रविवार 21 सितंबर 2025 - 05:27
नाक़ाबिले तलाफ़ी मज़ालिम का कफ़्फ़ारा

हौज़ा/ पैगम्बर (स) ने एक रिवायत में उन अन्यायों का ज़िक्र किया है जिनकी भरपाई नहीं की जा सकती और न ही खोए हुए अधिकारों को वापस पाया जा सकता है, लेकिन उन्होंने क्षमा मांगने को मज़ालिम के कफ़्फ़ारे के रूप में वर्णित किया है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, निम्नलिखित रिवायत "वसाइल उश-शिया" पुस्तक से उद्धृत की गई है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:

قال رسول اللہ صلی اللہ علیه وآله:

مَن ظَلَمَ أَحَداً وَفاتَه فَلیَستَغفِر اللهَ لَهُ فَاِنَّهُ كَفّارَةٌ لَه

पैग़म्बर (स) ने फ़रमाया:

अगर कोई व्यक्ति किसी पर अत्याचार करता है और अब उसके पास ऐसा करने का कोई साधन नहीं है, तो उसे अल्लाह से उसके लिए क्षमा मांगनी चाहिए। यह उसके पापों का प्रायश्चित होगा।

वसाइल उश-शिया, भाग 16, पेज 53

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