हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आयतुल्लहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,हज़रत इमाम मेंहदी अ.स.के जन्म दिवस की ईद, भविष्य पर केन्द्रित दो चीज़ें मिलती हैं।
1:(उम्मीद) इमामों और पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म दिवस और पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत (पैग़म्बरी के एलान) की ईद और बाक़ी ईदें, इस ईद से बुनियादी फ़र्क़ रखती हैं। उन ईदों में सारी निगाहें अतीत की ओर हैं, इस ईद में सारी निगाहें भविष्य की ओर हैं।
इमामों के जन्म दिवस और पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत की ईदों में, अतीत में घटने वाली घटना की कि जिसका असर बहती हुयी नदी की तरह इतिहास में जारी है, हम तारीफ़ करते हैं, अतीत की सराहना करते हैं, अतीत को देखते हैं हालांकि जो कुछ गुज़रा है उसका हमारी मौजूदा ज़िन्दगी और भविष्य पर भी असर पड़ता है, लेकिन इस ईद में सारा ध्यान भविष्य पर है, भविष्य पर निगाह से क्या मतलब है?
यानी इस निगाह में दो चीज़ें हैं: एक उम्मीद और दूसरी कोशिश। जब इंसान की निगाह भविष्य पर हो, तो इस निगाह के नतीजे में मिलने वाली पहली चीज़ उम्मीद है।
2:(कोशिश) दूसरी चीज़ कोशिश है, कोशिश। कोई भी निश्चित मंज़िल, कोशिश पर निर्भर है। आप किसी ऐसे पहाड़ के आंचल में खड़े रहें कि जिसपर चढ़ा जा सकता है, तो क्या वहाँ पहुंचना मुमकिन है? जी, क्या वहाँ पहुंचना निश्चित है? जी हाँ कुछ लोग वहाँ ज़रूर पहुंचेंगे, लेकिन वहाँ पहुंचना एक चीज़ पर निर्भर है और वह है कोशिश कदम बढ़ाना ज़रूरी है
अगर यहीं बैठ रहे, देखते रहे, तारीफ़ करते रहे, ख़ुश होते रहे, ताली बजाते रहे उन लोगों के लिए जो जा रहे हैं, तो आप नहीं पहुंच पाएंगे। कोशिश के अलावा कोई रास्ता नहीं है।
इमाम ख़ामेनेई,