बुधवार 15 जनवरी 2025 - 12:54
हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली (अ) की शान में कुरआन मजीद में 300 आयतें नाज़िल हुईं

हौज़ा / हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अकबरी ने बयान किया कि कुरआन करीम की 300 आयतें अमीरुल मोमिनीन अली अ.स.की फज़ीलत और उनके मक़ाम व मर्तबे के बारे में नाज़िल हुईं है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार ,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अकबरी ने मौला-ए-मुवहिदीन हज़रत अली अ.स.की विलादत के मौके पर हौज़ा न्यूज़ एजेंसी से बातचीत में क़ुरआन और हदीस-ए-नबवी की रौशनी में हज़रत अली अ.स. के फज़ाइल और मर्तबे की अहमियत बयान की।

उन्होंने कहा कि रसूल-ए-अकरम स.ल.ने फरमाया,ज़िक्र-ए-अली सआदत है और याद-ए-अली इबादत है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन अकबरी ने कहा कि क़ुरआन करीम की 300 आयतें अमीरुल मोमिनीन अली (अ) के फज़ाइल और उनके मर्तबे के बारे में नाज़िल हुईं।

इनमें खास तौर पर आयत-ए-मुबाहिला, आयत-ए-विलायत, आयत-ए-ज़ी-अल-क़ुर्बा, आयत-ए-ततहीर, आयत-ए-उलुल-अमर, आयत-ए-लैलतुल मबीत और आयत-ए-हल अता हज़रत अली (अ) की शान में नाज़िल हुईं।

इसके अलावा हुज्जतुल इस्लाम अकबरी ने इमाम जाफर सादिक (अ) की एक रिवायत बयान करते हुए कहा कि इमाम सादिक (अ) फरमाते हैं कि रसूल-ए-ख़ुदा (स) ने कहा, अल्लाह ने मेरे भाई अमीरुल मोमिनीन अली (अ) को बेहिसाब फज़ाइल अता किए हैं।

अगर कोई शख्स उनके किसी एक फज़ीलत को बयान करे और उस पर ईमान रखे, तो अल्लाह उसके तमाम पिछले और आने वाले गुनाह माफ कर देता है। जो अली (अ) के फज़ाइल को लिखे, उस पर फरिश्ते तब तक इस्तेग़फ़ार करते रहते हैं जब तक वह तहरीर बाकी रहे। और जो अली (अ) के फज़ाइल को सुने अल्लाह उसके कानों के गुनाह माफ कर देता है।

रसूल-ए-अकरम स.ल.ने आगे फरमाया: अली को देखना इबादत है।

हौज़ा इल्मिया के उस्ताद ने ईमान की कुबूलियत की शर्त बयान करते हुए कहा,बंदे का ईमान उस वक्त तक मुकम्मल नहीं होता जब तक वह अमीरुल मोमिनीन अली (अ) की विलायत को कुबूल न करे और उनके दुश्मनों से बेज़ारी इख्तियार न करे।

उन्होंने हज़रत अली अ.स. की विलादत के खास वाक़े का ज़िक्र करते हुए कहा,हज़रत अली (अ) का खाना-ए-काबा के अंदर पैदा होना एक अनोखी फज़ीलत है। फातिमा बिन्ते असद जब खाना-ए-काबा में दाखिल हुईं, तो एक ग़ैबी आवाज़ ने उन्हें अंदर आने की इजाज़त दी।

तीन दिन तक वह मेहमान-ए-ख़ुदा रहीं और इसके बाद हज़रत अली (अ) की विलादत हुई। यह वाक़े हज़रत इब्राहीम (अ) की दुआ की कुबूलियत का भी मज़हर है, क्योंकि खाना-ए-काबा की तामीर हज़रत अली (अ) की विलादत के लिए की गई थी। यह फज़ीलत हज़रत अली (अ) के मर्तबे को उजागर करती है और उनकी अज़मत को वाज़ेह तौर पर पेश करती है।

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