۳ آذر ۱۴۰۳ |۲۱ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 23, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा | एक साथ मिलकर इबादत करने का महत्व है मानव विकास और महानता में प्रभावी है। अल्लाह तआला लोगों को सामूहिक इबादत के जरिए एकजुट होने और सामंजस्य बिठाने का आदेश देता हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم  बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
يَا مَرْيَمُ اقْنُتِي لِرَبِّكِ وَاسْجُدِي وَارْكَعِي مَعَ الرَّاكِعِينَ  या मरयमो उकनुति लेरब्बेके वस जुदी वर कई माअर राकेईन (आले-इमरान, 43)

अनुवाद: हे मरियम. अपने परमेश्वर की आज्ञापालन करो। और सज्दा करो। और रुकूअ करने वालों के साथ  रुकूआ करती रहो।

क़ुरआन की तफसीरः

1️⃣ हज़रत मरयम को अपने रब के सामने नम्रतापूर्वक इबादत करने और रुकूअ करने की आज्ञा देना।
2️⃣ अल्लाह ताला की नेमतें और फ़ज़ल व करम जिम्मेदारी लाती हैं।
3️⃣ अल्लाह तआला की प्रभुता का तकाज़ा यह है कि उसके अधीन हो जाओ।
4️⃣ अल्लाह ताला की रहमत से मालामाल होने के लिए उसकी इनकेसारी के साथ इताअत करना जरूरी है।
5️⃣ एक साथ मिलकर इबादत करने का महत्व और मूल्य यह है कि मानव विकास और महानता में प्रभावी है।
6️⃣ अल्लाह ताला सामूहिक इबादत के जरिए लोगों को एकजुट होने और सामंजस्य बिठाने का आदेश देते हैं।


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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

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