बुधवार 5 फ़रवरी 2025 - 13:25
सैयद बहरूल ओलूम का ज़ालिम हुक्मरान की मोहब्बत से ग़ैर मामूली ख़ौफ़

हौज़ा / सैयद बहरूल ओलूम एक बहुत बड़े आलिम थे जिनका तक़वा और ख़ुदा का ख़ौफ़ मशहूर था एक बार किसी ज़ालिम हुक्मरान ने उनकी इज़्ज़त और मोहब्बत का इज़हार किया, लेकिन इसके बजाय कि वे खुश होते उन्होंने इससे ग़ैरमामूली ख़ौफ़ महसूस किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार ,सैयद बहरूल ओलूम एक बहुत बड़े आलिम थे जिनका तक़वा और ख़ुदा का ख़ौफ़ मशहूर था एक बार किसी ज़ालिम हुक्मरान ने उनकी इज़्ज़त और मोहब्बत का इज़हार किया, लेकिन इसके बजाय कि वे खुश होते उन्होंने इससे ग़ैरमामूली ख़ौफ़ महसूस किया।

उन्होंने फरमाया,जब एक ज़ालिम शासक किसी आलिम से मोहब्बत करता है तो यह इस बात की निशानी होती है कि वह आलिम हक़ से दूर जा चुका है। क्योंकि हक़ (सत्य) कहने वाला हमेशा ज़ालिमों की आँखों में कांटे की तरह चुभता है।

यह वाक़िआ हमें सिखाता है कि एक सच्चा आलिम हमेशा इंसाफ़ और हक़ की राह पर चलता है, और ज़ालिमों की मोहब्बत या उनकी नज़दीकी से डरता है क्योंकि यह अक़्सर उसके ईमान और मज़हबी उसूलों के लिए ख़तरा होता है।

बुरुजर्द के हाकिम ने सैयद मेंहदी बहरूल लउलूम से शफ़क़त का इज़हार किया मगर इसका असर ऐसा हुआ कि वह फ़िक्रमंद हो गए कि कहीं उनके दिल में ज़ालिम हुक्मरान के ख़िलाफ़ नफ़रत कम न हो जाए। इस अंदेशे के चलते उन्होंने अपने वालिद से दरख़्वास्त की कि वह इस शहर से हिजरत कर जाएं, क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि उनका दिल हाकिम की तरफ़ माइल हो रहा है, और वह इसे अपने ईमान के लिए ख़तरा समझते थे।

मुन्तख़ब उत तवारीख़ में शेख़ जाफ़र शुश्तरी के हवाले से लिखा गया है कि एक दिन बुरुजर्द के हाकिम ने जलीलुल क़द्र आलिम, सैयद मुर्तज़ा तबातबाई सैयद बहरूल उलूम के वालिद से मुलाक़ात की। जब वह रुख़्सत हो रहा थे तो उसने सैयद महदी, जो उस वक़्त बच्चे थे, से मोहब्बत और शफ़क़त का इज़हार किया।

इस वाक़िए के बाद सैयद मेंहदी ने अपने वालिद से कहा,बाबा! मुझे किसी और शहर ले चलिए, मैं डरता हूँ कि कहीं मेरा ईमान ख़तरे में न पड़ जाए।

वालिद ने हैरान होकर पूछा:क्यों?

सैयद मेंहदी ने जवाब दिया:,जब हाकिम ने मुझ पर शफ़क़त की, तो मैंने महसूस किया कि मेरा दिल उसकी तरफ़ झुकने लगा है, और जो नफ़रत मुझे एक ज़ालिम हुक्मरान के लिए रखनी चाहिए, वह कम हो रही है। इसीलिए अब यहाँ रहना मुनासिब नहीं।

यही सोच उन्हें बुरुजर्द से हिजरत पर मजबूर कर गई।

स्रोत: पिकार बा मुनकिर दर सीरत-ए-अबरार, जिल्द 1, सफ़हा 43

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