हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,शेख़ हज़ीन लाहीजी 27 रबीउस्सानी 1103 हिजरी में ईरान के मशहूर शहर “इस्फ़हान” में पैदा हुए आपके वालिद अबुतालिब जय्यद आलिम थे उनका आबाई वतन “आसतारा” था शेख़ हज़ीन का सिलसिलाए नसब सातवीं सदी हिजरी के आरिफ़ (शेख़ सफ़ीउद्दीन) के मुरशिद शेख़ इब्राहीम ज़ाहिद गीलानी थें,
शेख़ अली हज़ीन ने 4 बरस की उम्र में (मुल्ला शाह मोहम्मद शीराज़ी) के पास अपनी तालीम का आग़ाज़ किया (मुल्लाह हुसैन क़ारी) से तजवीद व क़िराअते क़ुरान के फ़ुनून सीखे और शरहे जामी बार काफ़या शरहे मताले और मनला याहज़रों हुल फ़क़ीह जैसे दुरूस अपने वालिद से पढे।
उसी दौरान उनके अंदर मलका ए शायरी परवान चढ़ा हज़ीन ने अपने वालिद से सफ़र की हालत में इल्मी इस्तेफ़ादा करते हुए शरहे तजरीद व ज़ुबदतुल उसूल पढ़ी, मौसूफ़ ने (इंजील) मसीही आलिम (आवानूस)से और (तौरेत) इस्फ़हान के एक यहूदी आलिम शुएब से पढ़ी,
हज़ीन फ़ारस के शहर “बैज़ा” में एक ज़रतुशती आलिम से आशना हुए और इन ज़रतुशतियों के बुनयादी अक़ाइद की तालीम हासिल की
सन ११२३ हिजरी में आपके वालेदैन का इंतेक़ाल हो गया जिसके बाद दादी ओर छोटे भाईयों की किफ़ालत आप ही के ज़िम्मे आ गई
इस्फ़हान पर आफगनयों के हमले से दादी और दो भाइयों का इंतेक़ाल हो गया वो कुतुबखाना जो उन्हें उनके वालिद से मीरास में मिला था तहस नहस हो गया और खुद भी शदीद बीमार हो गए।
मौसूफ़ उस पुरआशोब माहौल में इस्फ़हान से बाहर निकलने में कामयाब हो गये पहले तो “खानसार” और उसके बाद “ख़ुर्रमाबाद” पहुचे ख़ुर्रमाबाद में रहते हुए उन्होने शरहे इशारात, काफ़ी, और तफ़सीरे बैज़ावी की तदरीस की, उसके बाद हमदान की तरफ रवाना हुए और शूस्त्र व हुवैज़ा के रास्ते बसरा गये हज का इरादा किया लेकिन बीमारी की वजह से ईरान वापस आ गये,
उसके बाद “किरमानशाह” और “तुवैसिरकान” के रास्ते नजफ़ चले गये और तीन साल वहाँ गुज़ारने के बाद ईरान वापस आ गाए नजफ़ से वापसी पर पहले तेहरान फिर इस्फ़हान गये और वहाँ ६ महीने तक क़याम किया कुछ अरसे बाद शाह तहमास्ब की बादसुलूकी के पेशे नज़र इस्फ़हान को खैराबाद कहा।
हज़ीन ने ११४५ हिजरी में हज का सफ़र किया हज के बाद २ साल मुलतान में क़याम किया और फ़िर देहली आ गये इस अरसे में वो मुस्तक़िल बीमार थे देहली से बनारस का रुख़ किया और आखिरी उम्र तक वहीं रहे बनारस के लोग उनका बेहद एहतराम करते ओर उन्हें एक पाक इंसान मानते थें,
उनके उस्ताद (खलीलुल्लाह तालेक़ानी)ने उन्हें (हज़ीन)तखल्लुस अता करके उनकी शायरी को आशकार किया और जब एक महफिल में शेख़ अली हज़ीन ने अपने वालिद की मौजूदगी में (मोहतशिम काशानी) के अशआर के जवाब में अपने अशआर पढे तो उनके वालिद ने भी उनकी हौसला अफ़ज़ाइ की, उनके अशआर उस ज़माने में सरज़मीने हिंदुस्तान पर बहुत मशहूर थे और बहुत लोगो ने उनकी हिमायत या नक्द में रिसाले तहरीर किए
जिस से हिंदुस्तान के अवाम में उनके अशआर की अहमियत व मक़बुलियत का अंदाज़ा होता है , हज़ीन ने अक्सर आसनाफ़े शेरी में तबा आज़माई की मोसूफ़ ने अहलेबैते अतहार की शान में मुताअद्दिद कलाम तहरीर किए
उनकी तालीफ़ात में ५३ किताबें शामिल हैं जिनमें बहुत सी किताबें इल्मी व दीनी मोज़ूआत का वाज़ेह शाहकार हैं हज़ीन की ग़ज़लयात का दीवान तक़रीबन सात हज़ार अशआर पर मुशतमिल हैं।
उनकी ग़ज़लें हिंदुस्तानी वा इस्फ़हानि तर्ज़े शायरी के आख़री व बरजसता नमूनों में से हैं उनकी ग़ज़ल के अशआर ज़्यादातर आशेक़ाना व आरेफ़ाना होते हैं।
उनहोंने अपने इरफ़ानी अशआर में इराक़ी तर्ज़े सुख़न की खुसूसयात को बाक़ी रखा है अक्सर ओक़ात अत्तार, मौलवी,और सैय्यद कासिम अनवार की पैरवी की हुसैनी संभली हज़ीन को क़दीम व जदीद शायरी का उस्ताद मानते थे, शेख आली हज़ीन ने जहां फ़ारसी ज़बान मे अशआर कहे वहीं अरबी ज़बान में भी तबा आज़माई की हैं।
हज़ीन ने खमसा निज़ामी की मानिन्द पाँच दीवान नज़्म किए उनका पहला शेरी मजमुआ मसनवी साक़ीनामे पर मुशतमिल है जिसमें एक हज़ार अशआर हैं।
दूसरा मजमुआ दीवाने तज़केरतुल आशेक़ीन है जिसमें दस हज़ार अबयात हैं तीसरा मजमुआ तक़रीबन चार हज़ार बैत पर मुशतमिल है चौथे दीवान में १२०० अशआर हैं और उसमें क़साइद, ग़ज़लयात, रुबाइयात, क़तआत और चमन व अंजुमन खराबात,मतमहुल अंज़ार, फरहंग नामा सफ़ीर ए दिल जैसी मसनवीयात शामिले हाल हैं।
पांचवा दीवान हिंदुस्तान में अपने क़याम के दौरान तदवीन किया जिसकी तरफ़ फ़क़त मुक़दमा ए तज़किरतुल मुआसेरीन में इशारा किया गया है मोहम्मद अली हज़ीन की मंज़ूम तसनीफ़ात में शरहे तजरीद तारीखे ईरान व हिन्द और तारीखे हज़ीन क़ाबिले ज़िक्र हैं।
उन्होने अपनी ज़िंदगी में बहुत सारे सफ़र किए और आख़िर में शहर ए बनारस में ज़िंदगी बसर की आखिरकार यह इलमों अमल का दरख्शाँ आफ़ताब ११ जमादीउल अव्वल ११८० हिजरी में हिंदुस्तान के शहर (बनारस)की सरज़मीन पर गुरूब हो गया और मोमेनीन की कसीर तादाद के साथ दरगाहे फातेमान में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया आपका मक़बरा हिंदुस्तान के लोगों की ज़ियारतगाह बना हुआ हैं।
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैय्यद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द 2 पेज 199 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ईस्वी।