हौज़ा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, शहीदे सालिस अलैहिर रहमा की शहादत के दिन मोअस्सेसा इमाम मूसा इब्नने जाफर (अ) द्वारा एक सेमिनार का आयोजन किया गया था, जो इमाम अली की दरगाह की देखरेख में इमाम हसन के गेस्ट हाउस में हुआ था । नजफ अशरफ कॉलेज ऑफ एजुकेशन के ट्रस्टियों, वरिष्ठ शिक्षकों और विद्वानों के कार्यालयों के प्रतिनिधियों की भागीदारी को मुख्य आकर्षण माना गया।
शेख बशीर ताराबी नजफी ने पवित्र कुरान के पाठ के साथ संगोष्ठी शुरू की, जिसके बाद सैयद अबू समामा आबिदी ने अमीरुल मोमिनीन (अ) की बारगाह मे कसीदा ए कौसरया पेश किया और फिर शहीदे सालिस के मुजाहेदाना जीवन पर भाषणों की एक श्रृंखला पेश की। जिसमें इन सभी व्यक्तित्वों ने क्रम से प्रकाश डाला:
1_ हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद इज़्ज़ अल-दीन अल-हकीम, आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद मुहम्मद सईद अल-हकीम के पुत्र हैं।
2_ ईरान के सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि, आयतुल्लाह सय्यद मुजतबा हुसैनी,
3_ हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन शेख अली नजफी आयतुल्लाहिल उज्मा शेख हाफिज बशीर हुसैन नजफी के बेटे,
4- समापन भाषण महान विचारक और उपदेशक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अल-सैयद मुहम्मद अल-मुसवी द्वारा दिया गया था।
इन बुजुर्गों ने कुछ अहम बातों पर ध्यान दिया:
1- मोअस्सेसा मूसा इब्ने जाफ़र (अ) ने शोध, संकलन और अनुवाद की इस पहल की सराहना की।
2-अनुसंधान, संकलन और अनुवाद कोई आसान काम नहीं है, बल्कि एक गंभीर जिम्मेदारी है जिसमें धर्म के छात्रों को आगे आना चाहिए।
3- भारतीय विद्वानों की मज़लूमित इससे ज्यादा और क्या हो सकती है कि चुनिंदा विद्वानों के अलावा अधिकांश विद्वान अपने जीवन और लेखन से वंचित हैं।
4- ज्वार-ए-अमीर-उल-मोमिनीन (अ) में रहने और भारतीय विद्वानों के कार्यों पर शोध करने और उनकी जांच करने का इससे अच्छा अवसर क्या हो सकता है।
इन बुजुर्गों के अलावा ज्ञान के क्षेत्र के जाने-माने विद्वान अयातुल्ला सैयद सादिक खुरसानी डैम ज़िल्लाह, सैयद मक्की मिलानी, सैयद अहमद बहरुल उलूम, शेख साजिद नजफी, शेख विस्सम, शेख अबू हसन घरवी और भारत और पाकिस्तान के प्रतिष्ठित लोग इमाम अली (एएस) के कार्यालय की ओर से श्री अबू अली ने प्रतिनिधित्व किया। और इस सेमिनार का आयोजन मौलाना सैयद हुसैन अब्बास जैदी ने किया था।
दर्शकों के सामने शहीद के कुछ लेख प्रस्तुत किए गए, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं: अहक़ाक उल-हक़, मजालिस उल-मोमिनिन, अस-सवारेमुल मुहर्रेका, मसाइब अल-नवासिब, अस-सेहाब इल-मुतीर फ़ी आयत तत्हीर, कश्फ़ उल-अवार, कश्फ़ उल-कुना और साथ ही शहीद की कुछ और उर्दू और फारसी पुस्तकें प्रस्तुत की गईं।
कार्यक्रम के अंत में संस्था की ओर से मौलाना शब्बीर आगा करबलाई ने प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।