۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
सैयद अहमद अली आबिदी

हौज़ा /आयतुल्लाह अल उज़मा सिस्तानी के वकीले मुतलक़ ने कहा कि किसी घर में सगाई करने से पहले ना ही उसका धन देखना चाहिए और ना ही उसकी शक्ल देखना चाहिए बल्कि उसके परिवार की गरिमा और शिष्टता को देखना चाहिए क्योंकि यदि लड़की शिक्षित, विनम्र, सुशील और सभ्य होगी तो वह अपने बच्चो को भी शिक्षित और विनम्र भी बनाएगी और उनका अच्छे से पालन पोषण कर सकेगी।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, पटना / माँ एक ऐसी परोपकारी जाति का नाम है, जिसका परोपकार किसी भी संतान द्वारा नहीं किया जा सकता है, जिस प्रकार एक बंदा अपने खुदा की इबादत का पूर्ण रूप से हक़ अदा नही कर सकता ठीक उसी प्रकार कोई भी संतान अपने मां के परोपकार और बलिदानों का भुगतान नहीं कर सकती। ईश्वर ने माँ का मरतबा पिता की तुलना मे अधिक रखा है और उसी के पैरों के नीचे स्वर्ग है क्योंकि एक पिता की जिम्मेदारी बच्चे के जन्म के बाद शुरू होती है जबकि माँ की ज़िम्मेदारी नौ महीने पहले शुरू होती है और वह गर्भ में पल रहे बच्चा का हर क्षण ध्यान रखती है। उसे खाना खिलाती है, और उसके जीवन के अस्तित्व के लिए सभी प्रकार की कठिनाइयों और परेशानीयो को सहन करती है। उक्त विचार हुज्जतुल-इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सैयद अहमद अली आबिदी वकील आयतुल्लाह सिस्तानी इंडिया और मदरसा जामिया अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) नजफी हाउस के प्रधानाचार्य ने रविवार को इमाम बांदी बेगम इमामबारगाह गुलजार बाग पटना में व्यक्त किए। 


मौलाना अहमद अली आबिदी ने शोक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि एक अच्छी माँ ही अपने बच्चों को अच्छी तरह से प्रशिक्षित कर सकती है। क्योंकि एक बच्चा अपनी माँ की गोद में पलता है और अपना अधिकतर समय अपनी माँ के साथ बिताता है। इसलिए, घर में रिश्ते करने से पहले  उसकी संपत्ति या अपनी हैसियत और स्थिति को नहीं देखना चाहिए, बल्कि उसके परिवार की गरिमा और शिष्टता को देखना चाहिए क्योंकि यदि लड़की शिक्षित, विनम्र, सुशील और सभ्य होगी तो वह अपने बच्चो को भी शिक्षित और विनम्र भी बनाएगी और उनका अच्छे से पालन पोषण कर सकेगी।


अपने संबोधन के दौरान, उन्होंने समाज को जागरुक करने,  अच्छा मुसलमान बनने और अल्लाह, पैगंबर और उनके परिवार वालो का पालन करते हुए अच्छे कर्म करने का आग्रह किया।


युवाओं को संबोधित करते हुए, मौलाना आबिदी ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए अपील की। अपने संबोधन के अंत में, उन्होंने हजरत फातिमा ज़हरा की शहादत का उल्लेख करते हुए शोक सभा का समापन किया।

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