हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के पूर्व वरिष्ठ नेता हज़रत इमाम ख़ुमैनी र.ह.ने इतिहास हमारे लिए एक सबक़ है। जब आप संविधान इंक़ेलाब का इतिहास पढ़ते हैं तो देखते हैं कि आरंभिक कामयाबी के बाद इस आंदोलन में कुछ ख़ास लोग जुड़ गए और उन्होंने ईरानी जनता को दो वर्गों में बांट दिया।
यह एक साज़िश थी जो काम कर गई और इसने संविधान आंदोलन को उस तरह से अमली जामा नहीं पहनने दिया जिस तरह से बड़े बड़े उलमा ने योजना तैयार की थी।
इस आंदोलन को ऐसी स्थिति तक पहुँचा दिया गया कि जो लोग संविधान को सबसे ऊपर रखने की मांग कर रहे थे उन्हें कुछ ख़ास लोगों के ज़रिए से कुचल दिया गया।
यहाँ तक कि ईरान में मरहूम अलहाज शैख़ फ़ज़्लुल्लाह नूरी जैसे शख़्स को इस वजह से तेहरान में फांसी पर लटका दिया गया क्योंकि वो कहते थे कि संविधान, धार्मिक होना चाहिए और हम उस संविधान को स्वीकार नहीं करते जो पूरब और पश्चिम से हम तक पहुंचे लोगों ने उनकी लाश के सामने नाच किया या तालियाँ बजाईं।
इमाम ख़ुमैनी र.ह.