۳ آذر ۱۴۰۳ |۲۱ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 23, 2024
Ansar

हौज़ा / हज़रत इमाम हसन अस्करी अ.स. 8 रबीउल अव्वल सन 260 हिजरी हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत का दिन है उन्होंने अपनी 28 साल की ज़िन्दगी में दुश्मनों की ओर से बहुत से दुख उठाए और तत्कालीन अब्बासी शासक ‘मोतमद’ के हाथों इराक़ के शहर सामर्रा में ज़हर से आठ दिन तक पीड़ा सहने के बाद शहीद हो गए

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत इमाम हसन अस्करी अ.स. 8 रबीउल अव्वल सन 260 हिजरी हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत का दिन है। उन्होंने अपनी 28 साल की ज़िन्दगी में दुश्मनों की ओर से बहुत से दुख उठाए और तत्कालीन अब्बासी शासक ‘मोतमद’ के किराए के टट्टुओं के हाथों इराक़ के शहर सामर्रा में ज़हर से आठ दिन तक पीड़ा सहने के बाद इस दुनिया से चल बसे।

हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को उनके महान पिता हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की क़ब्र के निकट दफ़्न किया गया। इस अवसर पर हर साल इस्लामी जगत में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजन अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम से श्रद्धा रखने वाले, हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का ग़म मनाते हैं।

  ग्यारहवें इमाम का नाम हसन, कुन्नियत अबू मोहम्मद और मशहूर लक़ब अस्करी है। उन्हें अस्करी इसलिए कहा जाता है क्योंकि तत्कालीन अब्बासी शासक ने हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और उनके पिता हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को अस्करिया नामक एक सैन्य क्षेत्र में रहने पर मजबूर किया था ताकि अब्बासी शासक उन पर नज़र रख सके। यही कारण है कि हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम अस्करियैन के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।

  मुसलमान पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजन (अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम) की हदीसों के अनुसार यह जानते थे कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के वंश से बारहवें इमाम दुनिया को अत्याचार से मुक्त कर देंगे और सत्य व एकेश्वरवाद (तौहीद) का झंडा फहराएंगे तथा नास्तिकता व अधर्मिकता को जड़ से उखाड़ फेंकेंगे इसलिए वे हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के इस बेटे के जन्म लेने का इंतेज़ार कर रहे थे। दूसरी ओर अल्लाह के धर्म के दुश्मन व सांसारिक मोहमाया में खोए हुए लोग इस घटना की कल्पना से ही कांप जाते थे।

यही कारण था कि इन लोगों ने हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम और हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को निरंतर अपनी निगरानी में रखा ताकि संसार के मुक्तिदाता को जन्म लेने से रोक दें या उन्हें पैदा होते ही क़त्ल कर दें। किन्तु पवित्र क़ुरआन की आयतों के अनुसार, अल्लाह का इरादा पीड़ितों को मुक्ति दिलाना और दुनिया में न्याय व सत्य का ध्वज लहराना है और हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के वंश से हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ जो धर्म की सत्ता के ज़रिए ख़ुदा के आदेश को पूरी दुनिया पर लागू करेंगे।

  हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन में कुल 28 बसंत देखें किन्तु इस छोटी सी ज़िन्दगी में भी उन्होंने पवित्र क़ुरआन की आयतों की व्याख्या (तफ़सीर) और धर्मशास्त्र पर आधारित अपनी यादगार रचना छोड़ी है। मुसलमानों के वैज्ञानिक अभियान में उनका प्रभाव पूरी तरह स्पष्ट है। ग्यारहवें इमाम हज़रत हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने बहुत सी रुकावटों के बावजूद, अपने श्रद्धालुओं का इस तरह वैचारिक प्रशिक्षण किया कि वे हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की लंबी अनुपस्थिति (ग़ैबत) के लिए तैयार हो जाएं और ख़ुद को उनके ज़ुहूर के लिए तैयार करें।

  ग्यारहवें इमाम की इमामत के काल अर्थात तीसरी शताब्दी हिजरी के पहले अर्ध में विभिन्न मत इस्लामी समाज में दुश्मनों के तरफ़ से अस्तित्व में लाएं गए थे। इन मतों के अनुयायी अपने ग़लत विचारों के विस्तार की कोशिश में लगे हुए थे। हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम इन भ्रष्ट मतों की त्रुटियों को बयान करते थे और शीयों को इन मतों से दूर रखने की कोशिश करते थे। इसी प्रकार वह अपने प्रतिनिधियों (नाएबीन) के ज़रिए मोमिनों के मामले को हल करते थे। इन भ्रष्ट मतों में ग़ाली, सूफ़ी, मोफ़व्वेज़ा, वाक़ेफ़िया, सनविया और झूठी हदीस गढ़ने वाले उल्लेखनीय हैं।

  ग़ाली मत (फ़िरक़े) के अनुयायी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजन अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम को ख़ुदा के दर्जे तक पहुंचा देते थे। उनके संबंध में हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम कहते थे: “यह हमारे धर्म की बात नहीं है। इन बातों से दूर रहो।”

  इसी प्रकार हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने एक कथन में सूफ़ियों के भ्रष्ट विचारों का उल्लेख किया और शीयों को उनके साथ मेल-जोल रखने से रोका।

  मोफ़व्वेज़ा एक और भ्रष्ट मत (फ़िरक़ा) था। जिसका यह मानना था कि अल्लाह ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) को पैदा करने के बाद सृष्टि के सारे मामले उनके और उनके पवित्र परिजनों अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के हवाले कर दिए। ऐसे लोगों के संबंध में उन्होंने कहा: “वे झूठ कहते हैं। हमारे दिल ख़ुदा के इरादे के अधीन हैं। जो ख़ुदा चाहता है वही हम भी चाहते हैं।”

  हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम वाक़ेफ़िया मत (फ़िरक़ा) से भी बेज़ारी दर्शाते थे। वाक़ेफ़िया फ़िरक़ा बारह इमामों को नहीं मानते थे। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का कथन है: “अगर किसी ने हमारे अंतिम की इमामत का इन्कार किया मानो उसने हमारे पहले की इमामत का इन्कार किया है।”

  हमारे लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की ख़ुशनूदी व रज़ामंदी हासिल करने का बेहतरीन तरीक़ा उनके कथनों का अध्ययन और उनके आचरण का अनुसरण है। इसी संदर्भ में हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का मूल्यवान कथन आपकी सेवा में पेश कर रहे हैं: “मैं तुम्हें ख़ुदा से डरने, धर्म में नैतिकता, सच्चाई के लिए कोशिश करने, जिसने तुम्हें अमानत सौंपी है चाहे वह भला व्यक्ति हो या बुरा, उसकी अमानत की रक्षा करना, देर तक सजदा करने और पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की नसीहत करता हूं। हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा (स) इसीलिए आए थे।

दूसरे मुसलमानों की जमाअत में अर्थात सामूहिक रूप से अदा की जाने वाली नमाज़े जमाअत में शामिल हो। उनके मृतकों की शव यात्रा में शामिल हो और उनके मरीज़ों का हालचाल पूछो। उनके अधिकारों को अदा करों क्योंकि तुम में जो भी धर्मपरायण, बात में सच्चा, अमानतदार, अच्छे स्वभाव का होगा उसके बारे में कहा जाएगा कि शीया है और इस बात से हमें ख़ुशी होगी। अल्लाह से डरो। हमारे लिए शोभा बनो न कि शर्म का कारण। अच्छी बातों से हमें याद करो और हर प्रकार की बुरी बातों को हम से दूर करो। क्योंकि हम हर अच्छाई के पात्र और हर बुरायी से दूर हैं।

अल्लाह की किताब में हमारे अधिकार और पैग़म्बरे इस्लाम (स) से हमारे संबंध का उल्लेख है। ख़ुदा ने हमे पवित्र क़रार दिया है। हमारे अलावा कोई भी इस स्थान का दावा नहीं कर सकता, अगर ऐसा करता है तो वह झूठा है। ख़ुदा को ज़ियादा से ज़ियादा याद करों। मौत को हमेशा याद रखो। पवित्र क़ुरआन की ज़ियादा तिलावत करों और पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर बहुत ज़ियादा दुरूद भेजो।(अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम)

टैग्स

कमेंट

You are replying to: .