हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार शहादत के मौके पर इमाम रजा (अ.स.) की दरगाह के चारों ओर सभी सड़कों पर काले रंग के बैनर लगाए गए हैं। इसके अलावा शहादत के मौके पर इमाम रजा (अ.स.) की दरगाह के गुंबद से हरा परचम उतारकर काला परचम लगाया गया है।
हजरत सैयदा कौनैन की शहादत की रात का मुख्य कार्यक्रम हरम ए रिज़वी के इमाम खुमैनी के पोर्च में आयोजित हुआ जिसमें सैकड़ों की संख्या में मातम करने वाले शामिल हुए।
हरम ए इमाम रज़ा (अ.स.) के दारुर रहमा में उर्दू भाषा के तीर्थयात्रियों के लिए मजलिस-ए-अज़ा आयोजित की गई, जिसमें हुज्जतुल इस्लाम मुस्लेमीन सैयद तहरीर अली नकवी ने संबोधित किया था।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद तहरीर अली नकवी ने फातिमा और अशूरा के दिनों की तुलना करते हुए कहा कि मासूम का कहना है कि अगर आशूरा हमारे लिए अहलेबैत (अ.स.) का सबसे कठिन दिन था तो हज़रत ज़हरा (स.अ.) की शहादत का दिन भी सबसे कठिन दिन है।
हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ.) की महानता के बारे में बताते हुए, उन्होंने कहा कि इस्लाम के पवित्र पैगंबर (स.अ.व.व.) ने हज़रत सैयदा कायनात हज़रत ज़हरा (स.अ.) का परिचय देते हुए कहा: फातेमा मेरा टुकड़ा हैं, यानी इस्लाम के पैगंबर (स.अ.व.व.) चाहते थे कहो कि मेरे सारे गुण मेरी बेटी फातिमा (स.अ.) में परिलक्षित होते हैं।
खतीब मजलिस ने कहा कि जब कोई व्यक्ति किसी को उपहार देना चाहता है, तो वह अपनी हैसियत और क्षमता के अनुसार देता है और जब सर्वशक्तिमान ईश्वर ने चाहा कि अपने प्रिय मुहम्मद मुस्तफा (स.अ.व.व.) को उपहार दे तो फरमाया इन्ना आतैना कल कौसर, कौसर अर्थाथ अच्छा, बस अच्छा।
उन्होंने कहा कि जब हम पर मुश्किल समय आता है, तो हम अल्लाह को मासूमीन का मध्यस्थ बनाते हैं ताकि हमारी समस्या जल्द से जल्द हल हो सके, क्योंकि हमें सब कुछ अहलेबैत (अ.स.) के माध्यम से ही मिलता है। मीर अनीस ने एक शेर मे कहा
पांच तन का वास्ता देकर अनीस .................. मैने जो चाहा खुदा से पा लिया
उन्होंने कहा कि इमाम मासूम (अ.स.) फरमाते हैं कि जब हम कठिनाइयों का सामना करते हैं, तो हम अपनी मां ज़हरा (स.अ.) को संसाधन मानते हैं।
गौरतलब है कि सैयदा आलम का अपने पिता, पवित्र पैगंबर की मृत्यु के 3 महीने बाद वर्ष 3 एएच में स्वर्गवास हो गया था। उनकी वसीयत के मुताबिक रात को उनके शव को ले जाया गया। हज़रत अली (अ) ने उनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था की। केवल बनी हाशिम और सलमान फारसी, मिक़दाद और अम्मार अंतिम संस्कार मे शामिल थे। हजरत अली ने अपने वफादार साथियों के साथ चुपचाप दफन कर दिया।
जन्नतुल बकीअ मे जो मक़बरा आपके हरम का प्रतीक था उसे 8 शव्वाल 1344 एएच में आले सऊद ने अहलेबैत (अ.स.) के दूसरे मकबरो के साथ ध्वस्त कर दिया।