۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
اربعین

हौज़ा/इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम में, तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में स्टूडेंट्स की अंजुमनों ने अज़ादारी की जिसमें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने भी शिरकत की। मजलिस में मौजूद अज़ादारों ने, इमाम हुसैन की ज़ियारत के लिए कर्बला गये अज़ादारों की आवाज़ से आवाज़ मिलाते हुए “लब्बैक या हुसैन” के नारे लगाए

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम में, तेहरान के इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में स्टूडेंट्स की अंजुमनों ने अज़ादारी की जिसमें इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने भी शिरकत की।  मजलिस में मौजूद अज़ादारों ने, इमाम हुसैन की ज़ियारत के लिए कर्बला गये अज़ादारों की आवाज़ से आवाज़ मिलाते हुए “लब्बैक या हुसैन” के नारे लगाए
अज़ादारी के बाद, सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपनी तक़रीर में, नौजवानों के पाकीज़ा और ईमान से लबरेज़ दिलों को, दुआ और नसीहत में बेहतरी और ख़ुदा की तरफ़ से होने वाली हिदायत में बरकत की वजह बताया और कहा कि हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का ऊंचा परचम, यानी अरबईन, इस साल तारीख़ के हर दौर से ज़्यादा शानदार तरीक़े से मनाया गया।
सुप्रीम लीडर का कहना था कि अरबईन मार्च का यह चमत्कार अलामत है कि अल्लाह अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के इस्लामी परचम को ज़्यादा बुलंद करने का इरादा रखता है। उन्होंने कहा कि यह मूवमेंट, किसी इन्सानी हाथ या स्ट्रेटजी के ज़रिए मुमकिन नहीं है, यह तो दर अस्ल ख़ुदा की ताक़त है जो हमें इस बेमिसाल मूवमेंट के ज़रिए यह पैग़ाम दे रही है कि हमारे आगे का रास्ता साफ़ है और उस पर चला जा सकता है।
सुप्रीम लीडर ने नौजवानों को, अपनी जवानी के दौर की क़द्र करने और मातमी अंजुमनों पर ख़ास ध्यान देने की नसीहत की और कहा कि अंजुमनों की भी ज़िम्मेदारी है कि वह अहले बैत अलैहिमुस्सलाम के ज़िक्र को ज़िंदा रखें और इसके साथ ही वह सच्चाई बयान किये जाने का मरकज़ भी बनें। 
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अरबईन मार्च जैसे अहम कामों के ख़िलाफ़ सच्चाई पर पर्दा डालने वाले दुश्मनों की लगातार जारी साज़िशों का ज़िक्र किया और कहा कि सब को अपनी अपनी ज़िम्मेदारियों पर अमल करना चाहिए।
सुप्रीम लीडर ने कहा कि क़ुरआने मजीद की दो बेहद अहम और हमेशा बाक़ी रहने वाली बातें, यानी, हक़ की सिफ़ारिश और सब्र की नसीहत का हुक्म, हमेशा के लिए और ख़ास तौर पर हमारे इस दौर के लिए एक बुनियादी फ़्रेमवर्क है।
उन्होंने सब्र का मतलब, डट जाना, मज़बूती से क़दम जमाए रखना, न थकना और ख़ुद को बंद गली में न समझना बताया और क़ुरआने मजीद और अंजुमनों से लगाव रखने वाले नौजवानों से कहा कि आप लोग, हक़ की राह पर चलें और कोशिश करें कि यूनिवर्सिटी समेत अलग अलग जगहों पर ख़ुदा के नूर से रौशनी फैला कर, दूसरों को भी इस राह पर ले आएं।
अज़ादारी के इस प्रोग्राम में, हुज्जतुल इस्लाम मसऊद आली ने अपनी तक़रीर में, दुनिया को निजात देने वाली हस्ती के ज़ुहूर के लिए, इस्लामी समाज में आम सतह पर तैयारी को ज़रूरी बताया और कहा कि ज़ियारते अरबईन, जो आज मोमिनों के बीच यूनिटी और हक़ परस्तों के बीच इत्तेहाद की निशानी बन चुकी है, इस्लामी समाज की ट्रेनिंग,  मोमनों के आपसी ताल्लुक़ात को मज़बूत करने और ज़ुहूर की तैयारी का बहुत अच्छा ज़रिया है। 
अज़ादारी के इस प्रोग्राम में जनाब मोहम्मद कावियान ने ज़ियारते अरबईन पढ़ी और जनाब मीसम मुतीई ने, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का मरसिया व नौहा पढ़ा।

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