۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा | भलाई के लिए आह्वान करना और नहीं अल-मुनकर विश्वासियों के बीच एकता पैदा करने के तरीके हैं। यह अच्छे का आदेश देने और बुराई का निषेध करने का आह्वान है। समाज पर नजर रखने के दो चरण हैं, एक अच्छे कार्यों का वर्णन करना और फिर जो अच्छा है उसे करना और जो गलत है उसे नहीं करना।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
وَلْتَكُن مِّنكُمْ أُمَّةٌ يَدْعُونَ إِلَى الْخَيْرِ وَيَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنكَرِ ۚ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ  वल तकुन मिनकुम उम्मतुन यदऊना एलल ख़ैरे व यामोरूना बिल मारूफ़े व यनहोना अनिल मुनकरे व उलाएका होमुल मुफलेहून। (आले-इमरान, 104)

अनुवाद : और तुममें से एक गिरोह ऐसा हो जो नेकी को बुलाए और नेक कामों का हुक्म दे और बुरे कामों से रोके।

क़ुरआन की तफसीर:

1️⃣ कुछ ईमान वाले लोगों का होना ज़रूरी है जो भलाई का आह्वान करें और भलाई का आदेश दें और बुराई से रोकें।
2️⃣ अच्छाई के लिए आह्वान करना और नहीं अल-मुनकर विश्वासियों के बीच एकता पैदा करने के तरीके हैं।
3️⃣ भलाई की आज्ञा देना और बुराई से मना करना भलाई के लिए आह्वान है।
4️⃣ समाज पर नजर रखने के दो चरण हैं, एक अच्छे कार्यों का वर्णन करना और उसके बाद अच्छे और निषिद्ध का आदेश देना।
5️⃣ समाज के कल्याण और सफलता में भलाई के लिए आह्वान करना, आदेश देना और मना करना की मूल भूमिका और महत्व।
6️⃣ लक्ष्यों की प्रगति के लिए सामूहिक कार्रवाई प्रभावी भूमिका निभाती है।


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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

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