हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई ने कहां,औरत की आज़ादी, पश्चिम की गुमराह सभ्यता में इस बात पर टिकी है कि औरत को मर्द की भूखी निगाहों को शांत करने का साधन क़रार दे और मर्द उसका आनंद ले, क्या यह औरत की आज़ादी है?
वे लोग जो पश्चिमी दुनिया में मानवाधिकार की रक्षा का दम भरते हैं, हक़ीक़त में औरत पर ज़ुल्म करने वाले लोग हैं, औरत को ऐसे महान वजूद के तौर पर देखिए जो महान इंसानों की परवरिश के ज़रिए पूरे समाज की कामयाबी का सबब बनती है।
तब मालूम हो सकेगा कि औरत का हक़ क्या है और उसकी आज़ादी का क्या मतलब है। औरत को परिवार के गठन के बुनियादी सुतून के तौर पर देखिए कि अगरचे परिवार मर्द और औरत दोनों से गठित होता है और दोनों ही परिवार के गठन और उसकी रक्षा में प्रभावी हैं लेकिन परिवार के लिए सुकून व चैन और वह आराम व इत्मीनान जो घर के माहौल में मिलता है, औरत की बरताव और उसके ज़नाना स्वभाव की देन है।
इमाम ख़ामेनेई,