۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
शरई अहकामः

हौज़ाः जितना उसे रोज़े छोड़ने का यक़ीन हो, उतने रोज़ों की क़ज़ा करे और कफ़्फ़ारा भी अदा करे, लेकिन अगर उसके लिए मुश्किल हो और वह उसे न कर सके, तो ऐसी सूरत में मसले नं(1402) के मुताबिक अमल करें।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के मशहूर आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मकारिम शिराज़ी से शरई हुक्म के संबंध मे पूछे गए सवाल का जवाब दिया है। जो लोग शरई अहकाम मे दिल चस्पी रखते है हम उनके लिए पूछे गए सवाल और जवाब का पाठ बयान कर रहे हैं।

सवाल: एक शख्स ने रमज़ान के महीने में जानबूझ कर कुछ रोज़े नहीं रखे हैं, लेकिन वह सही संख्या नहीं जानता, ऐसे में उसका क्या वज़ीफ़ा हैं?


उत्तर: जितना उसे रोज़े छोड़ने का यक़ीन हो, उतने रोज़ों की क़ज़ा करे और कफ़्फ़ारा भी अदा करे, लेकिन अगर उसके लिए मुश्किल हो और वह उसे न कर सके, तो ऐसी सूरत में मसले नं(1402) के मुताबिक अमल करें।

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