाह अकसरो बेशतर आपसे मुलाक़ात का शरफ़ हासिल करते थे।

इतनी मसरूफ़यात के बावजूद आपने तसानीफ व तालीफ़ात में नुमाया किरदार अदा किया आपके आसार में से: ईक़ाजुल इबाद, वसीलतुन निजात ओर सरमाये निजात के अस्मा क़ाबिले ज़िक्र हैं, इन किताबों के अलावा आपने “मजल्ला अल इरशाद” के नाम से एक माहनामा भी जारी किया जिसमें आपके ओर ओलमाए अरब व अजम के गिरानक़द्र मक़ालात छपते थे, मगर अफ़सोस आपकी वफ़ात के बाद ये रिसाला बंद हो गया, आपने अंजुमने शरई के ज़ेरे एहतेमाम नशरो ईशाअत का शोबा भी क़ायम किया था जिसके तहत केई अहम किताबें भी ज़ेवरे तबा से आरस्ता हुईं हैं, इनमें “तर्जुमा ए लुमआ दमिश्क़िया” जैसी ज़खीम किताब क़ाबिले ज़िक्र है, आपकी फ़आलियत को देखकर बाज़ लोग इतने मुताअस्सिर हुए के उन्होने आपसे मुताअल्लिक़ रसाइल ओर जराइद में मज़मून लिखना शुरू किये, “ग़ुलाम रसूल साबिक़ होम सिकरेटरी” ने अंजुमन को दो हज़ार रूपये नक़्द आपका शरहे हाल तबा करवाने के लिए दिये थे।

आप आख़री वक़्त में क़लील अरसे के लिये मरीज़ हो गए, वज़ीरे आला शेख़ मोहम्मद अब्दुल्लाह ने देहली से अपने मुआलिज “ डाक्टर खलीलुल्लाह “ ओर दूसरे डाक्टरो को अपने फरज़ंद फारूक़ अब्दुल्लाह के साथ आपके इलाज के लिये भेजा आखिरकार इस इलमो फ़ज़्ल के आफताब ने मुखतसर अलालत के बाद शबे दोशंबा १० ज़ीक़ादा १४२० हिजरी मुताबिक़ ३० अगस्त १९८२ ई॰ में दाईये अजल को लब्बैक कहा, आपकी वफ़ात की ख़बर जंगल में आग की तरह पूरे कश्मीर मे फैल गई ओर वादी भर से लोग बडगाम आना शुरू हो गये, हर एक आँख अश्कबार ओर चेहरा उदास, पूरा कश्मीर दर्द व कर्ब में डूबा हुआ था, सुबह नो बजे आपका ताबूत घर से बरामद हुआ तो लोगों ने अपने गिरेबान चाक कर डाले , उनके गिरया व ज़ारी से ज़मीने बडगाम हिल गयी, ताबूत बारह बजे तक इमामबाड़ा बडगाम में रखा गया फिर बडगाम के बड़े मैदान में नमाज़े जनाज़ा “ आग़ा सय्यद मुसतफ़ा मूसवी” ने पढ़ाई ओर सेपहर के वक़्त आपको अपने दादा के क़रीब अपने आबाई वतन क़ब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया।

सरकारी तोर पर एक दिन का सोग मनाया गया ओर् तातील का भी एलान हुआ, सरकारी इमारतों पर क़ोमी परचम सरनुगूँ रहा ओर ज़िला बडगाम में तीन रोज़ तक तमाम सरकारी दफ़ातिर ओर कारोबारी दफ़ातिर बंद रहे, साबिक़ वज़ीरे आज़म इंद्रा गाँधी, रियासती गवर्नर जे.के नेहरू के हमराह बडगाम गईं ओर  आग़ा योसुफ़ के लवाहेक़ीन को ताज़ियत पेश की, मजलिसे सोयम बरोज़े जुमा इमाम बाड़ा बडगाम में मुनअक़िद हुई जिसमें ओलमाए किराम, शोअरा, दनिशमंदान, सियासतदान ओर अवाम के जम्मे ग़फ़ीर ने शिरकत की, इमाम खुमेनी की तरफ़ से आयतुल्लाह “सय्यद मोहम्मद जाफ़रयान” ने मजलिसे सोयम में नुमाइन्दगी फ़रमाई।

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-९ पेज-१५३ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०२३ईस्वी।

       

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