हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इंसान पर आने वाली मुसीबतों की क़िस्म उसके अमली और अख़लाक़ी हालात से जुड़ी होती है। यह कठिनाइयाँ इंसान की तरबियत और इस्लाह के लिए उस पर आती हैं, और इनसे निजात पाने के लिए हर मुसीबत के मुताबिक़ सही रवैया अपनाना ज़रूरी है, ताकि अगर आख़िरत में इनके कोई नकारात्मक असर हों तो वे ख़त्म हो जाएँ।बहुत सी रिवायतें इस हक़ीक़त की ताईद करती हैं।
अमीरुल-मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:
हम में से कोई भी शिया ऐसा नहीं है जो कोई ऐसा काम करे जिससे हमने मना किया हो और फिर मर जाए, मगर यह कि उसे उसके माल, उसकी औलाद या उसकी अपनी जान में किसी न किसी मुसीबत में मुब्तेला कर दिया जाता है, ताकि उसके गुनाह ख़त्म हो जाएँ और वह इस हालत में अल्लाह से मुलाक़ात करे कि उस पर कोई गुनाह बाक़ी न रहे। और कभी-कभी कुछ गुनाह बाक़ी रह जाती हैं, तो मौत के वक़्त उस पर सख़्ती की जाती है।
इसी तरह रसूल-ए-ख़ुदा हज़रत मुहम्मद स.ल. फ़रमाते हैं:
मोमिन को जो भी तकलीफ़, बीमारी, ग़म या यहाँ तक कि वह बेचैनी जो उसके ज़ेहन को मशग़ूल कर देती है, अल्लाह तआला उसके बदले उसके गुनाहों को माफ़ फ़रमा देता है।
यह सोच और इस तरह की तवज्जो रूहानी रास्ते पर चलने वालों के लिए बेहद ज़रूरी और निहायत अहम है। काइनात में पेश आने वाले वाक़ेआत पर ग़ौर-ओ-फ़िक्र के नतीजे में इंसान के अंदर यह शऊर पैदा होता है।
माख़ूज़: किताब “गाम-ए-आग़ाज़ीन-ए-सुलूक” उस्ताद मुहम्मद बाक़िर तहरीरी
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