۱۱ تیر ۱۴۰۳ |۲۴ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 1, 2024
अब्दुल हसन मुन्नन

हौज़ा / पैशकश: दानिशनामा ए इस्लाम, इंटर नेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली  

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार,  आयतुल्लाह सैयद अबुल हसन नक़वी : 28 सफ़र 1299 हिजरी में सरज़मीने मुंबई पर पैदा हुए ।

आप के वालिदे मोहतरम का नाम “शमससुल ओलमा आयतुल्लाह सैयद मौहम्मद इब्राहीम नक़वी” था ।

अबुल हसन साहब का लक़ब “मुम्ताज़ुल ओलमा” था और लोग “मुन्नन” के नाम से भी याद करते हैं । आप अपने ज़माने के मुसल्लमुस सुबूत मुज्तहिद थे ।

1305 हिजरी में मौलाना अबुलहसन साहब 7 साल की उम्र में अपने वालिदे मोहतरम के साथ पहली बार ज़ियारते अतबाते आलियात से मुशर्रफ़ हुए ।

मुन्नन साहब बला के ज़हीन और क़वी हाफ़ेज़े के मालिक थे, बहुत मेहनती और बा अख़्लाक़ थे, आप की इल्मी सलाहिय्यत शोह’रए आफ़ाक़ थी और फ़िक़्ह व उसूल में महारत की शोहरत अहले इल्म के तब्क़े में आम थी ।

मुम्ताज़ुल ओलमा साहब ने लखनऊ में बुज़ुर्ग और मुजर्रब असातेज़ा के सामने ज़ानूए अदब तेह किए जिन में से उस्ताज़ुल ओलमा सैयद सिब्ते हुसैन साहब, बहरुल उलूम अल्लामा अल्लन और क़ुद’वतुल ओलमा आक़ा हसन साहब के असमाए गिरामी क़ाबिले ज़िक्र हैं ।

आयतुल्लाह अबुल हसन इल्मी मदारिज को तैय करने की ग़रज़ से सन 1327 हिजरी में आज़िमे नजफ़े अशरफ़ हुए और वहाँ रह कर शेख़ुल इस्लाम आयतुल्लाह फ़त्हुल्लाह इसफ़हानी, आयतुल्लाह अली गुनाआबादी, आयतुल्लाह सैयद अबुल हसन इसफ़हानी और आयतुल्लाह मुस्तफ़ा काशिफ़ुलगिता से कस्बे फ़ैज़ किया ।

मुम्ताज़ुल ओलमा ने मुताअद्दिद इल्मी आसार तहरीर फ़रमाए जिन में से : अत-तजज़्ज़ी फ़िल इजतेहाद, अल- बर्क़ुल वमीज़ फ़ी मुनजेज़ातिल मरीज़ और हाशिया ए किफ़ायतुल उसूल शरहे उम्दा बर इलमे उसूल के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं ।

आप सन 1332 हिजरी में नजफ़े अशरफ़ से अपने वतन लखनऊ वापस आए और मदरसा ए नाज़िमिय्या व मदरसा तुल वाएज़ीन में तुल्लाब को फ़िक़्ह व उसूल का दर्स देने लगे ।

आयतुल्लाह सैयद अबुल हसन नक़वी साहब ने अपने बच्चों को ज़ैवरे इल्मो अदब से आरास्ता किया, जिन में से आयतुल्लाह अली नक़ी नक़्क़न साहब, आयतुल्लाह सैयद काज़िम साहब, मौलाना सैयद बाक़िर साहब, जनाब मुर्तज़ा साहब और जनाब सैयद अब्दुल हुसैन साहब के असमाए गिरामी क़ाबिले ज़िक्र हैं ।

आप ने येकुम ज़िलहिज्जा सन 1355 हिजरी में लखनऊ शहर में दाईए अजल को लब्बैक कहा और ग़ुस्ल व कफ़न के बाद इमाम बारगाहे सैयद तक़ी में मस्जिद के बाहर सुपुर्दे ख़ाक किए गए ।

(माख़ूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, जिल्द 3, सफ़्हा 31, तहक़ीक़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी – मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी – दानिशनामा ए इस्लाम, नूर माइक्रो फ़िल्म, दिल्ली)          

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