۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
नमाज़

हौज़ा / इस्फ़हान के इमामे जुमआ ने कहा कि ईमान के बाद अल्लाह का सबसे महत्वपूर्ण हुक्म नमाज़ है जो इंसान के तमाम आमाल में सबसे ऊंचा मुकाम रखती है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार, वली-ए-फकीह के प्रतिनिधि और इस्फहान के इमामे जुमा आयतुल्लाह सैयद यूसुफ तबातबाई नज़ाद ने सिपाह-ए-साहिब-ए-ज़मान अज के तहत नमाज़ के प्रचार के क्षेत्र में सक्रिय व्यक्तियों की सेवाओं के सम्मान में आयोजित समारोह में नमाज़ की अहमियत पर रोशनी डाली।

उन्होंने कहा,नमाज़ सभी आमाल में सबसे अफज़ल है और ईमान के बाद अल्लाह तआला ने सबसे ज्यादा ज़ोर नमाज़ पर दिया है।

आयतुल्लाह तबातबाई नज़ाद ने अपने भाषण की शुरुआत हज़रत फ़ातिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत के मौके पर ताज़ियत पेश करते हुए की और उनके जीवन के अहम पहलुओं का ज़िक्र किया।

उन्होंने कहा कि हज़रत ज़हरा स. ने अपनी शहादत से पहले अमीरुल मोमिनीन (अ.) को नसीहत की कि वे सब्र का दामन थामे रखें और हमें याद रखें। इस वाकये से यह साबित होता है कि आलम-ए-बरज़ख का इस दुनिया से ताल्लुक बाकी रहता है और माता-पिता अपनी औलाद के आमाल से वाकिफ रहते हैं।

उन्होंने सूरह बक़रा की शुरुआती आयतों का हवाला देते हुए कहा कि तक़वा की पहली निशानी ग़ैब पर ईमान है, जिसमें खुदा, इमामे ज़मान (अज), और क़यामत पर यकीन शामिल हैं इसके बाद कुरआन में नमाज़ कायम करने की ताकीद की गई है, जिससे मालूम होता है कि इबादतों में नमाज़ को सबसे ज्यादा अहमियत हासिल है।

आयतुल्लाह तबातबाई नज़ाद ने स्पष्ट किया कि कुरआन करीम में इबादतों की तरतीब एक खास हिकमत के तहत बयान की गई है। जहां भी नमाज़ और ज़कात का ज़िक्र हुआ है, नमाज़ को हमेशा पहले रखा गया है। इसी तरह, आज्ञापालन के मामले में भी पहले अल्लाह की इताअत और फिर माता-पिता के साथ अहसान का ज़िक्र किया गया है।

उन्होंने कहा कि जो लोग गुनाहों में मुबतला होते हैं, उनसे जब उनके भटकाव की वजह पूछी जाती है तो अक्सर यह मालूम होता है कि वे नमाज़ के पाबंद नहीं थे। उन्होंने कुरआन मजीद की आयत "إِنَّ الصَّلَاةَ تَنْهَیٰ عَنِ الْفَحْشَاءِ وَالْمُنْكَرِ"
का हवाला देते हुए कहा कि नमाज़ इंसान को बेहयाई और बुराइयों से दूर रखती है।

आयतुल्लाह तबातबाई नज़ाद ने कहा कि मरने के बाद इंसान के आमाल का सिलसिला खत्म हो जाता है सिवाय उन कामों के जो सदक़ा-ए-जारीया हों, वह इल्म जिससे दूसरों को फायदा पहुंचे, या ऐसी औलाद जो माता-पिता के हक़ में दुआ करे।

उन्होंने आखिर में नमाज़ के सामाजिक प्रभावों का ज़िक्र करते हुए कहा कि नमाज़ न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक जीवन में भी इंसान की रहनुमाई करती है। यह इंसान को अल्लाह की करीबत प्रदान करने के साथ-साथ उसे बुराइयों और गलत रास्तों से महफूज़ रखती है।

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