हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "वसाइल उश शिया" पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
:قال الامام الرضا علیه السلام
مَنْ زَارَنِي عَلَى بُعْدِ دَارِي أَتَيْتُهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِي ثَلَاثِ مَوَاطِنَ حَتَّى أُخَلِّصَهُ مِنْ أَهْوَالِهَا إِذَا تَطَايَرَتِ الْكُتُبُ يَمِيناً وَ شِمَالًا وَ عِنْدَ الصِّرَاطِ وَ عِنْدَ الْمِيزَانِ
हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया:
जो व्यक्ति दूरी और कठिनाई के बावजूद मेरी ज़ियारत के लिए आता है, तो मैं क़यामत के दिन तीन स्थानों पर उसके पास आऊँगा ताकि उसे वहाँ की भयावहता से बचा सकूँ,
जब नाम-ए-अमाल दाएँ और बाएँ हाथ में दिया जा रहा होगा
जब सिराते पुल से गुज़रना होगा
और जब मीज़ान (तुला/तराज़ू) पर कर्मों का हिसाब-किताब हो रहा होगा।
यह रिवायत एक धार्मिक हदीस या रिवायत का तरजुमा है और ज़ियारत की अहमियत को दर्शाता है।
वसाइल उश शिया, भाग 10, पेज 433
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