हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا يَحِلُّ لَكُمْ أَنْ تَرِثُوا النِّسَاءَ كَرْهًا ۖ وَلَا تَعْضُلُوهُنَّ لِتَذْهَبُوا بِبَعْضِ مَا آتَيْتُمُوهُنَّ إِلَّا أَنْ يَأْتِينَ بِفَاحِشَةٍ مُبَيِّنَةٍ ۚ وَعَاشِرُوهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ ۚ فَإِنْ كَرِهْتُمُوهُنَّ فَعَسَىٰ أَنْ تَكْرَهُوا شَيْئًا وَيَجْعَلَ اللَّهُ فِيهِ خَيْرًا كَثِيرًا या अय्योहल लज़ीना आमनू ला यहिल्लो लकुम अन तरेसुन नेसाआ करहन वला तअज़ोलूहुन्ना लेतज़हबू बेबअजिम मा आतयतोमूहुन्ना इल्ला अन यातीना बेफ़ाहेशतिम मोबय्येनतिन व आशेरूहुन्ना बिल मअरूफ़े फ़इन करेहतोमूहुन्ना फअसा अन तकरहू शैअन व यजअलल्लाहो फीहे खैरन कसीरा (नेसा 19)
अनुवाद: ऐ ईमान वालो, तुम्हारे लिए औरतों को ज़बरदस्ती विरासत में लेना जाइज़ नहीं है, और उन्हें जो कुछ दिया गया है उसमें से कोई हिस्सा लेने से न रोको, सिवाय इसके कि वे स्पष्ट रूप से व्यभिचार करें और अब उनके साथ अच्छा व्यवहार करें भले ही आप उन्हें नापसंद करते हों, यह संभव है कि आप किसी चीज़ को नापसंद करते हों और ईश्वर उसमें प्रचुर मात्रा में हो।
विषय:
इस आयत में महिलाओं के अधिकारों और विवाहित जीवन में पुरुषों के व्यवहार के बारे में बताया गया है, खासकर महिलाओं के विरासत के अधिकारों और उनके अच्छे व्यवहार पर जोर दिया गया है।
पृष्ठभूमि:
जहिलिया के ज़माने में महिलाओं पर ज़ुल्म और हिंसा आम बात थी। पुरुष अपनी स्त्रियों को जबरन बेदखल कर देते थे और उनके अधिकार छीन लेते थे। इस आयत के ज़रिए अल्लाह ने इस क्रूर प्रथा को ख़त्म किया और महिलाओं के अधिकारों का पालन करने का आदेश दिया।
तफ़सीर:
1. जबरन विरासत पर रोक: अल्लाह ने यह स्पष्ट कर दिया कि पुरुषों को महिलाओं को उनकी सहमति के बिना उत्तराधिकारी के रूप में मजबूर करने का अधिकार नहीं है।
2. अधिकारों से वंचित करने का निषेध: पुरुषों को महिलाओं को परेशान करने और उन्हें जो उन्होंने दिया है उसे वापस करने के लिए मजबूर करने से भी प्रतिबंधित किया गया है।
3. अच्छे व्यवहार के लिए उपदेश: पतियों को अपनी पत्नियों के साथ दया और नम्रता से पेश आने की आज्ञा दी जाती है।
4. नापसंदगी का उपाय: यदि पत्नी किसी कारण से नापसंद हो तो संभव है कि अल्लाह उसकी भलाई और भलाई को छिपा दे।
महत्वपूर्ण बिंदु:
• इस्लाम ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की है और अज्ञानता की प्रथाओं को समाप्त किया है।
• पत्नी के साथ क्रूरता और दुर्व्यवहार गैरकानूनी और अनैतिक है।
• प्रेम और दया विवाह संबंध के केंद्र में हैं।
परिणाम:
यह आयत महिलाओं के अधिकारों की गारंटी देती है और विवाहित जीवन में न्याय और अच्छाई को बढ़ावा देती है। यह संदेश देता है कि अगर पुरुष किसी कारण से अपनी पत्नी से नाखुश हैं, तो भी उनके साथ दुर्व्यवहार करने का कोई औचित्य नहीं है। इसमें यह सबक भी है कि हर कार्य में अल्लाह का ज्ञान छिपा है और इंसान को हर स्थिति में न्याय और अच्छाई का रास्ता अपनाना चाहिए।
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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए नेसा