۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
अल्लामा ग़ुलाम हस्नैन कनतूरी

हौज़ा / पैशकश: दानिशनामा ए इस्लाम, इंटर नेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी ! अल्लामा सैयद ग़ुलाम हस्नैन कनतूरी को अल्लामा कनतुरी के लक़ब से याद किया जाता है । आप 17 / रबीउल अव्वल सन / 1247 हिजरी मे सरज़मीने कनतुर पर पैदा हुए ।

सन 1254 / हिजरी मे आज़िम  ए लखनऊ हुए , मदरसा ए शाही मे इब्तेदाई कुतुब पढ़ीं , और 8 / साल की उम्र मे क़ुरान ए करीम की तालीम मुकम्मल की ।

अल्लामा कनतूरी , मुफ़्ती मोहम्म्द क़ुली ख़ान साहब क़िबला के दामाद थे , अल्लामा की शादी 1262 / हिजरी मे हुई । कुछ वजूहात की बिना पर पढ़ाई तर्क करके अपने वतन वापस आए और वहाँ इलम ए मूसीक़ी मे इस क़दर महारत हासिल करली के फ़न्ने मूसीक़ी के माहेरीन भी एहसास ए कमतरी के शिकार हो गए ।

अल्लामा ग़ुलाम हस्नैन कनतूरी ने बुज़ुर्ग उलामा  की ख़िदमत मे ज़ानु ए अदब तेह किये जिन मे से आयतुल्लाह सैयद हुसैन ( इल्लीईन मकान ) इब्ने आयतुल्लाह सैयद दिलदार अली ( गुफ़रान’मआब ) , आयतुल्लाह सैयद मोहम्म्द तक़ी  ( मुमताज़ुल उलामा ) बिन आयतुल्लाह सैयद हुसैन साहब , मौलाना सैयद अहमद अली साहब मोहम्मदाबादी क़ाबिल ए ज़िक्र हैं – अल्लामा को आयतुल्लाह सैयद हुसैन साहब और सुल्तानूल ओलमा आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद साहब ने इजाज़ा ए इजतेहाद अता फ़रमाया ।

तहसील से फारिग़ होने के बाद मदरसा ए सुल्तानिया के दारोग़ा क़रार पाये और सन /1861 मे लखनऊ चौक के रिजिस्ट्रार हुए , इस ज़िम्मेदारी को आप ने बहुत अच्छी तरह निभाया जिस के नतीजे मे अल्लामा को इनाम व इकराम से भी नवाज़ा गया ।

सन 1862 / ईसवी मे फ़ालिज का असर हो गया जिस के सबब चलने फिरने से माज़ूर हो गए , आप ने एक रात ख़्वाब देखा के दो ईसाई ख़वातीन आयी हैं और कह रहीं हैं के हम तुम्हें शिफ़ा दे सकते हैं लेकिन इस के लिए पहले तुम्हें ईसाई बनना पड़ेगा , अल्लामा को आलम ए  ख़्वाब में इस क़दर ग़ुस्सा आया के तमाम आज़ा ए बदन हरकत मे आ गए और जब बेदार हुए तो फलिज का असर ख़त्म हो चुका था ।

ग़ुलाम हस्नैन साहब तंगदस्ती के बावजूद नमाज़ ए जमात की उजरत लेना पसंद नहीं करते थे । अल्लामा की ज़हानत क़ाबिल ए दाद थी । खराब हुई घड़ी को खुद ही ठीक कर लिया करते थे । मौसूफ़ इल्म ए जफ़र मे भी माहिर थे ।

अल्लामा ने लखनऊ मे एक मदरसे की बुनियाद रखी , यह मदरसा पहले तो मुमताज़ुल ओलमा के इमाम बारगह मे रहा और फिर अल्लामा की कोशिशों से काफी तरक्क़ी हुई जिस की मौलाना अहमद अली साहब मोहम्मदाबादी ने तारीफो तमजीद भी की , तफ़सील के लिए नुजूमुल हिदाया जिल्द अव्वल  सफा / 185 की जानिब रुजू कर सकते हैं ।

जब मौसूफ़ ने मदरसे को तनज़्ज़ुली के आलम मे देखा तो घड़ी और साबुन का कारख़ाना खोला और इस मदरसे मे दर्स भी देते रहे । ग़ुलाम हस्नैन साहब ने ककरोली ज़िला मुज़फ़्फ़र नगर मे नील का कारख़ाना भी खोला , इसी दौरान आप ने मुमताज़ूल उलामा की तफ़सीर भी छपवाई , आपने प्रिंटिंग प्रैस भी खोली थी ताके किताबें नश्र करके लोगों तक दीन ए हक़ का पैग़ाम पहुचाएँ , अल्लामा ने जोधपुर , भरतपुर , आगरा , गुवालियर कश्मीर , मेरठ और मुज़फ़्फ़र नगर के अतराफ़ो जवानिब मे मतब खोले , आप ने पुराने से पुराने अमराज़ का इलाज करके उन्हें जड़ से ख़त्म कर दिया ।

अल्लामा ग़ुलाम हस्नैन साहब 64 / उलूम मे माहिर थे । जिन मे से फ़िक़्ह , तिब , फ़लसफ़ा , जफ़र , कीमिया , मनतिक़ , कलाम , हदीस , तफ़सीर , उलूमे क़ुरान , अदबियाते अरब , नहु , सर्फ , नुजूम , मेस्मेरिज़्म , तशरीहुल आज़ा और तबीइयात सरे फ़ेहरिस्त हैं ।

आप ने बहुत ज़ियादा इल्मी मीरास छोड़ी है जिस मे से चंद किताबें यह  हैं : शरहे कबीर का हाशिया , मुग़नी युल लबीब का हाशिया , शरहे एजाज़े खुसरवी , रिसाला ए शेख़ नवाब , जवाबे  रिसालाए शवाहिद , रिसाला ए नूरूलऐनैन , शरहे ज़ियारत ए नाहिया , अलफिया बज़्बाने उर्दू , हुसैनिया क़ुरआनिया और जवाबाते ग़ैरे मुस्लेमीन ।

अल्लामा ने एहलेसुन्नत हज़रात से मुनाज़ेरे भी किए जिनमे से सन 1894 / ईस्वी का मुनाज़ेरा यादगार है जो बेहड़ा सादात मुज़फ़्फ़रनगर मे अंजाम पाया था , मौसूफ़ दीगर मुनाज़िरों की तरह इस मुनाज़ेरे मे भी कामयाब रहे, इस मुनाज़ेरे से आप ने तमाम उलामा ए अहलेसुन्नत के दिलों मे घर कर लिया ।

अल्लामा सैयद ग़ुलाम हस्नैन कनतूरी शीआ सुन्नी इत्तेहाद के हामी ओ दायी थे और हमेशा सुन्नी  उलामा के साथ मिल कर काम करते थे चुनांचे मौलाना शिबली नोमानी के साथ नदवतुल उलामा की तासीस मे आप का अहम किरदार है ।

अल्लामा ज़ाहिरी तौर पर उलामा की मानिंद नहीं रहते थे लेकिन उनके तमाम काम उलामा वाले ही थे। और हमेशा दीने हक़ के दिफ़ा मे कोशाँ रहते थे ।

 ये उलूमो फ़ुनून का मरकज़ो महवर 13 / रबीउल अव्वल सन 1327 / हिजरी मे शहर फ़ैज़ाबाद मे अपनी अबदी  और हक़ीक़ी दुनिया की तरफ़  चल बसा और तशनगान ए इल्म को रोता बिलकता छोड़ गया ।

(माख़ूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, जिल्द 1, सफ़्हा 182, तहक़ीक़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी – मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी – दानिशनामा ए इस्लाम, नूर माइक्रो फ़िल्म, दिल्ली)

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टिप्पणियाँ

  • शाह असग़र IN 15:26 - 2021/07/16
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    जज़ाकुमुल्लाह बहुत अच्छी काविश है ख़ुदाहौज़ा नीव्ज़ एजेंसी के अराकीन और मज़मून निगारान को सहतो सलामती अता करे आमीन