हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई ने कहां,इस्लामी समाज की व्यवस्था चलाने और इस्लामी समाज के विकास की ज़िम्मेदारी सभी के कांधों पर है, औरत के कांधे पर, मर्द के कांधे पर, हर एक पर उसकी योग्यता के हिसाब से। इस बात पर बहस नहीं है कि औरत घर के बाहर कोई ज़िम्मेदारी संभाल सकती है या नहीं?
-वो बिलकुल संभाल सकती है, इसमें कोई शक नहीं है, इस्लामी नज़रिया इसे नहीं नकारता- बल्कि बहस इस बात पर है कि क्या औरत को ये हक़ है कि वो घर से बाहर के माहौल में उसके लिए जितनी भी रोचक, दिलनशीं और पसंदीदा चीज़ों का तसव्वुर किया जा सकता है,
उनके लिए घर में अपने किरदार को ख़त्म कर दे? माँ की भूमिका को? बीवी के किरदार को? उसे ये हक़ है या नहीं? हम इस किरदार पर ज़ोर देते हैं। मैं कहता हूं कि इल्म, तालीम, रिसर्च और रूहानियत के लिहाज़ से औरत जिस सतह की भी हो, वो जो सबसे अहम किरदार अदा कर सकती है, वो एक माँ और एक बीवी का किरदार है, ये उसके सभी कामों से ज़्यादा अहम है। ये वो काम है जिसे औरत के अलावा कोई दूसरा कर ही नहीं सकता।
इमाम ख़ामेनेई,