हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "बिहारूल अनवार"पुस्तक से लिया गया है। इस कथन का पाठ इस प्रकार है:
:قال رسول الله صلى الله عليه وآله وسلم
قالَ اللّهُ: ما تَحبَّبَ إلَيّ عَبدي بشيءٍ أحَبَّ إلَيَّ ممّا افْتَرَضْتُهُ علَيهِ، و إنّهُ لَيَتحبَّبُ إلَيَّ بالنّافِلَةِ حتّى اُحِبَّهُ، فإذا أحْبَبْتُهُ كُنتُ سَمْعَهُ الّذي يَسمَعُ بهِ، و بَصرَهُ الّذي يُبصِرُ بهِ، و لِسانَهُ الّذي يَنْطِقُ بهِ، و يَدَهُ الّتي يَبْطِشُ بها، و رِجْلَهُ الّتي يَمشي بها، إذا دَعاني أجَبْتُهْ، و إذا سَألَني أعْطَيتُهُ
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने फरमाया:
अल्लाह ताला फरमाता है कि मेरा बंदा अपने कर्तव्य के पालन से ज़्यादा किसी भी दूसरे काम की अंजाम दही से मेरा महबूब नहीं बनता, और जो मुस्तफाबात अंजाम देता हैं, ओ मेरी मोहब्बत को अपनी तरफ खींचने का ज़रिया फराहम करता हैं,
यहां तक कि वह मेरा महबूब बन जाता है और जब मैं इसे दोस्त रखता हूं तो मैं उसके सुनने वाले कान और उसके देखने वाली आखँ और उसकी बोलने वाली जवान उसका मजबूत हाथ और उसके चलने वाले पांव बन जाता हूं, जब भी वह मुझे पुकारेगा तो मैं इसे जवाब दूंगा और जब भी वह मुझे कुछ मांगेगा तो मैं इसे आता करूंगा।
अलमहासिन,1074/454/1