۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
रिहाई

हौज़ा/इंक़ेलाब इस्लामी की 44 वीं सालगिरह और रजब के मुबारक दिनों के मौक़े पर बड़ी तादाद में क़ैदियों की सज़ा माफ़ या उसमें कमी कि गई हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने मुल्ज़िमों और मुजरिमों कि की एक तादाद की सज़ा माफ़ करने या उसमें कमी पर सहमति जतायी है। 
न्यायपालिका प्रमुख की ओर से की गई दिए गए प्रस्ताव पर सुप्रीम लीडर ने सहमति जतायी है। न्यायपालिका प्रमुख की तरफ़ से हालिया हंगामों के मुल्ज़िमों और मुजरिमों की बड़ी तादाद और इसी तरह आम पब्लिक अदालतों, इंक़ेलाबी अदालतों और फ़ौजी अदालतों से सज़ा पाने वाले मुजरिमों की सज़ा माफ़ करने या सज़ा में कमी किए जाने की दरख़ास्त पर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने सहमति जताई।


न्यायपालिका प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वलमुस्लेमीन एजेई ने इस सिलसिले में आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई को ख़त लिखा। इस ख़त में लिखा गया हैः हालिया घटनाओं के दौरान कुछ लोग और ख़ास तौर पर नौजवान, जिन्होंने दुश्मन के प्रचार व उकसावे में ग़लत व्यवहार और जुर्म किया जिससे ख़ुद को मुसीबत में डालने के साथ साथ अपने घरवालों और रिश्तेदारों को भी मुश्किल में डाल दिया और अब उनकी बड़ी तादाद, विदेशी दुश्मनों, इस्लामी इंक़ेलाब और अवाम विरोधी धड़ों का हाथ होने की बात का पर्दाफ़ाश होने पर पछता रही और माफ़ी की दरख़्वास्त कर रही है।


न्यायपालिका प्रमुख ने अपने ख़त में लिखा हैः मुल्ज़िमों और मुजरिमों की सज़ा में माफ़ी या कमी की शर्त और नियम दो हिस्सों पर आधारित हैं और यह काम जाँच पड़ताल और संबंधित अधिकारियों से मशविरे के बाद किया गया है। 
इस ख़त के पहले हिस्से में हालिया हंगामों के मुल्ज़िमों और मुजरिमों की सज़ा में माफ़ी या कमी की शर्तों के ज़िक्र के साथ ताकीद की गयी है कि शर्तों पर खरा उतरने की हालत में मुल्ज़िमों और मुजरिमों का केस जिस चरण में होगा, बंद हो जाएगा।
हालिया हंगामों के मुल्ज़िमों और मुजरिमों की सज़ा में माफ़ी या कमी की शर्त इस तरह हैः
विदेशियों के लिए जासूसी न की हो, विदेशी ख़ुफ़िया एजेंसियों के जासूसों से इन्डायरेक्ट संपर्क न किया हो, जानबूझ कर किसी को क़त्ल या ज़ख़्मी न किया हो, सरकारी, फ़ौजी और पब्लिक प्रॉपर्टी को नुक़सान न पहुंचाया हो और जलाया न हो और उसके ख़िलाफ़ कोई मुद्दई और शिकायत करने वाला न हो।
न्यायपालिका प्रमुख के ख़त के दूसरे हिस्से में पब्लिक अदालत, इंक़ेलाबी अदालतों और फ़ौजी अदालतों के मुजरिमों की माफ़ी या सज़ा में कमी के लिए भी शर्तें रखी गयी हैं जो इस तरह हैं:
मुजरिम के ख़िलाफ़ कोई मुद्दई या शिकायत करने वाला न हो, एक साल की सज़ा पाने वाले मुजरिमों की माफ़ी इस शर्त के साथ कि 11 फ़रवरी तक एक महीना सज़ा काटी हो। एक से पाँच साल की सज़ा पाने वाले मुजरिमों की तीन चौथाई सज़ा में माफ़ी इस शर्त के साथ कि 11 फ़रवरी तक उन्होंने सज़ा का पाँचवा हिस्सा  भुगत लिया हो।
दस साल से ज़्यादा और बीस साल तक सज़ा पाने मुजरिमों की आधी सज़ा की माफ़ी इस शर्त के साथ कि उन्होंने 11 फ़रवरी तक कम से कम दो साल क़ैद की सज़ा भुगती हो और उन मुजरिमों की बाक़ी सज़ा में माफ़ी जिन्होंने जान बूझकर जुर्म नहीं किया है।


महिला मुजरिमों की माफ़ी के लिए शर्तें इस तरह हैं:
क़ानून के हुक्म के मुताबिक़ जिन महिला मुजरिमों पर बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी है, महिला मुजरिम लाइलाज या पुरानी बीमारी से पीड़ित है, सत्तर साल से ज़्यादा उम्र के मर्द और साठ साल से ज़्यादा उम्र की औरतें और उन मुजरिमों की सज़ा माफ़ या कम होगी जो नक़द जुर्माना अदा न कर पाने की वजह से जेल में हैं।
न्यायपालिका प्रमुख के ख़त में कुछ प्रकार के लोग इस माफ़ी के हक़दार नहीं हैः
फ़ायर आर्म्ज़ की ख़रीद फ़रोख़्त और स्मगलिंग करने वाले, चोरी और डकैती के मुजरिम,हथियारों के बल पर मादक पदार्थ और एक्सटसी ड्रग्स से संबंधित जुर्म करने वाले, वेश्यावृत्ति में लिप्त,शराब की स्मगलिंग करने वाले, ऑर्गनाज़्ड और पेशेवराना तरीक़े से चीज़ों और विदेशी करंसी की तस्करी करने वाले, मुल्क की आर्थिक व्यवस्था को बड़े पैमाने पर नुक़सान पहुंचाने वाले और आंतरिक व विदेशी सुरक्षा के ख़िलाफ़ जुर्म करने वाले।

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