۲۸ شهریور ۱۴۰۳ |۱۴ ربیع‌الاول ۱۴۴۶ | Sep 18, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा/ विश्वासियों को अल्लाह पर भरोसा रखना, उसकी इच्छा का पालन करना और पैग़म्बर (स) का पालन करना जारी रखना चाहिए। उन पर अल्लाह की तरफ से हमेशा रहमत और मेहरबानी रहती है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम

فَانقَلَبُواْ بِنِعْمَةٍ مِّنَ اللّهِ وَفَضْلٍ لَّمْ يَمْسَسْهُمْ سُوءٌ وَاتَّبَعُواْ رِضْوَانَ اللّهِ وَاللّهُ ذُو فَضْلٍ عَظِيمٍ फ़न्क़लबू बेनेअमतिम मिनल्लाहे व फ़ज़्लिल लम यमससहुम सूओ वत्तबेऊ रिज़वानल्लाहे वल्लाहो ज़ू फ़ज़्लिन अज़ीम (आले-इमरान 174)

अनुवाद: तो ये मुजाहिदीन ख़ुदा के फ़ज़्ल और करम से इस तरह वापस आये कि उन पर कोई मुसीबत न आई और वो ख़ुदा की मर्ज़ी पर चले, और ख़ुदा की रहमत बड़ी है।

विषय:

यह अल्लाह की कृपा और सुरक्षा के बयान पर आधारित है, जो विश्वासियों पर तब प्रकट हुआ जब उन्होंने पैगंबर (स) के निमंत्रण का जवाब दिया और हमरा अल-असद या बद्र अल-सुगरा की लड़ाई में भाग लिया।

पृष्ठभूमि:

यह आयत ओहोद की लड़ाई के बाद की घटनाओं के संबंध में सामने आई थी। ओहोद की लड़ाई के बाद, जब मुसलमानों को कुछ हार का सामना करना पड़ा, तो कुरैश के मक्का सरदार अबू सुफियान ने मदीना पर फिर से हमला करने की योजना बनाई। जब इसकी खबर अल्लाह के रसूल (स) तक पहुंची, तो उन्होंने मुसलमानों को दुश्मन का पीछा करने का आदेश दिया। इस अभियान को ग़ज़वा हमरा अल-असद कहा जाता है।

जब अल्लाह के रसूल (स) ने मुजाहिदीन को इकट्ठा किया, तो कई लोग घायल और थके हुए थे, लेकिन अल्लाह पर भरोसा करते हुए, उन्होंने पैग़म्बर (स) के आह्वान को स्वीकार कर लिया और युद्ध के लिए तैयार हो गए। जब मुशरेकीन ने मुसलमानों का दृढ़ निश्चय देखा, तो वे डर के मारे मक्का लौट आये और कोई लड़ाई नहीं हुई। फिर भी, मुसलमानों ने अल्लाह की इच्छा का पालन किया और परिणामस्वरूप उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।

इस घटना के माध्यम से, अल्लाह ताला ने मुसलमानों को संदेश दिया कि जब भी वे सच्चे इरादों के साथ उनके रास्ते पर कदम बढ़ाएंगे, वह उन पर अपना आशीर्वाद और कृपा बरसाएंगा। इस आयत में अल्लाह की कृपा और दया के महत्व और अल्लाह पर ईमान वालों के भरोसे पर प्रकाश डाला गया है।

तफसीर:

  • अल्लाह की कृपा और आशीर्वाद से वापसी: आयत में कहा गया है कि मुजाहिदीन अल्लाह की कृपा और दया से हमरा अल-असद या बद्र अल-सुगरा की लड़ाई से लौटे, और उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाया गया।
  • अल्लाह की विशेष नेमत: ईमानवालों पर अल्लाह की रहमत और फज़्ल का शुक्र है कि उन्हें किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं हुआ, यह अल्लाह की बड़ी नेमत का नतीजा था।
  • पैगंबर के निमंत्रण को स्वीकार करना: विश्वासियों ने पैग़म्बर (स) के निमंत्रण को स्वीकार किया और इस अभियान में भाग लिया, जो अल्लाह की इच्छा का पालन करने के बराबर है।
  • युद्ध न होना: आयत में "लम यमसिसहुम सुओ" वाक्यांश युद्ध न होने का संकेत देता हैं।
  • भरोसा : अल्लाह पर भरोसा ईमानवालों के लिए आशीर्वाद और कृपा का अग्रदूत है।
  • कठिनाइयों को दैवीय कृपा में बदलना: कर्म के साथ-साथ ईश्वर पर निर्भरता ने गंभीर कठिनाइयों को आशीर्वाद और दैवीय कृपा में बदल दिया।
  • जीत और हार अल्लाह के हाथ में: आयत में साफ है कि जीत और हार अल्लाह के हाथ में है।
  • शत्रु के दुष्प्रचार का असर न होना: शत्रु के दुष्प्रचार के बावजूद ईमानवालों ने युद्ध में भाग लिया और अल्लाह की कृपा से लौट आये।
  • ईश्वर की प्रसन्नता की तलाश: सच्चे विश्वासी हमेशा ईश्वर की पूर्ण प्रसन्नता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
  • अल्लाह और रसूल के निमंत्रण को स्वीकार करना: अल्लाह और अल्लाह के रसूल (स) के निमंत्रण को स्वीकार करने से ईश्वरीय प्रसन्नता की प्राप्ति होती है।
  • दुश्मन की धमकियों की परवाह न करना: ईमानवालों ने दुश्मन की धमकियों की परवाह नहीं की और अल्लाह की प्रसन्नता के लिए प्रयास किया।
  • मुजाहिद मोमिनीन की प्रशंसा: इन मुजाहिद मोमिनीन की अल्लाह ने प्रशंसा की है।
  • अल्लाह का बड़ा इनाम: अल्लाह बड़े इनाम का मालिक है।
  • आस्था, आज्ञाकारिता, धैर्य, जिहाद और तक़वा: ये गुण ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने और ईश्वर की महान कृपा से लाभ उठाने की ओर ले जाते हैं।
  • सच्चे विश्वासियों का संघर्ष: कठिन परिस्थितियों में विश्वासियों के संघर्ष को याद रखना महत्वपूर्ण है।
  • वित्तीय लाभ: बद्र अल-सुग़रा की लड़ाई में मुजाहिदीन को वित्तीय लाभ मिला, जो अल्लाह के इनाम का हिस्सा था।

यह तफसीर इस बात पर जोर देती है कि विश्वासियों को अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए, उसकी इच्छा का पालन करना चाहिए और पैगम्बर (स) का पालन करना चाहिए। उन पर अल्लाह की तरफ से हमेशा रहमत और मेहरबानी रहती है।

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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

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