۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
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हौज़ा/खेल की दुनिया के शहीदों पर दूसरे नेश्नल सेमीनार के आयोजकों से मुलाक़ात, खेल में अख़लाक़ और नैतिकता के महत्व का जायज़ा,और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने 11 सितंबर सन 2022 को शहीद खिलाड़ियों पर क़ौमी सेमीनार आयोजित करने वाले ज़िम्मेदारों से मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में सुप्रीम लीडर ने स्पीच दी जो 11 अक्तूबर 2022 को इस सेमीनार में पेश की गई।
इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने इस मुलाक़ात में इस बिन्दु पर बल दिया कि स्पोर्ट्स को केन्द्रीय बिन्दु की हैसियस से अहमियत दी जाए, इसे हाशिये के तौर पर न देखा जाए। उन्होंने स्पोर्ट्स और शहीद खिलाड़ियों के बारे में अहम बिन्दुओं का ज़िक्र किया।

सुप्रीम लीडर ने पवित्र क़ुरआन की आयतों के हवाले से शहीदों के ज़िन्दा होने की ओर इशारा कि और फिर शहीद खिलाड़ियों का ज़िक्र करते हुए कहाः जेहाद की भावना और अल्लाह के रास्ते में शहीद होना इस बात का सबब बनता है कि समाज के हर तबक़े और समाज में हर स्तर पर जेहाद का शौक़ पैदा हो और जो लोग शारिरिक व मानसिक नज़र से सक्षम हैं, जेहाद के मैदानों की ओर जाएं।

उन्होंने कहा कि खिलाड़ियों का तबक़ा, असर डालने वाला तबक़ा है; ख़ास तौर पर वे ख़िलाड़ी जो मशहूर हो जाते हैं, उनका एक तबक़े पर असर पड़ता है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने खेल की तकनीकी कामयाबी के साथ साथ अख़लाक़ी कामयाबी की ज़रूरत पर ज़ोर दिया और कहा कि जब आप किसी प्रतियोगिता में कामयाब हुए तो आपने तकनीकी कामयाबी हासिल की, लेकिन इसी तकनीकी कामयाबी को अख़लाक़ी कामयाबी से जोड़ा जा सकता है। जैसे हमारी महिला खिलाड़ी अख़लाक़ी उसूलों पर अमल करते हुए खेल रही हैं, अर्थात इस्लामी हेजाब पर अमल, इस्लामी सीमाओं के पालन और आत्मविश्वास का प्रदर्शन करती हैं। यह बहुत बड़ी कामयाबी है; यह अगर तकनीकी कामयाबी से ज़्यादा अहम न हो तो उससे कम भी नहीं है।

इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने इस संबंध में आगे कहाः कभी यह भी होता है कि इंसान मेडल तो हासिल नहीं कर पाया, हमारे खिलाड़ी क़ाबिज़ ज़ायोनी शासन की ओर से भेजे गए खिलाड़ियों से मुक़ाबला नहीं करते जिससे उन्हें मेडल नहीं मिल पाता, लेकिन वे फिर भी कामयाब हैं। अगर कोई इस उसूल को न माने तो इसका मतलब हुआ कि उसने अख़लाक़ी कामयाबी को कुचल दिया। अगर आप उससे मुक़ाबला करें, उसका सामना करें तो हक़ीक़त में आपने बच्चों के क़ातिल व जल्लाद क़ाबिज़ शासन को मान्यता दे दी।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने खेल के बारे में विश्व साम्राज्यवाद के दोहरे रवैये के बारे में, जो मुसलमान खिलाड़ियों द्वारा ज़ायोनी शासन के बायकॉट की मुख़ालेफ़त और रूस पर खेल के मैदान में पाबंदी के रूप में सामने आया, कहाः साम्राज्य के सरग़ना और उसके पिट्ठू जो हक़ीक़त में विश्व की बड़ी ताक़तों के नौकर हैं, चिल्लाने लगते हैं कि खेल को राजनैतिक रंग न दीजिए, मगर आपने देखा कि यूक्रेन जंग के बाद खेल के संबंध में ख़ुद उन्होंने क्या किया! कुछ मुल्कों पर खेल के क्षेत्र में पाबंदी लगा दी राजनैतिक लक्ष्य के लिए; अर्थात जब उनका हित तक़ाज़ा करता है तो बड़ी आसानी से वे लाल रेखा को पार कर जाते हैं, लेकिन जब हमारे खिलाड़ी ज़ायोनी शासन के खिलाड़ी से मुक़ाबला नहीं करते तो, उस पर हाय तौबा मचाते हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने अपनी स्पीच के दूसरे भाग में, नए खेलों के ज़रिए इस्लामी गणराज्य में अपने कल्चर को फैलाने की पश्चिम की कोशिश की ओर इशारा करते हुए कहाः हमारा फ़र्ज़ है कि उस खेल को जो वे लेकर आए हैं-जैसे फ़ुटबाल, वॉलीबाल और बाक़ी खेल जो टीम के रूप में खेले जाते हैं- उन्हें सीखें, उनमें आगे बढ़ें, प्रोफ़ेश्नल बनें लेकिन उनके कल्चर को क़ुबूल न करें, उसे पश्चिमी कल्चर के लिए पुल न बनने दें, बल्कि अपने कल्चर को उन पर हावी करें।

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