۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा / बहुत कम संख्या में यहूदी इस्लाम की शिक्षाओं को मानते थे और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर विश्वास करते थे।अल्लाह की दया से दूर होना और उसके शाप से पीड़ित होना विश्वास न करने का कारण नहीं है ।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

तफसीर; इत्रे कुरआन: तफसीर सूरा ए बकरा

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم     बिस्मिल्लाह हिर्राहमा निर्राहीम
وَقَالُوا قُلُوبُنَا غُلْفٌ ۚ بَل لَّعَنَهُمُ اللَّـهُ بِكُفْرِهِمْ فَقَلِيلًا مَّا يُؤْمِنُونَ     वा क़ालू क़ुलूबोना ग़लफ़ुन बल लाआनाहुमुल्लाहो बेकुफरेहिम फ़क़लीलम मा यूमेनून (बकरा 88)

अनुवादः और कहते हैं कि हमारे दिलों पर (कुदरती) पर्दा डाल दिया जाता है (हम कुछ नहीं समझते)। बल्कि अल्लाह ने उन पर उनके कुफ़्र के कारण लानत की है, तो वे कम ही ईमान लाएँगे।

📕 क़ुरआन की तफ़सीर: 📕

1️⃣    बेसत के जमाने के यहूदियों के दिलों में इस्लामी शिक्षाओं को समझने की ऊर्जा नहीं थी।
2️⃣    यहूदियों ने सोचा कि जो लोग इस्लाम को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, वे उनकी प्रकृति और रचना के कारण हैं, इसलिए उन्होंने खुद को अक्षम माना।
3️⃣    यहूदियों के अविश्वास के कारण वे परमेश्वर की दया से दूर हो गए।
4️⃣    यहूदी बहुत कम ईश्वरीय शिक्षाओं में विश्वास करते थे।
5️⃣    बहुत कम संख्या में यहूदी इस्लामी शिक्षाओं को मानते थे और इस्लाम के पैगंबर को मानते थे।
6️⃣    अल्लाह तआला की रहमत से दूर होना और उसकी लानत से तौबा करना ईमान न लाने पर ज़ुल्म की वजह नहीं है।

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📚 तफसीर राहनुमा, सूरा ए बकरा
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