हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी पर एक निगाह:
आप इमाम अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातिमा ज़हरा स.अ. के बेटे और पैग़म्बरे इस्लाम स.ल.व.व. के नवासे हैं।
आप की विलादत 15 रमज़ान सन 3 हिजरी शहरे मदीना में हुई और आप की विलादत के बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.) ने आप को गोद में लेकर आप के कान में अज़ान और अक़ामत कही और फिर आप का अक़ीक़ा किया, एक भेड़ की क़ुर्बानी की और आप के सर को मूंड कर बालों के वज़न के बराबर चांदी का सदक़ा दिया।
पैग़म्बरे आज़म (स.ल.) ने आप का नाम हसन रखा और कुन्नियत अबू मोहम्मद रखी, आप के मशहूर लक़ब सैय्यद, ज़की, मुजतबा वग़ैरह हैं।
आप की इमामत:
इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने वालिद हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद ख़ुदा के हुक्म और इमाम अली अलैहिस्सलाम की वसीयत के मुताबिक़ इमामत और ख़िलाफ़त की ज़िम्मेदारी संभाली और लगभग 6 महीने तक मुसलमानों के मामलात को हल करते रहे और इन्हीं महीनों में मुआविया इब्ने अबी सुफ़ियान जो इमाम अली अलैहिस्सलाम और उनके ख़ानदान का खुला दुश्मन था और जिसने कई साल हुकूमत की लालच में जंग में गुज़ारे थे उसने इमाम हसन अलैहिस्सलाम की हुकूमत के मरकज़ यानी इराक़ पर हमला कर दिया और जंग शुरू कर दी।
लोगों का इमाम हसन अलैहिस्सलाम की बैअत करना:
जिस समय मस्जिदे कूफ़ा में इमाम अली अलैहिस्सलाम के सर पर उन्नीसवीं रमज़ान के नमाज़े सुबह में सजदे की हालत में वार किया गया और आप ज़ख़्म की वजह से बिस्तर पर थे उस समय आप ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि अब वह नमाज़ पढ़ाएंगे और ज़िंदगी के आख़िरी लम्हों में आप को अपना जानशीन होने का एलान करते हुए कहा कि मेरे बेटे! मेरे बाद तुम हर उस चीज़ के मालिक हो जिसका मैं मालिक था, तुम मेरे बाद लोगों के इमाम हो और आप ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम, मोहम्मद हनफ़िया, ख़ानदान के दूसरे लोगों और बुज़ुर्गों को इस वसीयत पर गवाह बनाया, फिर आप ने अपनी किताब और तलवार आप के हवाले की और फ़रमाया मेरे बेटे! पैग़म्बर (स) ने हुक्म दिया था कि अपने बाद तुमको अपना जानशीन बनाऊं और अपनी किताब और तलवार तुम्हारे हवाले करूं बिल्कुल उसी तरह जिस तरह पैग़म्बरे इस्लाम (स.ल.) ने मेरे हवाले किया था और मुझे हुक्म दिया था कि मैं तुम्हें हुक्म दूं कि तुम अपने बाद इन्हें अपने भाई हुसैन (अ.स.) के हवाले कर देना।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम मुसलमानों के बीच आए और मिंबर पर तशरीफ़ ले गए, मस्जिद मुसलमानों से छलक रही थी, अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास खड़े हुए और लोगों से इमाम हसन अलैहिस्सलाम की बैअत करने को कहा, कूफ़ा, बसरा, मदाएन, इराक़, हिजाज़ और यमन के लोगों ने पूरे जोश और पूरी ख़ूशी से आप की बैअत की, लेकिन मुआविया अपने उसी रवैये पर चलता रहा जो रवैया उसने इमाम अली अलैहिस्सलाम के लिए अपना रखा था।
मुआविया की चालबाज़ियां:
इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने इमामत और ख़िलाफ़त की ज़िम्मेदारी संभालते ही शहरों के गवर्नर और हाकिमों की नियुक्ति शुरू कर दी और सारे मामलात पर नज़र रखने लगे, लेकिन अभी कुछ ही समय गुज़रा था कि लोगों ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम की हुकूमत का अंदाज़ और तरीक़ा बिल्कुल उनके वालिद की तरह पाया कि जिस तरह इमाम अली अलैहिस्सलाम अदालत और हक़ की बात के अलावा किसी रिश्तेदारी या बड़े ख़ानदान और बड़े बाप की औलाद होने की बिना पर नहीं बल्कि इस्लामी क़ानून और अदालत को ध्यान में रखते हुए फ़ैसला करते थे बिल्कुल यही अंदाज़ इमाम हसन अलैहिस्सलाम का भी था, यही वजह बनी कि कुछ क़बीलों के बुज़ुर्गों ने जो ज़ाहिर में तो इमाम हसन अलैहिस्सलाम के साथ थे लेकिन अपने निजी फ़ायदों तक न पहुंचने की वजह से छिपकर मुआविया को ख़त लिखा और कूफ़ा के हालात का ज़िक्र करते हुए लिखा कि जैसे ही तेरी फ़ौज इमाम हसन अलैहिस्सलाम की छावनी के क़रीब आए हम इमाम हसन अलैहिस्सलाम को क़ैद कर के तुम्हारी फ़ौज के हवाले कर देंगे या धोखे से उन्हें क़त्ल कर देंगे और चूंकि ख़वारिज भी हाश्मी घराने की हुकूमत के दुश्मन थे इसलिए वह भी इस साज़िश का हिस्सा बने।
इन मुनाफ़िक़ों के मुक़ाबले कुछ इमाम अली अलैहिस्सलाम के शिया और कुछ मुहाजिर और अंसार थे जो इमाम हसन अलैहिस्सलाम के साथ कूफ़ा आए थे और वहीं इमाम हसन अलैहिस्सलाम के साथ थे, यह वह असहाब थे जो ज़िंदगी के कई अलग अलग मोड़पर अपनी वफ़ादारी और ख़ुलूस को साबित कर चुके थे, इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने मुआविया की चालबाज़ी और साज़िशों को देखा तो उसे कई ख़त लिखकर उसे इताअत करने और साज़िशों से दूर रहने को कहा और मुसलमानों के ख़ून बहाने से रोका, लेकिन मुआविया इमाम हसन अलैहिस्सलाम के हर ख़त के जवाब में केवल यही बात लिखता कि वह हुकूमत के मामलात में इमाम हसन अलैहिस्सलाम से ज़ियादा समझदार और तजुर्बेकार है और उम्र में भी बड़ा है।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कूफ़े की जामा मस्जिद में सिपाहियों को नुख़ैला चलने का हुक्म दिया, अदी इब्ने हातिम सबसे पहले वह शख़्स थे जो इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इताअत करते हुए घोड़े पर सवार हुए और भी बहुत से अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की सच्ची मारेफ़त रखने वालों ने भी इमाम हसन अलैहिस्सलाम की इताअत करते हुए नुख़ैला का रुख़ किया।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने एक सबसे क़रीबी चाहने वाले उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास जो आप के घराने से थे और जिन्होंने लोगों को इमाम की बैअत के लिए उभारा भी था उन्हें 12 हज़ार की फ़ौज के साथ इराक़ के उत्तरी क्षेत्र की तरफ़ भेजा, लेकिन वह मुआविया की दौलत के जाल में फंस गया और इमाम हसन अलैहिस्सलाम का सबसे भरोसेमंद शख़्स मुआविया ने उसे 10 लाख दिरहम जिसका आधा उसी समय दे कर उसे छावनी की तरफ़ वापस भेजवा दिया और इन 12 हज़ार में से 8 हज़ार तो उसी समय मुआविया के लश्कर में शामिल हो गए और अपने दीन को दुनिया के हाथों बेच बैठे।
उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास के बाद लश्कर का नेतृत्व क़ैस इब्ने साद को मिला, मुआविया की फ़ौज और मुनाफ़िक़ों ने उनके शहीद होने की अफ़वाह फैलाकर लश्कर के मनोबल को कमज़ोर और नीचा कर दिया, मुआविया के कुछ चमचे मदाएन आए और इमाम हसन अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात की और इमाम द्वारा सुलह करने की अफ़वाह उड़ाई और इसी बीच ख़वारिज में से एक मनहूस और नजिस वुजूद रखने वाले ख़बीस ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम के ज़ानू (जांघ) पर नैज़े से ऐसा वार किया कि नैज़ा अंदर हड्डी तक ज़ख़्मी कर गया, इसके अलावा और भी दूसरे कई हालात ऐसे सामने आ गए जिससे इमाम हसन अलैहिस्सलाम के पास मुसलमानों ख़ास कर अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के सच्चे चाहने वालों का ख़ून बहने से रोकने के लिए अब सुलह के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं था।
मुआविया ने जैसे ही माहौल को अपने हित में पाया तुरंत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सामने सुलह की पेशकश की, इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने इस बारे में अपने सिपाहियों से मशविरा करने के लिए एक ख़ुत्बा दिया और उन लोगों के सामने दो रास्ते रखे, या मुआविया से जंग कर के शहीद हो जाएं या सुलह कर के अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के सच्चे चाहने वालों की जान को बचा लिया जाए..., बहुत से लोगों ने सुलह करने को ही बेहतर बताया लेकिन कुछ ऐसे भी कमज़ोर ईमान और कमज़ोर अक़ीदा लोग थे जो इमाम हसन अलैहिस्सलाम को बुरा भला कह रहे थे (मआज़ अल्लाह), आख़िरकार इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने लोगों की सुलह करने वाली बात को क़ुबूल कर लिया, लेकिन इमाम ने सुलह इसलिए क़ुबूल की ताकि मुआविया को सुलह की शर्तों का पाबंद बनाकर रखा जाए क्योंकि इमाम हसन अलैहिस्सलाम जानते थे मुआविया जैसा इंसान ज़ियादा दिन सुलह की शर्तों पर अमल करने वाला नहीं है और वह बहुत जल्द ही सुलह की शर्तों को पैरों तले रौंद देगा जिसके नतीजे में उसके नापाक इरादे और बे दीनी और वादा ख़िलाफ़ी उन सभी लोगों के सामने आ जाएगी जो अभी तक मुआविया को दीनदार समझ रहे हैं।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने सुलह की पेशकश को क़ुबूल कर के मुआविया की सबसे बड़ी साज़िश को नाकाम कर दिया, क्योंकि उसका मक़सद था कि जंग कर के इमाम और अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के चाहने वाले इमाम के साथियों को क़त्ल कर के उनका ख़ात्मा कर दे, इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने सुलह कर के मुआविया की एक बहुत बड़ी और अहम साज़िश को बे नक़ाब कर के नाकाम कर दिया।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत:
इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने दस साल इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली और मुसलमानों की सरपरस्ती की और बहुत ही घुटन के माहौल में आप ने ज़िंदगी के आख़िरी कुछ सालों को गुज़ारा जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता आख़िरकार मुआविया की मक्कारी और बहकावे में आकर आप की बीवी जोअदा बिन्ते अशअस द्वारा आप को ज़हर देकर शहीद कर दिया गया और फिर आप के जनाज़े के साथ जो किया गया उसकी मिसाल इतिहास में कहीं नहीं मिलती और वह यह कि आपके जनाज़े पर तीर बरसाए गए और आपको अपने नाना रसूले ख़ुदा (स) के पहलू में दफ़्न तक होने नहीं दिया गया.