۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
مولانا سید حیدر مہدی زید پوری

हौज़ा / पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली, काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मौलाना सय्य्द हैदर मेहदी रिज़वी सन:१३१७ हिजरी मे कस्बा ज़ैदपुर ज़िला बाराबंकी मे पैदा हुए,आप के वालिदे मजिद मौलाना (बरकात अहमद) पाए के शायरे अहलेबैत(अ)थे जिनको क़साइद ओर नोहे लिखने में महारत हासिल थी|

आप ने इबतेदाई तालीम अपने वलिदे मोहतरम से हासिल की उसके बाद ज़ैदपुर की नामी गिरामी हस्ती (मौलाना हकीम सय्यद इमदाद हसन) से अरबी, सर्फ़, नहव,मआनी,बयान,लुग़तो­ बलाग़त के हुसूल के साथ इलमे फ़िक़ में (लुमा) की तालीम मुकम्मल की,चूंके आपका रुजहान इलमे माक़ूलात की तरफ़ ज़्यादा था लिहाज़ा उस अहद के माहिरे माक़ूलात मौलाना (सय्यद मोहम्मद रज़ा शमसाबादी) फ़लसफ़ी वा खतीब के सामने ज़ानुए अदब तै किये फिर अपनी मुसलसल कोशिश ओर मुतालए से माक़ूलात, मनतिक़ वा फ़लसफ़ाए इलाहियात पर ऊबूर हासिल किया, नीज़ इलमे कलाम वा मुनाज़ेरे पर दस्तरस हासिल करके अपने उस्तादे अज़ीम की फ़रमाइश से मिंबरे हुसैनी पर जलवा अफ़्रोज़ हुए ओर चन्द ही बरस में मैदाने खिताबत में मौलाना सय्यद मोहम्मद देहलवी, मौलाना हाफ़िज़ किफ़ायत हुसैन शिकारपुरी,नादेरतुज़्ज़मन सय्यद इबने हसन नोनहरवी के हम पल्ला क़रार पाए, मौलाना सय्यद हैदर मेहदी की खिताबत ओर ज़ाकरी का रंग इंतेहाई आलेमाना ओर फलसफ़ियाना होता था|

वीडियो देखेः  मौलाना सय्यद हैदर मेहदी ज़ैदपुरी

तक़सीमे मुल्क के वक़्त जब ओलमा वा खुताबा ने हिजरत की उस वक़्त मोमीनीने शिकारपुर ने (हाफ़िज़ किफ़ायत हुसैन) से सवाल किया आप के बाद हमें हिंदुस्तान में आप जैसा खतीब कहाँ नसीब होगा तो मौलाना हाफ़िज़ किफ़ायत हुसैन ने उनसे फ़रमाया क्या मौलाना हैदर मेहदी ज़ेदपुरी मुझ से कम हैं? जो रंग खिताबत में मेरा है वही रंग मशयते खुदावंदी से उनको नसीब हुआ है|

आप हिंदुस्तान के मुखतलिफ़ शहरों ओर क़रयों मे अय्यामे अज़ा मे मजालिस ख़िताब फ़रमाते रहते थे जिनमे, क़स्बा (सराए मीर आजमगढ़), (आदम पुर बेहराइच), (शिकारपुर बुलंदशहर) (इमामबागाह सय्यद फराज़ अली ख़ान जानसठ) ज़िला मुज़फ्फ़र नगर, क़स्बा (जलाली अलीगढ़) मे कसरत से जाया करते थे क़स्बा जलाली में अपने पिदरे आली क़द्र मौलाना (सय्यद बरकात अहमद नज्म) के बाद मुसलसल पैंतीस साल तक (इमामबारगाह सय्यद हाजी हसन) में ख़िताब किया|

नादेरतुज़्ज़मन आप के बड़े क़द्र दान थे सच है की (क़द्रे गोहर शाह दानद या बेदानद जौहरी) उनसे ऐसे रवाबित क़ायम हुए के जब भी मौलाना हैदर मेहदी लखनऊ तशरीफ़ ले जाते, नादेरतुज़्ज़्मन के बैतुश शरफ मे क़याम फ़रमाते थे,आप की जब कभी नादेरतुज़्ज़्मन के शागिर्द (मौलाना सय्यद हुसैन आले सय्यद हादी) ओर (मौलाना सय्यद अली आलेसय्यद बाक़िर) से मुलाक़ात होती तो बेशतर इल्मी मबाहिस दरम्यान में रहते थे|

आपको तक़रीर से कहीं ज़्यादा दिलचस्पी तहरीर से थी,दिन में मुसलसल केई घंटे किताबों के घेरे में बैठे हुए लिखा करते थे, आप के आसार में: मेराजुन नबी, बेसतुर रसूल, हिजरतुल मुरसल, ग़दीरे ख़ुम, ग़जवाते नबी, खंदक़, खैबर, जमल, नहरवान वा सिफ़्फ़ीन की तफ़सीलात वा तशरीहात तारीख़ी वाक़ेआत के तसलसुल से ज़ेबे क़िरतास हैं|

उसूले दीन के मोज़ूआत ख़ुसूसन तोहीद,मआद ओर सिफ़ाते बारये तआला पर कलामी पैराए के सैंकडो गैर मतबूआ मज़ामीन आपके आसार में मोजूद हैं। मुस्व्वादात का कसीर ज़ख़ीरा दो अदद लोहे की पेटयों मे अपनी बेकसी का मर्सिये खान है|

आखिरकार ये इलमो अमल का माहताब एक ज़ीक़ादा १३९३ हिजरी, मुताबिक़ २७ नवम्बर १९७३ई॰ को गुरूब हो गया, ओर अगले रोज़ आपकी नमाज़े जनाज़ा (नादेरतुज़ ज़मन मौलाना इबने हसन नोनहरवी) ने पढ़ाई ओर तिलक़ीन (मौलाना शबीहुल हसन नोनहरवी) ने पढ़ी ओर हसबे वसीयत (इमामबारगाह आगा मासूम वा हकीम सय्यद रियाज़ अहमद) की शह नशीन मे सुपुर्दे खाक कर दिया गया|

चालीसवें की मजलिस में (नादेरतुज़ ज़मन मौलाना इबने हसन नोनहरवी) ने तारीख साज़ ओर यादगारी बयान से मौलाना सय्यद हैदर मेहदी रिज़वी की रूहे पुर फ़ुतूह को खिराजे अक़ीदत पेश किया|

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-9 पेज-६७ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०२२ ईस्वी।

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