हौज़ा न्यूज़ एजेंसी !
लेखक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैय्द जावेद अब्बास मुस्तफ़वी
इमाम अली (अ.स.) 12 रजब 36 हिजरि को जंगे जमल से फ़ुरसत पा कर मदीना ना जाकर कूफ़ा पहुंच गए और कुछ राजनितिक कारणो से क़ूफा को इस्लामी जगत की राजधानी घोषित कर दिया। लेकिन 21 रमज़ान 40 हिजरी को आपकी शहादत के बाद मुआविया और इमाम हसन (अ.स.) के बीच खिलाफत के संबंध में पत्राचार जारी रहा और बात सुलह तक पहुंची। इमाम (अ.स.) ने यह कहते हुए अपने कदम पीछे खींच लिए कि मुआविया मैं तुझ से जंग करने से नहीं डरता, लेकिन मेरी नजर मे उम्मत की इस्लाह और नफ़्से मोहतर्मा की जान माल की सुरक्षा है। उसके बाद आपने बनू हाशिम के साथ कूफ़ा छोड़ने का फैसला कर लिया। इमाम (अ.स.) अपने परिवार के साथ निकल रहे थे कूफ़े के लोग हलक़े मे लेकर रो रहे थे आखिर क्यो ना रोते चार साल तक तीन इमामो की शफ़क़्क़त और मोहब्बत पाते रहे। जनाबे ज़ैनबे कुबरा तफसीर का दर्स देती रही अब यह सब कहा मिलने वाला था। उसके बाद अपने जीवन के अगले 10 साल मदीना में बिताए, ताकत और शक्ति न होने के बावजूद आपने चार महत्वपूर्ण कार्य आपने अंजाम दिए।
1- मस्जिद-ए-नबावी में शिक्षा।
2- नवाचार (बिदअत) के खिलाफ खड़े हुए।
3- विभिन्न तरीकों से जरूरतमंदों की मदद।
4- संतान का पालन पोषण।