शुक्रवार 31 अक्तूबर 2025 - 23:38
आख़िर उज़ ज़मां में लोगों की हालत कैसी होगी?

हौज़ा / मरहूम हाज इस्माईल दुलाबी (र) ने एक प्रतीकात्मक उदाहरण के ज़रिए आख़िर-उज़-ज़मां के लोगों को चार समूहों में बाँटा है: पहलाः जो दुनिया में फ़साद और अव्यवस्था फैलाते हैं। दूसराः जो सिर्फ दुआ और फ़रियाद (मांगने) में लगे रहते हैं। तीसराः जो ग़फ़लत यानी लापरवाही और बेख़बरी में डूबे हुए हैं और चौथाः जो उद्देश्यपूर्ण और कर्मशील इंतज़ार के साथ जीवन जी रहे हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, मरहूम हाजी इस्माईल दुलाबी (र) अक्सर कहते थे कि किसी ने उनसे पूछा “आख़िर उज़ ज़मां में लोगों की हालत कैसी होगी?”

उन्होंने जवाब दिया: “उनकी मिसाल उस बाप जैसी है जिसके चार बेटे हों।”

वह बाप अपने बेटों को एक कमरे में बंद करके कहता है: “तुम लोग यहीं रहो, मैं थोड़ा बाहर जा रहा हूँ, जल्द वापस आऊँगा।” लेकिन असल में वह पीछे के परदे से अपने बच्चों के व्यवहार को देखता रहता है।

पहला बेटा – बाप की गैरहाजिरी का फ़ायदा उठाता है, शरारत करता है, कमरे को बिगाड़ देता है और हंगामा मचाता है।

दूसरा बेटा – जब अपने भाई की हरकतें देखता है तो बैठकर रोने लगता है और पुकारता है: “बाबा आओ! बाबा आओ!”

तीसरा बेटा – अपने बाप को बिल्कुल भूल जाता है और खेल-कूद में, अपनी दुनिया में मस्त हो जाता है।

चौथा बेटा – समझ लेता है कि भले ही बाप दिखाई नहीं दे रहा, लेकिन वह परदे के पीछे से देख रहा है।

इसलिए वह कमरे को साफ़-सुथरा रखता है, सब चीज़ों को ठीक से जमाए रखता है, और बाप के देर आने से परेशान नहीं होता।

बल्कि वह सोचता है: “जितना समय बाबा देर करेंगे, मुझे उतना ज़्यादा मौक़ा मिलेगा कि कमरा और अच्छे से सजाऊँ और उन्हें खुश करूँ।”

वह काम भी करता रहता है और इंतज़ार भी।

यह उदाहरण हम सबका है  आख़िर-उज़-ज़मां के इंसानों का।

कुछ लोग हैं जो दुनिया का निज़ाम बिगाड़ देते हैं;

कुछ लोग हैं जो केवल रोते हैं और पुकारते हैं: “आका आजाइए! मौला आजाइए!”

कुछ ऐसे हैं जो अपने इमाम को भूल चुके हैं और अपनी दुनिया में मस्त हैं; और कुछ ऐसे भी हैं जो अपने इमाम की ख़ुशी के लिए लगातार अच्छे कर्म करते रहते हैं चाहे इमाम के आगमन में देर ही क्यों न हो।

स्रोत: शाख़े तूबा – बयानात मरहूम हाजी इस्माईल दुलाबी (र)

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