हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, इस हदीस को "शरह नहज अल-बलागा इब्न अबी अल-हदीद" पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
قال الامام العلى عليه السلام:
اِذَ ا احْتَجْتَ اِلَى الْمَشْوَرَةِ فى اَمْرٍ قَدْ طَرَاَ عَلَيْكَ فَاسْتَبْدِهِ بِبِدايَةِالشُّبّانِ ، فَاِنَّهُمْ اَحَدُّ اَذْهانا وَ اَسْرَعُ حَدْسا، ثُمَّ رُدَّهُ بَعْدَ ذالِكَ اِلى رَاْىِ الْكُهولِ وَ الشُيوخِ لِيَسْتَعْقِبوهُ وَ يُحْسِنُوا الاِْخْتيارَ لَهُ، فَاِنَّ تَجْرِبَتَهُمْ اَكْثَرُ
हजरत इमाम अली (अ.स.) ने फ़रमाया:
जब आपको परामर्श की आवश्यकता हो, तो पहले युवाओं के पास जाएं, क्योंकि उनका दिमाग तेज़ होता है और मामले की तह तक बहुत जल्दी पहुँच जाता है, फिर इसे (परिणाम) मध्यम आयु वर्ग और वृद्धों के सामने रखें, ताकि वे इसे सोच सकें इसका अंत देखें और बेहतर रास्ता चुनें क्योंकि उनके पास अधिक अनुभव है।
शरह नहज अल-बालागा इब्न अबी अल-हदीद, भाग 20, पेज 337, हदीस 866