हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी इंक़ेलाब के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी र.ह. ने फरमाया,जो चीज़ हज़रत अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम और उनकी औलाद,मौक़ा मिलने की स्थिति में कर सकते थे, वो अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ इंसाफ़ क़ायम करना है लेकिन उन्हें मौक़ा ही नहीं दिया गया।
इस ईद को ज़िंदा रखना इस लिए नहीं है कि चिराग़ानी की जाए, क़सीदे पढ़े जाएं, महफ़िलें की जाएं, ये चीज़ें अच्छी हैं लेकिन असली बात ये नहीं है।
बात ये है कि हमें ये सिखाया जाए कि हम किस तरह उनके नक़्शे क़दम पर चलें, हमें ये बताएं कि ग़दीर का संबंध सिर्फ़ उस ज़माने से नहीं है, ग़दीर को हर ज़माने में होना चाहिए और अमीरुल मोमेनीन ने उस शासन में जो तरीक़ा अपनाया है, वही तरीक़ा राष्ट्रों और शासकों का होना चाहिए।
ग़दीर का मामला, शासन के गठन का मामला है, यही चीज़ है जो नियुक्ति के लायक़ है वरना रूहानी दर्जों पर तो किसी को नियुक्त नहीं किया जा सकता।
इमाम ख़ुमैनी,