۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
शौकत भारती

हौज़ा / 1400 साल से मुसलमानों के बीच एक ही अहम सवाल? मोहम्मद स.व. के बाद कौन?? "आल" या "असहाब"?? इस सवाल का जवाब बहुत ही आसानी से समझाने की एक छोटी सी कोशिश।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी।

लेखकः शौकत भारती

रसूलअल्लाह स.व. के सहाबियों से लेकर कयामत तक पैदा होने वाले मुसलमानों को नमाज़ के दुरूद में एक बात का इकरार और ऐलान करना पड़ता है और हमेशा करना पड़ेगा कि मोहम्मद के बाद आले मोहम्मद हैं।
दुरूद हमेशा यही बताता और समझाता है कि मोहम्मद के बाद असहाबे मोहम्मद नहीं है बल्कि आले मोहम्मद हैं। दुरूद में बताए हुए अनमोल फार्मूले के खिलाफ अमल करना ही इख़तलाफ़ और गुमराही की जड़ है।
इत्तेहाद को फ़रोग़ और इख़तलाफ़ को खत्म करके जन्नत तक पहुंचने का ये अनमोल फार्मूला अल्लाह ताला ने अपने रसूल के जरिए नमाज़ के दुरुद में इसलिए दिया है कि महशर के दिन कोई भी नमाज़ी ये ना कह सके कि हम जानते ही नहीं थे कि मोहम्मद के बाद आल हैं,या असहाब, हमको तो हमारे मौलवियों ने असहाब बताया था वही हमने मान लिया।
अल्लाह ताला ने नमाज़ में दुरुद को वाजिब कर के नमाज़ के अंदर ही ऐसा इंतजाम कर दिया कि अपने घर में या ख़ानाए काबा में नमाज़ पढ़ने या पढ़ाने वाले दिन में 5 बार दुरूद की शक्ल में यह फार्मूला याद कर लें और समझ लें और उन्हें कोई गुमराह न कर सके कि मोहम्मद के 
बाद आले मोहम्मद नहीं हैं असहाबे मोहम्मद हैं। इतना ही नहीं हर नमाजी ये भी जान लें कि जिन पर दुरुद जाता है वो और हैं और जो दुरुद भेजते हैं वो और हैं।
रसूल अल्लाह के दौर से लेकर क़यामत तक पैदा होने वाले सभी नमाज़ी इस बात को अच्छी तरह से समझ लें कि नमाज़ में जिन पर दुरूद पढ़ा जाता है वह मोहम्मद और आले मोहम्मद बे ऐब हैं पाक हैं और हर नमाज़ी से अफ़ज़ल और आला हैं, दुरूद वाले ही कायनात के सबसे बड़े इनाम वाले हैं,नमाज़ का दुरूद रसूल और आले रसूल पर अल्लाह का एक ऐसा इनाम है जिसकी कोई मिसाल ही नहीं है इस लिए कि इन पर खुद अल्लाह दुरूद भेजता है और जिस अमल को अल्लाह अंजाम दे उसकी बराबरी हो ही नहीं सकती।
याद रखिए दुरूद वाले ही ऐसे इनाम वाले हैं की जिन पर अल्लाह अपनी रहमतें और बरकतें नाजिल करता रहता है और अल्लाह की रहमतों और बरकतों का सिलसिला जारी और सारी है इन्हीं इनाम वालों का रास्ता ही सिराते मुस्तकीम है अगर दुरूद वाले इनाम वाले न होते और इनका रास्ता सिराते मुस्तकीम नहीं होता तो अल्लाह ताला कभी भी इन पर रहमतेँ और बरकतें नाजिल नहीं करता और अपनी ख़ालिस इबादत नमाज़ में कभी इन पर दुरूद भेजने का हुक्म न देता।
याद रखिए दुरूद वाले कभी भी न गुमराह हुए और ना कभी इन पर अल्लाह का ग़ज़ब ही नाज़िल हुआ और इन पर कब से अल्लाह बरकतें और रहमतेंं नाजिल कर रहा है इसका भी कोई अहाता नहीं कर सकता।
दुरूद वालों के रास्ते पर चले बगैर कोई भी शहीद, सालेह,या सिद्दीक़ भी नहीं बन सकता, कुरान इस बात का गवाह है की जिन पर आप नमाज़ में दुरुद भेजते हैं उसी दुरूद वाले रसूल की नुस्रत और मदद का मीसाक लेने के बाद ही अल्लाह ताला ने हज़रत आदम से लेकर हज़रत इस्माइल तक सब के सरों पर ताजे नबूवत सजाया था।
क्यों की अल्लाह और उसके मलाइका इन पर दुरुद भेजते थे इसी लिए हर एक ईमान वालों पर सूरये अहजाब की आयत नंबर 5 भेज कर नमाज़ में इस दुरूद का पढ़ना वाजिब कर दिया गया। दुरूद वाले इतने अज़ीम हैं की सूरये अहजाब की आयत नंबर 57 में ये भी वाजेह कर दिया गया की दुरूद वालों को अज़ीयत देने वालों पर दुनिया और आखिरत दोनों में अल्लाह उसके रसूल और उसके फरिश्तों की लानत है और दुरूद वालों को अज़ीयत देने वालों के लिए आखिरत में दर्दनाक अज़ाब भी तैयार है।
सूरह अहज़ाब की आयत नंबर 56 में दुरूद और 57 में लानत रख कर अल्लाह ने दुरूद और लानत दोनो के अमल की वजाहत भी कर दिया और ये भी बता दिया की ये दोनो अमल ऐसे हैं की खुद अल्लाह भी इन्हें अंजाम देता है। कुरान में साफ साफ वाजेह कर दिया गया की अल्लाह,रसूल,मलाइका और ईमान वाले भी दुरूद और लानत दोनों भेजते हैं। इनाम वाले मोहम्मद और आले मोहममद पर दुरुद और मोहम्मद और आले मोहम्मद को अजीयत देने वालों पर लानत शाएद इसी लिए सूरह अहज़ाब की आयत नंबर 56 और 57 साथ साथ हैं ताकि ईमान वाले दोनों आयतों पर गौर करने के ये समझ लें की दोनो की कितनी अहमियत है।याद रखिए बगैर दुरूद और लानत दोनों को भेजे कोई ईमान वाला हो ही नहीं सकता। यही वजह है कि ये दोनो अमल या अल्लाह रसूल और मलाइका करते है या फिर ईमान वाले दोनो अमल करते हैं मुनाफिक और बेईमान ये दोनो अमल कर ही नहीं सकते।यही वजह है की दुरूद वालों से मोहब्बत करने वाले दुरूद वालों पर दुरूद और दुरूद वालों को अज़ीयत देने वालों पर लानत भेज कर इन दोनो कुरानी अमल को अंजाम देते हैं। बे ईमान या मुनाफिक आयत नंबर 56 पर मजबूरन अमल कर के दुरूद तो जरूर भेज देते हैं मगर आयत नंबर 57 पर अमल करने से इनकार कर देते हैं और ऐसे लोग ही पक्के मुनाफिक़ हैं और ऐसे ही लोग दुरूद वालों को अजीयत देने वालों को 1400 साल से खताए इत्तेहादी,मुशाजराते सहाबा,कफफे लिसान और इजमाए अहले सुन्नत जैसे कुरान और हदीस मुखालिफ दांव पेच  में उलझा कर बचा और छिपा रहें हैं जिन्हे ईमान वाले कुरान और हदीस की रौशनी में मुसलसल बेनकाब करते रहते हैं। 
अफसोस है लानत जैसे जिस अमल को अल्लाह,रसूल और मलाइका अंजाम देते हैं उस अमल को जब कोई मोमिन अंजाम देता है तो इन मुनाफीको को बहुत बुरा लगता है इन लोगों ने अपने आप को अल्लाह, रसूल,मलाइका और ईमान वालों के खिलाफ खड़ा कर रखा है,याद रखिए की ईमान वाला सिर्फ़ वही है जो अल्लाह और रसूल के हुक्म पर अपने आप को सरेंडर कर दे वरना वो ईमान वाला नही है। 
दुरूद वाले नूरे मुतलक़ हैं और उनके बारे में अल्लामा इक़बाल भी साफ़-साफ़ ऐलान कर चुके हैं की बाद अज़ खुदा बुजुर्ग तू ही किस्सा मुख़्तसर।
दुरुद वाली नूरी मखलूक़ ही अल्लाह का First Creation हैं इनके ही वसीले और सदके में टाइम,स्पेस,जमीन आसमान चांद,सूरज, सय्यारे,आग,पानी, हवा,डिफरेंट एनर्जी,गैसेज, एलिमेंट्स,एटम लाइफ,लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम अल गरज सब कुछ खल्क हुआ है। दुरुद वाले ही अल्लाह का फर्स्ट क्रिएशन हैं और वो नूरे मुतलक सिवाय अल्लाह के किसी अदर क्रिएशन के मोहताज नहीं हैं बाक़ी सभी Other Creation First Creation यानी नूरे मुतलक यानी दुरूद वालों की मोहताज हैं। याद रखिए हर नमाजी अपनी नमाज़ में अल्लाह से सिराते मुस्तकीम मांगता है और सीरते मुस्तकीम दुरूद वालों का ही रास्ता है और यही अल्लाह के वो इनाम याफ्ता लोग हैं जिन पर कभी गजब नाजिल नहीं हुआ और न ये इनाम वाले कभी गुमराह रहे बल्कि हर वक्त अपने रब के मुतीय और फरमा बरदार बने रहे और हमेशा अल्लाह की रजा पर राजी रहे,जो भी नमाजी इनके रास्ते पर चलेगा इनके दुश्मनों और इनको अजीयत देने वालों से दूर रहे गा और इनाम वालों के रास्ते पर कायम रहने की अल्लाह से दुआ करता रहेगा वही न दिखाई देने वाले शैतान के  हमले से बचेगा सिर्फ़ वही सिराते मुस्तकीम पर कायम रहे गा और जो इनके रास्ते से हट गया या उसने इनाम वालों के दुश्मनों के लिए नर्म गोशा अपने दिल में पैदा कर लिया वह गुमराह होकर सीधा जहन्नम में चला जाएगा।
दुनिया के किसी भी मुल्ला या मुफ़्ती की हिम्मत नहीं है कि वह नमाज का दुरूद पढ़ कर यह साबित कर सके कि मोहम्मद के बाद आले मुहम्मद नहीं हैं बल्कि असहाबे मुहम्मद हैं...
या वह यह कह सके कि दुरुद वालों का रास्ता सिराते मुस्तकीम नहीं है या दुरुद वाले सबसे ज्यादा इनाम याफता नहीं है या माज अल्लाह ये गुमराह थे या माज अल्लाह इन पर कभी अल्लाह का गजब नाजिल हुआ। याद रखिए अल्लाह दिन में पांच बार इनके ही रास्ते पर चलने की दुआ मांगने के लिए हमे नमाज़ में बुला रहा है और हमसे इन इनम वालों पर दुरुद भेजवा रहा है ताकि हम ठीक से मुहम्मद व आले मोहम्मद की अजमत पहचान लें।
ये भी याद रखिए नमाज़ जैसी अजीम इबादत की क़ुबूलियत का सारा दारो मदार दुरुद पर है,नमाज़ में दुरुद भिजवा कर अल्लाह बार-बार हमसे इक़रार करवाता है कि मुहम्मद के फ़ौरन बाद आले मुहम्मद हैं और यह इक़रार और ऐलान दिन में 5 बार हर नमाज़ी को दुरूद भेजकर करना ही पड़ता है वरना उसकी पढ़ी हुई नमाज़ उसके मुंह पर मार दी जाएगी और जिसकी नमाज़ क़ुबूल नहीं उसका कोई अमल क़ुबूल ही नहीं होगा।
नमाज़ के दुरूद में मोहम्मद के बाद आले मुहम्मद ही हैं,नमाज़ का दुरूद इस बात का सबसे बड़ा सुबूत है जिसे कोई झुठला नहीं सकता आप खुद दुरूद का तर्जुमा देख कर फैसला करलें।
अब मैं उन लोगों से जो मोहम्मद के बाद आले मोहम्मद को ना मानकर असहाब को मानते हैं यह सवाल करता हूं कि तुम लोग अल्लाह के सामने नमाज़ में किए हुए अपने ही इक़रार और ऐलान पर नमाज़ के बाद भी क्यों कायम नहीं रहते???
नमाज़ में 5 बार मुहम्मद के बाद आले मोहम्मद को सबसे अफ़ज़ल मानने का इक़रार और एलान करते हो और नमाज़ का सलाम फेरने के फ़ौरन बाद मोहम्मद के बाद आले मोहम्मद को ना मानकर असहाबे मोहम्मद को मानते हो??
ये बताओ की किस बात में रसूल के असहाब रसूल की आल से अफजल हैं??
क्यों दुरूद में किए हुए इक़रार और ऐलान के बाद खुली हुई मुखालिफत करते हो?? 
क्यों अल्लाह और उसके रसूल की दुरुद के जरिए दिन में 5 बार सिखाई हुई बात की नाफ़रमानी करके अपने मुल्ला और मौलवी की बात मान लेते हो?? 
क्या तुम्हारे मौलवी या मुफ़्ती के पास एक भी ऐसे क़ुरानी दलील है जिससे तुम दुरूद वाले आले मुहम्मद से अफ़ज़ल किसी एक सहाबी को साबित कर सको?? जब नहीं है तो फिर तुम पर लाज़िम है कि अल्लाह और रसूल की बात को मानो और जिस बात का इक़रार दुरूद में 5 बार करते हो कि मोहम्मद के बाद आल है उस पर नमाज़ के बाद भी सख़्ती से क़ायम रहो, अपने हर अमल में दुरूद वालों का ही रास्ता तलाश करो। क्योंकि दुरूद वालों का रास्ता ही सिराते मुस्तकीम है।
प्लीज़ दुरुद वालों के ही रास्ते की तलाश करो और उस पर क़ायम हो जाओ इसी में हम सबकी नजात है और इसी में उम्मत का इत्तेहाद है।
कुरान ठीक से पढ़ो कुरान इक़रार करके इंकार करने वालों को ही मुनाफ़िक कहता है,तुम नमाज़ में बार-बार इक़रार करते हो कि मोहम्मद के बाद आले मुहम्मद और नमाज़ के फौरन बाद आले मोहम्मद के बजाए असहाबे मोहम्मद को अफ़ज़ल मान लेते हो यही मुनाफ़िक़त है,
प्लीज़ इसे तर्क करो।
कुरान की आयतों का कुछ तो ख़याल रखा करो क्यों ज़िद करके मुनाफ़िक बन बैठे हो?
अफ़सोस है अल्लाह ताला दिन में 5 बार समझाता और याद दिलाता है कि मोहम्मद के फ़ौरन बाद आले मुहम्मद हैं,मगर ज्यादा तर मदरसों में आले मौहम्मद कौन हैं न इनके बारे में बताया और पढ़ाया जाता है और न ही इनके मदरसों में आले मोहम्मद की सीरत ही पढ़ाई जाती है और न ही वहां पढ़ने वालों को आले मोहम्मद की रवायतों से हदीसे पैगमबर ही बताई जाती है,आले मोहम्मद ने क्या क्या कुर्बानियां दीं,उन्हें किसने और कैसे और क्यों शहीद किया,उनके साथ क्या क्या डर्टी पॉलिटिक्स की गई कैसे उन्हे और उनके चाहने वालों को जहर या तलवार से शहीद किया गया मदरसे में ये कुछ नहीं बताया जाता बल्की छिपाया जाता है।जबकि रसूल अल्लाह के इल्म और सीरत के सबसे ज्यादा जानकार और आलिम यही यही मोहम्मद और आले मोहम्मद हैं उनके आगे दूसरों का इल्म जीरो है। फिर भी मुसलमानों की अक्सरियत इन बातों को नहीं जानती और जो जानते हैं वो भी 1400 साल से छिपाते हैं।
मुसलमानों इस मजमून को पढ़ कर प्लीज़ ग़ौरो फ़िक्र करके नमाज़ के दुरूद में किए गए अपने इक़रार और ऐलान पर सख़्ती से क़ायम हो जाओ और मुहम्मद और आले मुहम्मद के रास्ते को अपनाकर अपने आप को और अपने अहलो अयाल को मुनाफ़िक़त से महफ़ूज़ रखो।
याद रखो मोहम्मद साहब की मुकम्मल सीरत किसी भी असहाब से मिल ही नहीं सकती बल्कि मोहम्मद साहब का मुकम्मल दीन और मुकम्मल सीरत सिर्फ़ और सिर्फ़ आले मोहम्मद से ही मिलेगा।
मोहम्मद साहब की मुकम्मल सीरत अली से,फ़ात्मा से, हसन से, हुसैन से ही मिल सकती है, यही लोग ही रसूल के दुरूद के साथी हैं,यही आयते ततहीर के साथी है जिनसे किसी तरह की कोई भूल चूक और ग़लती हो ही नहीं सकती जिसकी गारंटी किसी और ने नहीं खुद अल्लाह ने कुरान में दे रखी है मुसलमानो ठीक से कुरान और हदीस को पढ़ कर मेरी बात की तस्दीक कर लो।
असहाब ख़ाकी हैं गुनहगार भी हैं पहले मुश्रिक और काफिर और गुमराह थे,रसूल और आले रसूल नूरी हैं कभी गुमराह नहीं थे,अल्लाह ताला का फ़र्स्ट क्रिएशन है किसी भी ख़ाकी मख़लूक से या किसी भी अदर क्रिएशन से इनका मुकाबला हो ही नही सकता किसी को उनके बराबर लाया ही नहीं जा सकता जो शख्स भी किसी ख़ाकी मख़लूक को दुरूद वाले नूरी मख़लूक से मिलाए या नूरी मखलूक जैसा किसी को समझे वह सबसे बड़ा ज़ालिम है और ज़ालिमों पर अल्लाह की लानत है...मुबाहिले में यही रसूल अल्लाह के साथ गए यही सबसे ज़्यादा सच्चे हैं जो भी इनके मुकाबले में आया वह पक्का झूठा है उस पर भी अल्लाह और रसूल की लानत है दुरुद वालों के ग़ज़ब नाक होने से अल्लाह भी ग़ज़ब नाक होता है आले रसूल ही अल्लाह के दीन के वारिस और जन्नत के मालिक हैं।
कुरान में ईमान वालों को तक्वा अख्तियार करने के बाद जिन सच्चों के साथ हो जाने का हुक्म दिया गया है वह सच्चे कोई और नहीं बल्कि यही दुरूद वाले हैं जिन पर हम सब अपनी नमाज़ में दुरूद भेजते हैं इनकी मोअद्दत को ही कुरान ने अज्रे रिसालत कहा है, इनकी फ़ज़ीलतो का अहाता अल्लाह के अलावा कोई कर ही नहीं सकता,इनकी फ़ज़ीलतो का इनकार करने वाला पक्का जहन्नमी है।
अल्लाह और रसूल का दिया हुआ नमाज़ में पढ़ा जाने वाला दुरुद का अनमोल तोहफा हर नमाज़ में हमारी हिदायत करता और हिदायत याफ्ता और इनाम वालों की पहचान भी करवाता रहता है, मुसलमानो उसी हिदायत को दिल की गहराइयों से कुबूल कर लो और मज़बूती से दुरूद वालों का दामन मिल जुल कर थाम लो तो तुम्हें 100% सिराते मुस्तकीम और जन्नत दोनों मिल जायेगी ये गारंटी कोई और नहीं अल्लाह का वो रसूल दे कर गया है जो अपनी तरफ से नहीं रब की मर्जी से कलाम करता था।इनके ही दामन को पकड़कर ऐसा इत्तेहाद भी क़ायम हो सकता है जो क़यामत तक टूट ही नहीं सकता।
सिराते मुस्तकीम, इत्तेहाद,और जन्नत तीनों को हासिल करने का एक ही फ़ार्मूला है और वह यह है कि जो कुछ हम दुरूद में पढ़ते है उसी को मान लें यानी मोहम्मद साहब के फ़ौरन बाद आले मोहम्मद को ही माना जाए और रसूल अल्लाह के मुकम्मल दीन को आले रसूल से ही लिया जाए और हर मदरसों में आले रसूल की सीरत पढ़ाई जाए और रसूल अल्लाह की सीरत और दीन आले रसूल से ही लिया जाए।
हर एक मुसलमान दुरुद पढ़कर अगर दुरूद वालों के रास्ते पर अमल पैरा हो जाए तो उसे वह सिराते मुस्तकीम और इनाम वालों का रास्ता जरूर मिल जाएगा जिसकी दुआ दिन में 10 बार सूरह अलहम्द पढ़ कर वो नमाज़ में करता है... 
नमाज़ में इनाम वालों के रास्ते पर क़ायम रहने की दुआ करने वालों जिन पर दुरुद भेजते हो उनके रास्ते पर सख्ती से क़ायम हो कर ही सिराते मुस्तकीम पर खड़े हो सकते हो और तुम्हें इनाम वालों का रास्ता भी मिल सकता है।
हमेशा याद रखना दुरुद वाले ही इनाम वाले हैं और फकत दुरुद वालों का रास्ता ही सिराते मुस्तकीम है... 
आइए मिल जुल कर एक बार दिल की गहराइयों से मोहम्मद और आले मुहम्मद पर  दुरूद पढ़ें और मोहम्मद और आले मोहम्मद के रास्ते पर क़ायम रहने और उनके दुश्मनों के रास्ते से महफ़ूज रहने की दुआ अल्लाह से करते रहे।... 
वस्सलाम।

नोटः लेखक के अपने जाति विचार है। लेखक के विचारो से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी का सहमत होना ज़रूरी नही है।

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