रविवार 16 मार्च 2025 - 05:26
अनाथ महिलाओं और कमजोर बच्चों के अधिकार और न्याय

हौज़ा/ यह आयत इस्लामी समाज में अनाथों और कमज़ोरों के अधिकारों की सुरक्षा पर ज़ोर देती है। इस्लाम एक ऐसा समाज बनाना चाहता है जहां अन्याय न हो, सभी को उनके अधिकार मिलें और कमजोरों के साथ न्याय हो। अनाथ महिलाओं की संरक्षकता का अर्थ उनके अधिकारों का हनन करना नहीं है, बल्कि उनके लिए प्रावधान करना तथा उनके साथ निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण व्यवहार करना है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी|

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम

وَيَسْتَفْتُونَكَ فِي النِّسَاءِ ۖ قُلِ اللَّهُ يُفْتِيكُمْ فِيهِنَّ وَمَا يُتْلَىٰ عَلَيْكُمْ فِي الْكِتَابِ فِي يَتَامَى النِّسَاءِ اللَّاتِي لَا تُؤْتُونَهُنَّ مَا كُتِبَ لَهُنَّ وَتَرْغَبُونَ أَنْ تَنْكِحُوهُنَّ وَالْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الْوِلْدَانِ وَأَنْ تَقُومُوا لِلْيَتَامَىٰ بِالْقِسْطِ ۚ وَمَا تَفْعَلُوا مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِهِ عَلِيمًا.   व यस्तफ़तूनका फ़िन नेसाए क़ोलिल्लाहो युफ़तीकुम फ़ीहिन्ना वमा युतला अलैकुम फ़िल किताबे फ़िल यतामन नेसाइल लाती ला तूतूनहुन्ना मा कोतेबा लहुन्ना व तरग़बूना अन तनकेहूहुन्ना वल मुस्तज़आफ़ीना मेनल विलदाने व अन तकूमू लिलयतामा बिल क़िस्ते वमा तफ़अलू मिन खैरिन फ़इन्नल्लाहा काना बेहि अलीमा (नेसा 127)

अनुवाद: ऐ नबी! लोग तुमसे अनाथ लड़कियों के बारे में अल्लाह के हक़ के बारे में पूछते हैं, तो कह दो कि अल्लाह उन्हें इजाज़त देता है। और जो किताब तुम्हें पढ़कर सुनाई गई है, वह अनाथ औरतों के बारे में है, जिन्हें तुम विरासत में नहीं देते और चाहते हो कि उनसे शादी कर लो और अपना सारा माल रख लो। और कमज़ोर बच्चों के बारे में है कि अनाथों के साथ न्याय करो। और जो कुछ तुम अच्छा करते हो, अल्लाह उसे जानता है।

विषय:

अनाथ महिलाओं और कमजोर बच्चों के अधिकार और न्याय

पृष्ठभूमि:

मदीना में अवतरित हुई इस आयत में अधिकतर सामाजिक और पारिवारिक मुद्दों से संबंधित निर्णय हैं। यह श्लोक विशेष रूप से अनाथ लड़कियों के अधिकारों, उनकी विरासत और उनका अनुचित तरीके से विवाह करने की प्रवृत्ति को संबोधित करता है।

तफ़सीर:

1. ईश्वरीय आदेश: अल्लाह तआला पैगंबर (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) से कहता है कि लोग आपसे अनाथ लड़कियों के बारे में पूछते हैं, तो उन्हें बता दें कि अल्लाह स्वयं उनके बारे में आदेश दे रहा है।

2. अनाथ लड़कियों के अधिकार: कुछ लोग अनाथ लड़कियों की देखभाल तो करते थे, लेकिन उनकी संपत्ति पर कब्जा करने के इरादे से उनसे शादी कर लेते थे और अपने शरिया अधिकारों का पालन नहीं करते थे। कुरान ने स्पष्ट रूप से इस व्यवहार की निंदा की है।

3. कमज़ोर बच्चों के अधिकार: आयत में आगे कमजोर बच्चों (अल-मुस्तदाफिन मिन अल-वलदान) का उल्लेख किया गया है, जिन्हें विरासत और अन्य सामाजिक अधिकारों से वंचित किया गया था।

4. न्याय पर जोर: अल्लाह तआला का आदेश है कि अनाथों के मामले में न्याय किया जाए, उनके अधिकार पूरी तरह से प्रदान किए जाएं और उन पर अत्याचार न किया जाए।

5. अच्छाई का पुरस्कार: कुरान स्पष्ट करता है कि जो भी अच्छा काम किया जाता है, अल्लाह उससे भली-भांति परिचित है और उसका सर्वोत्तम प्रतिफल देगा।

महत्वपूर्ण बिंदु:

• अनाथ महिलाओं के साथ उचित व्यवहार न करना कुरान की नज़र में एक बड़ा अन्याय है।

• किसी की संपत्ति को अनुचित तरीके से हड़पना या विरासत में मिली संपत्ति को धोखा देना सख्त वर्जित है।

• विवाह के मामले में महिला की सहमति और उसके अधिकारों का पूर्ण सम्मान आवश्यक है।

• इस्लामी शिक्षाओं में कमजोर बच्चों के अधिकारों को भी विशेष महत्व दिया गया है।

• भलाई का प्रतिफल अल्लाह के पास सुरक्षित है, और प्रत्येक अच्छे कर्म का अल्लाह पूर्ण रूप से प्रतिफल देगा।

परिणाम:

यह आयत इस्लामी समाज में अनाथों और कमज़ोरों के अधिकारों की सुरक्षा पर ज़ोर देती है। इस्लाम एक ऐसा समाज बनाना चाहता है जहां अन्याय न हो, सभी को उनके अधिकार मिलें और कमजोरों के साथ न्याय हो। अनाथ महिलाओं की संरक्षकता का अर्थ उनके अधिकारों का हनन करना नहीं है, बल्कि उनके लिए प्रावधान करना तथा उनके साथ निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण व्यवहार करना है।

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सूर ए नेसा की तफ़सीर

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