۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
मजलिस

हौज़ा/ तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मजलिस हुई जिसमें रहबरे इन्क़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई भी शरीक हुए। इस मौक़े पर हुज्तुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन हाज अली अकबरी ने नौजवानों के लिए इस्लामी सतह की परवरिश के नमूने के तौर पर हज़रत अली अकबर अलैहिस्सलाम की शख़्सियत के अलग-अलग पहलुओं पर रौशनी डाली,

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मजलिस हुई जिसमें रहबरे इन्क़ेलाब आयतुल्लाह ख़ामेनेई भी शरीक हुए इस मौक़े पर हुज्तुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हाज अली अकबरी ने नौजवानों के लिए इस्लामी सतह की परवरिश के नमूने के तौर पर हज़रत अली अकबर अलैहिस्सलाम की शख़्सियत के अलग-अलग पहलुओं पर रौशनी डाली। इस तक़रीर का सारांश पेश किया जा रहा है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का परवरिश के बारे में जो नज़रिया था उसके बारे में उन्होंने बहुत सी बातें बयान की हैं लेकिन उसके साथ ही उन्होंने उसका एक जीता जागता नमूना कर्बला में पेश किया, यह हुसैनी मकतब की ख़ूबी है। हुसैनी स्कूल के महान छात्र का नाम हज़रत अली अकबर (अलैहिस्सलाम) है।

मशहूर रवायतों के मुताबिक़ 26- 27 साल अपने बाप की आंखों के सामने फले-फूले, और उन्होंने हर क़दम जो उठाया वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की निगरानी, देखरेख और प्रोग्राम के मुताबिक़ उठाया, लेकिन ज़ाहिर सी बात है इसमें उनके ख़ुद अपने इरादे का, उनके अपने फ़ैसले और उस रास्ते का भी बहुत बड़ा हाथ था जो उन्होंने अपने लिए चुना था जिसके नतीजे में वो उस मक़ाम पर पहुंच गये कि जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उनका परिचय कराना चाहा तो कहा कि यह पैग़म्बरे इस्लाम से सब से ज़्यादा शबाहत रखते हैं।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस तरह एक इंसान की परवरिश के बारे में अपनी सारी ख़्वाहिशों को हज़रत अली अकबर की शक्ल में ढाल दिया और उन्हें एक मिसाल और रोल मॉडल के तौर पर पेश किया।

यह जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने हज़रत अली अकबर को पैग़म्बरे इस्लाम की शबीह बताया है वह भी ग़ौर की जाने वाली बात है क्योंकि अल्लाह ने मुसलमानों से कहा है कि वो पैग़म्बरे इस्लाम को अपना आदर्श बनाएं, “तुम्हारे लिए रसूलुल्लाह की अच्छी सीरत नमूना है”। हुक्म हुआ है कि तुम लोग उनकी सीरत पर चलो। दर अस्ल पैग़म्बरे इस्लाम से मिलता जुलता होने का मतलब यह है कि इंसान उस मक़ाम तक पहुंच गया है जो किसी मोमिन इंसान के लिए ज़रूरी होता है।

अगर हम हज़रत अली अकबर पर ग़ौर करें तो हम यह कह सकते हैं कि आज हमारे पास एक ऐसा रोल मॉडल है जिसे पालन-पोषण और पर्सनालिटी डेवलपमेंट के हज़ारों एक्स्पर्ट्स मिल कर भी नहीं बना सकते, यही नहीं बल्कि वह क़यामत तक अरबों नौजवानों के लिए समाज में अच्छा रोल अदा करने के लिए मिसाल बन सकते हैं और वे उनकी ज़िंदगी से बहुत कुछ सीख सकते हैं, यह वही हज़रत अली अकबर हैं जो भरी जवानी में शहीद होकर अमर हो गये।

इमाम हुसैन के मकतब को फिर से ज़िंदा करना, इमाम ख़ुमैनी का बड़ा कारनामा

हमारे महान इमाम ख़ुमैनी का एक अहम कारनामा, हुसैनी स्कूल को नयी नस्ल के लिए फिर से खोलना था, यह हमारे इमाम ख़ुमैनी का बहुत बड़ा कारनामा था, एक बहादुर नस्ल की परवरिश। यह चीज़ हमारे मुल्क ईरान में और फिर पूरे इलाक़े और पूरी दुनिया तक फैल गयी और इससे एक नया रास्ता बना। हमारे रहबरे इंक़ेलाब के मुताबिक़ इमाम ख़ुमैनी की सब से बड़ी कामयाबी दर अस्ल इस तरह के नौजवानों की परवरिश थी।

मोमिन, मुजाहिद, बहादुर और शहादत का जज़्बा रखने वाले नौजवानों की परवरिश। यह हमारे इमाम ख़ुमैनी की सब से बड़ी कामयाबी थी और इससे नया रास्ता खुला। मुक़द्दस डिफ़ेंस के दौर में यह मकतब और फला फूला। इस मकतब में पढ़ने वालों की तादाद बहुत ज़्यादा हो गयी और न जाने कैसे-कैसे बहादुर इस स्कूल से निकले और अपना नाम किया।

हुसैनी परवरिश की ख़ास बात यह है कि यह एक तो बहुत जल्दी मंज़िल तक पहुंचाती है और वह भी गारंटी के साथ, इसके अलावा उसमें एक तरह की ताक़त है जो अपनी ओर खींचती है और इसी तरह यह स्कूल अपनी तरफ़ आने वाले की हिफ़ाज़त भी करता है।
मकतब हुसैनी की तीन बड़ी ख़ूबियां अगर हम हज़रत अली अकबर की शख़्सियत की बुनियाद पर इस स्कूल की कुछ ख़ूबियों की मिसाल पेश करना चाहें तो इसके लिए मैं तीन बातें कहना चाहूंगा।

हज़रत अली अकबर की तौहीदी परवरिश पहली बात जो है वही आख़िरी बात भी है, जड़ भी है और डाल भी है, बल्कि सब कुछ है और वह, तौहीदी परवरिश और ख़ुदा से ताल्लुक़ की बात है। असली मुद्दा यह है।

यह ख़ुदा के रंग में रंग जाना और बंदगी व ईमान व तक़वा की राह पर चलना यानि ख़ुदा से क़रीब होना और उससे मुहब्बत करना है। इस सिलसिले में क़ुरआने मजीद में जो बात कही गयी है वह बहुत अच्छी है।

वो उनसे मुहब्बत करता है और वे लोग उससे मुहब्बत करते हैं। (माएदाः54) यह उस आयत का हिस्सा है जिसमें कहा गया है कि “ऐ ईमान लाने वालो! तुम में से जो भी अपने दीन की राह से भटक गया तो (वह जान ले) अल्लाह ऐसे लोगों को लाएगा जिनसे वह मुहब्बत करेगा और जो उससे मुहब्बत करेंगे।

यह जिन लोगों को अल्लाह पसंद करता है और जिनके बारे में बशारत दी है कि वे आएंगे और ख़ुदा के दीन की मदद करेंगे और इलाही मक़सदों को पूरा करेंगे उनकी सब से पहली ख़ूबी यह है कि अल्लाह की मुहब्बत में डूबे होंगे “वह उनसे मुहब्बत करेगा और वे उससे” इन लोगों में वह ख़ूबियां होंगी जिनकी वजह से अल्लाह उनसे मुहब्बत करेगा वे लोग ख़ुद भी अल्लाह के आशिक़ होंगे।

आप क़ुरआने मजीद में देखें, सूरए तौबा की मशहूर आयत नंबर 111 में कि जिसमें कहा गया है कि “बेशक अल्लाह ने मोमिनों से उनकी जान और उनकी दौलत, इस क़ीमत में ख़रीद ली है कि उन्हें जन्नत दी जाएगी वे लोग अल्लाह की राह में जंग करते हैं और क़त्ल करते और क़त्ल होते हैं।

तो इस आयत के फ़ौरन बाद कहा गया है कि “जो तौबा करने वाले, इबादत करने वाले, हम्द करने वाले, हमेशा ख़ुदा को ख़ुश करने की कोशिश करने वाले, रुकू करने वाले और सजदा करने वाले हैं। ग़ौर करें यहां पर 6 ख़ूबियों को किस ख़ूबसूरती के साथ एक दूसरे के साथ तरतीब से रखा गया है।

सब से पहले मोमिन जो बहादुर मुजाहिद हो और ख़तरे के मैदानों में जाने वाले शहीद की बात की जाती है और अल्लाह कहता है कि मैं उन्हें चाहता हूं, उसके बाद जब इन लोगों को पहचनवाना चाहता है तो पहले यह 6 ख़ूबियां गिनवाता है।

यानी यह लोग पाकीज़ा होते हैं, वे तौबा करते हैं, यह वो लोग हैं जो बंदगी में डूबे रहते हैं, यह लोग हमेशा ख़ुदा की याद में रहते हैं। यह लोग हमेशा ख़ुदा को ख़ुश रखने की कोशिश में रहते हैं। उसके बाद कहा वे रुकु करने वाले होते हैं फिर कहा सजदा करने वाले होते हैं।

इस तरह से एक मोमिन व मुजाहिद इन्सान को ढाला जाता है। इन ख़ूबियों के बाद, समाजी बर्ताव की बारी आती है, इस आयत में पहली 6 ख़ूबियों के बाद 3 सामाजिक ख़ूबियां बयान की गयी हैं। “अच्छाइयों का हुक्म देते हैं और बुराइयों से रोकते हैं और अल्लाह की हदों का ख़्याल रखते हैं”।
कर्बला में एक ऐसा नज़ारा है जो बड़ा आकर्षक है। जब इमाम हुसैन अलैहिस्लाम की आंख लग जाती है, एक झपकी लेने के बाद वह उठते हैं और कहते हैः इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन।

हज़रत अली अकबर बाबा के पास खड़े हैं। हमेशा यही होता था। बाबा को चाहने वाले बेटे थे, उनकी हिफ़ाज़त करने वाले, हमेशा साथ रहने वाले थे। वाक़ई इमाम हुसैन जब उन्हें देखते थे तो उनका सारा ग़म दूर हो जाता था, वो अपने बाबा की उम्मीद थे।

यहां पर हज़रत अली अकबर फ़ौरन बाबा से पूछते हैं कि बाबा! यह आप ने इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन क्यों पढ़ा?
इमाम हुसैन ने फ़रमायाः मैंने ख़्वाब देखा कि हमारा क़ाफ़िला जा रहा है और एक मुनादी आवाज़ लगा रहा है कि यह लोग चल रहे हैं और मौत इनके पीछे पीछे चल रही है।

हज़रत अली अकबर ने फ़ौरन पूछाः बाबा क्या हम हक़ पर नहीं हैं?
  इमाम ने कहाः बिल्कुल हक़ पर हैं बेटे, उस की क़सम जिसके पास सब को जाना है, हम हक़ पर हैं।
हज़रत अली अकबर ने यह सुन कर कहाः तो फिर मौत की मुझे कोई परवाह नहीं।

यानी बाबा जान आप ने उस की परवरिश की है जो हक़ और सच के बारे में ही सोचता है। उस की परवरिश की है जो हर काम के लिए दलील और वजह चाहता है। ख़ुद को अपने इमाम की मर्ज़ी के मुताबिक़ रखता है, ताकि उसकी पूरी ज़िदंगी की बुनियाद हक़ और सच हो।

इस लिए आप हज़रत अली अकबर अलैहिस्सलाम को हक़ चाहने वाला, हक़ की तलाश करने वाला, हक़ बोलने वाला और हक़ को सब कुछ समझने वाला इन्सान पाते हैं। वो हर काम अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ करना चाहते हैं। यह है पहली बात जो बुनियाद भी है।

मैं जब भी हज़रत अली अकबर अलैहिस्सलाम का ज़िक्र करता हूं तो ख़ुद ब ख़ुद मुझे पाकीज़ा डिफ़ेस के दौर की एक घटना याद आ जाती है और मैं कांप जाता हूं। ‘कर्बला-5 आप्रेशन’ में एक नौजवान ने मुझ से कहा, हुज़ूर आप से ज़रा एक मिनट काम है, एक लंबा चौड़ा नौजवान, ख़ूबसूरत, लंबा क़द था और हरे रंग की एक पट्टी हमेशा अपनी पेशानी पर बांधे रहता था।

मैं उसकी ब्रिगेड में आलिमे दीन की हैसियत से था। हम एक अलग जगह गये। वह कहने लगा, जनाब बहुत दिनों से मैं मोर्चे पर एक जगह से दूसरी जगह जाता रहता हूं। कल रात जब वापस आ रहा था तो वापसी का रास्ता काफ़ी मुश्किल था, शायद कई किलोमीटर तक मैं कभी लेट कर कभी पेट के बल और कभी भाग कर रास्ता तय करता रहा क्योंकि बहुत ज़्यादा गोलाबारी हो रही थी।

कहने लगा, कल रात ज़रा सी आंख लग गयी। तो मैंने देखा कि आप्रेशन में मैं अपनी मंज़िल (शहादत) पर पहुंच गया हूं। मुझे शहीद होने की बशारत दी गयी। यहां तक कि मुझे यह भी दिखाया गया कि कौन मुझे कफ़न पहनाएगा और कौन मेरा सामान इकट्ठा कर रहा है, यह सब मुझे दिखाया गया।

आज सुबह मैं वहां गया जहां शहीद होने वालों की लाशें लायी जाती हैं तो वहां मैंने देखा कि दो बूढ़े हैं, यह वही दो थे जिन्हें कल रात मैंने ख़्वाब में देखा था कि जिन्हें मेरी लाश सौंपी गयी थी। जनाब उन्हें देख कर मुझे सुकून हो गया कि अल्लाह ने मेरी क़ुरबानी क़ुबूल कर ली है। लेकिन अब एक

मसला पैदा हो गया है। मसला यह है कि कल रात जब हम अगले मोर्चे की तरफ़ जाने वाले थे तभी मुझे एक ख़त मिला, मेरी बीवी का ख़त था। उसने लिखा है कि तुम्हारा बेटा पैदा हो गया है। मैं तुम्हारा इंतेज़ार कर रही हूं, थोड़ी देर के लिए वापस आ जाओ उसका नाम रखो उसे देख लो और फिर चले जाओ। -यह शहीदों की बीवियां कैसी हस्तियां थीं और हैं?

लिखा था कि बस इतनी ही देर के लिए आ जाओ कि अपने बच्चे को देख लो,  उसका नाम रख दो और फिर चले जाओ। उस नौजवान ने मुझ से कहा कि जनाब मैं इस ख़त को पढ़ कर परेशान हो गया था। दिल चाहने लगा था कि काश अपनी बीवी की यह ख़्वाहिश पूरी कर पाता और जाकर अपने बच्चे को देख लेता, मैं बाप हूं न। लेकिन मैं जा भी नहीं सकता, आप्रेशन शुरु हो चुका है, आज रात हमारी बारी है।

मुझे बशारत भी मिल चुकी है कि तुम इस आप्रेशन में शहीद हो जाओगे। कहने लगा, मुझे फ़िक्र यह है कि अगर मैं इस हालत में शहीद हो जाऊं तो कहीं मुझे उस अस्ली जगह पर न ले जाएं। यह न कह दें कि तुम तो अपने बच्चे को देखने जाने वाले थे।

यह है हुसैनी स्कूल की तौहीदी परवरिश। कौन किसी की इस तरह से परवरिश कर सकता है? बरसों तक लोगों को पढ़ाने लिखाने और उन्हें सही रास्ता दिखाने वालों में से किस ने इस तरह के इन्सानों की परवरिश की है? यह हुसैनी स्कूल का कमाल है। अल्लाहो अकबर। मैं उस वक़्त शर्म से पानी पानी हो गया। बस उससे यही कह पाया कि भाई फ़िक्र न करो। यह एक बाप का दिल है इसका उस पर कोई असर नहीं होगा। तुम परेशान भी हो गये, इस लिए बेफ़िक्र रहो। इसी तरह की दो चार बातें उससे कहीं। यह तौहीदी परवरिश है और सब कुछ यही है।
हज़रत अली अकबर का अखलाक़
दूसरी बात जो बहुत अहम है अख़लाक़, व्यवहार और अच्छा स्वभाव है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपनी पूरी ताक़त लगा कर अपने बेटे की इस तरह से परवरिश की थी कि वह पैग़म्बरे इस्लाम से सब से ज़्यादा शहाबत रखते थे। उनका चेहरा, अदब, ख़ुलूस, नर्मदिली, लिखना-पढ़ना, उठना-बैठना, चलना-फिरना सब कुछ पैग़म्बरे इस्लाम की तरह था। तो क्या इस तरह के बेटे पर इमाम हुसैन को फ़ख़्र नहीं होगा?
ख़ुदा ने एक और इनायत यह की कि हज़रत अली अकबर अलैहिस्सलाम का चेहरा भी पैग़म्बरे इस्लाम के चेहरे की तरह बना दिया देखने वालों को लगता था कि जैसे ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम हैं। इस तरह से अल्लाह की तरफ़ से भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मदद हुई और उन्होंने शक्ल व सूरत में पैग़म्बरे इस्लाम की तरह नज़र आने वाले अपने बेटे को स्वभाव, अख़लाक़ और ख़ूबियों में भी पैग़म्बरे इस्लाम की तरह बना दिया।

हज़रत अली अकबर का जेहाद व शहादत का जज़्बा
तीसरी बात जिस की तरफ़ मैं बस इशारा करना चाहूंगा वह जेहाद, मज़बूती और इज़्ज़त की भावना और जज़्बा है। हुसैनी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे बहुत बहादुर होते हैं। क़ुरआने करीम की ज़बान में काफ़िरों के सामने कठोर होते हैं, अकेले ही एक फ़ौज की तरह होते हैं। अगर रातों में ख़ुदा के आगे गिड़गिड़ाते हैं तो दिन में दुश्मनों के सामने शेर की तरह गरजते हैं। यह लोग ख़ुदा के वली की मदद कर सकते हैं।

इतने मज़बूत इरादे से, इतनी बहादुरी से और इस तरह के जेहादी जज़्बे के साथ, और इस तरह की बेजिगरी के साथ। जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने नहजुलबलाग़ा के ख़त नंबर 31 में फ़रमाया है कि बेटे, हक़ के लिए ख़तरनाक अंधेरे समुद्र में भी कूद पड़ो, डरो मत, ख़तरों से भरे मैदान में उतर जाओ, बहादुर बनो।

इस तरह इस घराने के बच्चों की परवरिश की जाती है। और हज़रत अली अकबर अलैहिस्सलाम, तौहीद व अल्लाह की पहचान की चोटी पर तो हैं ही उसके साथ ही अख़लाक़ और अच्छे स्वभाव की ऊंचाई पर भी पहुंचे हुए हैं। इसी तरह वो बहादुरी की चोटियों को भी फत़्ह कर चुके हैं।

बहादुर हैं, हीरो हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सललाम के ख़ैमे में हज़रत अली अकबर एक साथ इतने किरदारों में नज़र आते हैं। एक साथ ही सब कुछ हैं। इसके साथ ही वह अहले-हरम की आंखों की ठंडक हैं, दिल का सुकून हैं, उम्मीद हैं और दिल का चैन हैं।

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