۱۱ تیر ۱۴۰۳ |۲۴ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 1, 2024
बैनुल हरामैन

हौज़ा / इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने ज़ियारते अरबाईन को एक मोमिन की निशानीयो मे बताया है। इसे वाजिब और मुस्तहब नमाज़ो में क़रार दिया है। जैसे नमाज धर्म का स्तंभ है, वैसे ही वाक़ेआ ए कर्बला और ज़ियारते अरबाईन भी धर्म का स्तंभ है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी। इमाम हुसैन (अ.स.) का चेहलुम अरबी कैलेंडर के अनुसार 61 हिजरी के दूसरे महीने सफर का बीसवां दिन है। 10 मोहर्रम के दिन, पैगंबर के नवासे और उनके साथियों की शहादत के बाद, मुहर्रम की 11 तारीख को, यज़ीदी एजेंटों ने अहलेबैत को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें कुफ़ा और वहाँ से सीरिया ले गए। इस यात्रा और गिरफ्तारी के दौरान, जनाबे सैय्यदे सज्जाद और जनाबे ज़ैनब के उपदेशों ने पैगंबर और उनके परिवार के बारे में सीरियाई लोगों के बीच जागरूकता का माहौल बनाया। यज़ीद को बंदियों की रिहाई का आदेश देने के लिए मजबूर किया गया। कैद से रिहा होकर जिस दिन यह लुटा हुआ परिवार कर्बला पहुंचा यह चेहलुम का दिन था। यह वही दिन था जब पहली बार पैगंबर के साथी जाबिर इब्न अब्दुल्लाह अंसारी अतिया बिन सईद के साथ कर्बला पहुंचे थे। कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि यह घटना दूसरे वर्ष के चेहलुम के दिन की है।

ज़ियारते अरबाईन:
इमाम हसन अस्करी (अ.स.) से सुनाई गई हदीस में, ज़ियारते अरबाईन को एक मोमिन की निशानीयो मे गिना जाता है। इसके अलावा चेहलुम के दिना की एक ज़ियारत इमाम जाफ़र सादिक (अ.सय) से वर्णित है। शेख अब्बास क़ुम्मी ने इस ज़ियारत को मफ़ातिहुल जेनान के तीसरे अध्याय में ज़ियारत अरबीन के शीर्षक से लिखा है। क़ाज़ी तबताबाई लिखते हैं कि ज़ियारते अरबाईन को ज़ियारत "मर्रदुर रास" भी कहा जाता है। यानी सर का लौटा दिया जाना। क्योंकि अहलेबैत (अ.स.) के बंदी उस दिन कर्बला लौट आए, इसलिए वे सीरिया से हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) का सर भी वापस लाए थे, जिसे उन्होंने हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के पवित्र शरीर के साथ दफन किया।

अरबाईन की महान रैलियां:
जियारते अरबाईन पर इमामों का जोर देने के कारण लाखों शिया दुनिया भर के शहरों विशेष रूप से इराक और ईरान के शहरो और क़स्बो से नंगे पैर कर्बला की ओर निकलते है। 2013 के चेहलुम में यह संख्या 2 करोड़ से अधिक थी और यह संख्या हर साल बढ़ रही है। इतिहास से पता चलता है कि बनी उमय्या और बनी अब्बास के समय में भी, शियाओं ने खतरनाक परिस्थितियों के बावजूद भी ज़ियारते अरबाईन का सिलसिला जारी रखा था।

इमाम हसन अस्करी (अ.स.) ने ज़ियारते अरबाईन का वर्णन मोमिन की निशानियों में किया है।इसे वाजिब और मुस्तहब नमाज़ो में क़रार दिया है। जैसे नमाज धर्म का स्तंभ है, वैसे ही वाक़ेआ ए कर्बला और ज़ियारते अरबाईन भी धर्म का स्तंभ है। यदि हम पैगंबर (स.अ.व.व.) की इस हदीस पर विचार करें, तो यह स्पष्ट है कि ईश्वरीय पुस्तक का निचौड़ दीने इलाही है और इतरत का सार या निचौड़  ज़ियारते अरबाईन है। इस ज़ियारत में इमाम हुसैन (अ.स.) के उद्देश्य को बताया गया है, जो पैगंबर की रिसालत का उद्देश्य था। इमाम हुसैन ने भी अल्लाह की राह में अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया ताकि अल्लाह के सेवकों को अज्ञानता से निकाल कर शुद्ध किया जा सके।

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