हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
لَا یَذَرُ المُؤمِنِینَ عَلٰی مَا اَنتُم عَلَیہِ حَتّٰی یَمِیزَ الخَبِیثَ مِنَ الطَّیِّبِ وَمَا کَانَ اللّٰہُ لِیُطلِعَکُم عَلَی الغَیبِ وَلٰکِنَّ اللّٰہَ یَجتَبِی مِن رُسُلِہِ مَن یَشَاءُ فَآمِنُوا بِاللّٰہِ وَرُسُلِہِ وَإِن تُؤمِنُوا وَتَتَّقُوا فَلَکُم أَجرٌ عَظِیمٌ ला यज़रुल मोमेनीना अला मा अंतुम अलैहे हत्ता यमीजल खबीसा मिनत तय्येबे वमा कानल्लाहो लेयुतलेअकुम अलल गैबे वलाकिन्नल्लाहा यजतबी मिन रोसोलेहि मन यशाओ फ़आमेनू बिल्लाहे व रोसोलेहि वइन तूमेनू वत्तक़ू फ़लकुम अजरुन अज़ीम ( आले-इमरान, 179)
अनुवाद:
"अल्लाह ईमान वालों को उस स्थिति में कभी नहीं छोड़ेगा जिसमें आप अभी हैं, जब तक कि वह बुराई को अच्छे से अलग न कर दे, और ईश्वर आपको अदृश्य चीज़ों की सूचना नहीं देता है, बल्कि ईश्वर अपने दूतों में से जिसे चाहेगा, आपको देना चाहिए।" अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ और अगर तुम ईमान और परहेज़गारी करोगे तो तुम्हारे लिए बड़ा इनाम है।"
विषय:
ईश्वर की हिकमत, मोमेनीन का इम्तेहान और शुद्ध एवंम अशुद्ध के बीच अंतर
पृष्ठभूमि:
यह आयत तब सामने आई जब मुसलमानों के दिलों में संदेह और पाखंड फैल गया, खासकर ओहोद की लड़ाई के बाद, जहाँ मुसलमानों को गंभीर परीक्षणों का सामना करना पड़ा। अल्लाह ने इस आयत में बताया कि वह विश्वासियों के विश्वास की परीक्षा लेता है ताकि सच्चे विश्वासियों और पाखंडियों के बीच स्पष्ट अंतर किया जा सके।
तफ़सीर:
- परीक्षण और आजमाइश: अल्लाह विश्वासियों को विभिन्न परीक्षणों से गुजारकर उनके विश्वास की परीक्षा लेता है ताकि उनके भीतर की सच्चाई सामने आ सके।
- ग़ैब की ख़बरों की सीमा: अल्लाह ने आम लोगों को ग़ैब के बारे में सूचित नहीं किया, बल्कि लोगों तक अल्लाह के रहस्योद्घाटन को पहुँचाने के लिए दूतों को चुना।
- ईमान और तक़वा का महत्व: इस आयत में अल्लाह सर्वशक्तिमान ईमान और तक़वा को बहुत महत्व देता है और वादा करता है कि जो लोग ईमान और तक़वा को अपनाएंगे उन्हें एक बड़ा इनाम मिलेगा।
परिणाम:
इस आयत का निष्कर्ष यह है कि अल्लाह परीक्षणों के माध्यम से सच्चे लोगों को पाखंडी से अलग कर देता है। विश्वासियों को इन परीक्षणों में दृढ़ रहना चाहिए, अल्लाह और उसके दूतों पर विश्वास करना चाहिए, और धर्मपरायणता का अभ्यास करना चाहिए ताकि वे एक महान इनाम के हकदार बन सकें।
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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान