۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
آیت الله العظمی سیستانی

हौज़ा/हज़रत आयतुल्लाहिल उज़सा सैय्यद अली हुसैनी सिस्तानी के फ़तवों के अनुसार फितरा किस पर वाजिब हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़सा सैय्यद अली हुसैनी सिस्तानी के फ़तवों के अनुसार फितरा किस पर वाजिब हैं?
ईद की रात को जो भी बालिग़, आक़िल, होशियार हो फ़क़ीर न हो उस पर वाजिब है कि अपना और अपने परिवार का और जो भी उसकी रोटी खाने वाला समझा जाता हो उसका फ़ितरा निकाले।

2. अगर कोई शख़्स ईद से पहले अपने शहर से दूसरे शहर में किसी के यहां मेहमान हो जाए तो उसका फितरा वह ख़ुद निकालेगा या मेज़बान?

मेज़बान पर वाजिब है कि वह हर उस मेहमान का फ़ितरा निकाले जो ईद की रात (चाँद रात) को सूरज डूबने से पहले उसके घर आए और उसके घर खाना खाने वाला माना जाए चाहे कुछ देर के लिए ही यह क्यों न हो।

जैसे अगर कोई मेहमान सूरज डूबने से पहले उसके घर आए और रात को भी उसके घर ठहरे और मेज़बान भी अपने हिसाब से उसके लिए चीज़ों को मोहय्या करे और उसका ख़र्च उठाए तो अगरचे मेहमान कुछ न खाए या फिर वह अपना अफ़तार का सामान ख़ुद लेकर ही क्यों न आया हो तब भी मेज़बान पर वाजिब है कि उसका फ़ितरा निकाले।

3. क्या फ़ितरा सैय्यद को दिया जा सकता है?

सैय्यद का फ़ितरा सैय्यद को दिया जा सकता है।ग़ैर सैय्यद का फ़ितरा सैय्यद को नही दिया जा सकता हैं।

4. अगर कोई बिना बताए रमज़ान के आख़िरी दिन किसी के यहां मेहमान पहुँच जाए तो उसका फ़ितरा किस पर वाजिब होगा?

जो भी मेहमान ईद की रात को सूरज डूबने से पहले आ जाए और उसके पास रात को ठहरे (चाहे कुछ देर के लिए ही सही) और उसकी रोटी खाने वाला माना जाए तो उसका फ़ितरा मेज़बान पर वाजिब है, लेकिन अगर केवल अफ़तार के लिए किसी को दावत दी जाए और वह उसकी रोटी खाने वाला न माना जाए तो उसका फ़ितरा मेज़बान पर वाजिब नहीं है।

5. अगर कोई ईद की रात को फ़ितरा अलग कर दे और वह खो जाए या भूले से उसको ख़र्च कर ले तो उसकी क्या ज़िम्मेदारी है?

ज़रूरी है कि उसके बदले में दूसरा निकाले और एहतियाते वाजिब यह है कि (दूसरा निकालते समय) सिर्फ़ क़ुरबत की नियत करे।

6. फ़ितरा किस चीज़ पर और कितना निकालना चाहिए?

फ़ितरे में गेहूँ, जौ, खजूर, चावल या इसी तरह की चीज़ें (जो चीज़ भी वह ज़्यादा खाता हो) निकाले या फिर उनका पैसा दे और जिसका भी फ़ितरा निकालने वाले पर वाजिब है हर एक के बदले में तीन किलो या फिर उसके बराबर पैसा अदा करे।

याद रखें!
मस्जिद में अफतार भेजने पर फितरा वाजिब नहीं होता।

अगर शहर में मुस्तहक़ है तो फितरा दूसरे शहर नहीं भेज सकते।

जिसे फितरा दे रहे हैं, आप अपनी ज़िम्मेदारी अदा कर रहे हैं। उसे उसका हक़ दे रहे हैं, यह कोई एहसान नहीं है।

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