हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद नज़र हसन आबिदी साहब का इंतकाल हो गया है मौलाना साहब 52 साल के थे और अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गए हैं, जो हमेशा उनकी याद दिलाती रहेगी। उनका मूल निवास , पखनरी सहसाराम बिहार में था, जहां उनके माँ- वालिद सैयद फजले हसन साहब ज़ोहर बाद होने वाली मिश्री की बगिया कब्रिस्तान में तदफीन में शिरकत के लिए तशरीफ ला रहे है ।
मौलाना सैयद नज़र हसन आबिदी एक इल्म-ओ-तालीम के अलमबरदार थे, जिन्होंने अपनी तालीम जावादिया कॉलेज, बनारस से हासिल की और फिर सुलतानुल मदरसा में इस्लामी तालीम को मुकम्मल किया।
इसके बाद वह पेशे इमामत से जुड़ गए मद्रास में और लखनऊ की अमीनाबाद मस्जिद के पेश इमाम रहे,नमाज अली कॉलोनी की मस्जिद में 17 साल तक बतौर इमाम नमाज़ पढ़ाई।
मौलाना साहब का मस्जिद से यह जुड़ाव न सिर्फ इबादतगुज़ारों के लिए एक रूहानी ताक़त था, बल्कि उन्होंने मजलिसों में भी अपने इल्मी और दीन-ओ-तकरीरी हुनर से लोगों के दिलों को रोशन किया।
मौलाना साहब के दो बेटे और एक बेटी हैं:
1. मोहम्मद हम्माद, जिन्होंने बी.टेक (कंप्यूटर साइंस) में तालीम हासिल की है।
2. अली जवाद, जो बी.एससी आई आई टी मद्रास से पढ़ाई कर रहे है उनकी एक बेटी है जो 12 में पढ़ रही है,
मौलाना साहब की शरीक-ए-हयात भी अरसे से बीमार चल रही हैं, और इस मुश्किल घड़ी में परिवार के लिए सब्र का इम्तेहान है।
इखलास और इंसानियत की मिसाल
मौलाना सय्यद नज़र हसन आबिदी साहब की शख्सियत हमेशा से इखलास, मोहब्बत और इंसानियत की मिसाल रही है वह बेहतरीन जाकिर थे जो मजलिसों में अहलेबैत का पैग़ाम और शोहदा-ए-कर्बला का मकसद बयान करते थे।
उनकी तकरीरें न सिर्फ इल्म की गहराइयों में डूबी होती थीं, बल्कि उसमें एक ऐसी दिलकशी होती थी, जो लोगों के दिलों पर गहरा असर डालती थी। उन्होंने हमेशा अपने मजलिसों में इंसानियत, खिदमत और इस्लामी तालीमात पर जोर दिया।
मौलाना साहब की जिंदगी का हर पहलू इखलास और सादगी से भरा हुआ था वह न सिर्फ एक आलिम-ए-दीन थे, बल्कि एक ऐसे इंसान थे जो हर किसी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे।
उनकी शख्सियत एक रहनुमा की तरह थी, जिनसे लोग रूहानी और इल्मी फायदा उठाते थे। उनके अच्छे अखलाक, मोहब्बत और खूलूस का बेहतरीन मयार हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेगा।
मौलाना सैयद नज़र हसन आबिदी साहब का इंतकाल उनके परिवार और समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
उनके जाने से जो खला पैदा हुआ है, उसे भर पाना बेहद मुश्किल होगा। समाज ने एक ऐसे नेक इंसान, बेहतरीन आलिम और बाअखलाक़ शख्सियत को खो दिया, जिसने अपनी पूरी जिंदगी इंसानियत की खिदमत, दीन की तालीम और अहलेबैत के पैग़ाम को फैलाने में गुज़ारी।
मौलाना साहब के बेटों मोहम्मद हम्माद और अली जवाद के लिए यह वक्त बेहद मुश्किल है, लेकिन उनके वालिद की तालीम और रहनुमाई उनके लिए हमेशा एक रास्ता दिखाने वाली मशाल रहेगी। हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह मौलाना सय्यद नज़र हसन आबिदी साहब को जन्नतुल फिरदौस में आला मकाम अता फरमाए और उनके परिवार को इस मुश्किल घड़ी में सब्र-ए-जमील अता करे।