हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, अशरा-ए-मजालिस की पांचवी मजलिस में मौलाना मुस्तफ़ा अली ख़ान ने क़ुरान मजीद की हुरमत के सिलसिले में गुफ़्तुगू करते हुए फ़रमाया: क़ुरान-ए-करीम वोह कलामे मोजिज़ है के जिसका जवाब मुमकिन नहीं, इसके मानी ओ मफ़हूम और फ़साहत ओ बलाग़त को देख कर दुनिया महो हैरत है, १४ सौ साल से क़ुरान का चैलेंज है के अगर इसकी एक आयत का भी जवाब ला सकते हो तो ले आओ, आज तक तमाम माहेरीन-ए-इल्म ओ दानिश की आजिज़ी बता रही है के क़ुरान का जवाब मुमकिन नहीं है, आज दुशमनाने इस्लाम आलमे इस्लाम के ईमानी जज़्बात और इस्लामी ग़ैरत को ललकारने के लिये मुसलसल क़ुरान-ए-करीम की बेहुरमती कर रहें हैं जो क़ाबिल-ए-मज़म्मत और ना क़ाबिल-ए-माफ़ी जुर्म है|
मौलाना मुस्तफ़ा अली ख़ान ने फ़रमाया: क़ुरान-ए-करीम ने अमन-ए-आलम की ख़ातिर दूसरों के साथ बरताव के लिये " तुम्हारे लिये तुम्हारा दीन है और हमारे लिये हमारा दीन है" की तालीम देते हुए हुक्म दिया के दूसरों के ख़ुदाओं को बुरा भला ना कहो लिहाज़ा मुसलमान दूसरों के मक़दसात की बेहुरमती नहीं करते तो मुसलमानों के मक़दसात की बेहुरमती और उनकी दिल शिकनी की भी किसी को इजाज़त नहीं है, चौदा सौ साल से मुसलसल नाकामी के तजुर्बे के बावजूद दुशमन बेहुरमती कर के क़ुरान-ए-करीम को ख़त्म करने की कोशिश कर रहा है, जबकि वोह ख़ुद ख़त्म हो जायेगा लेकिन ये आसमानी किताब हमेशा बाक़ी रहेगी|
आखि़र में मौलाना ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने हज़रत औन ओ मोहम्मद की शहादत को बयान किया|