۱۱ تیر ۱۴۰۳ |۲۴ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 1, 2024
रहबर

हौज़ा/आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने नमाज़ की 29वीं रॉष्ट्रीय क़ॉन्फ़्रेंस के नाम अपने संदेश में दो साल के बाद इसके आयोजन को ख़ुशी व बर्कत का सबब क़रार दिया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने नमाज़ की 29वीं रॉष्ट्रीय क़ॉन्फ़्रेंस के नाम अपने संदेश में दो साल के बाद इसके आयोजन को ख़ुशी व बर्कत का सबब क़रार दिया,
उन्होंने कहा कि एक ख़ुशक़िस्मत और अच्छे मुक़द्दर वाले समाज में दोस्ती क्षमाशीलता, मेहरबानी, हमदर्दी, आपसी मदद, एक दूसरे की भलाई और ऐसी ही दूसरे अहम रिश्ते नमाज के प्रचलित और क़ायम होने बर्कत से मज़बूत होते हैं।


सुप्रीम लीडर का संदेश कुछ इस तरह हैः

बिस्मिल्लाहअर्रहमान अर्रहीम

सारी तारीफ़ पूरी कायनात के मालिक के लिए और दुरूद व सलाम हो हज़रत मोहम्मद और उनकी पाक नस्ल ख़ास तौर पर ज़मीन पर अल्लाह की आख़िरी हुज्जत हज़रत इमाम महदी पर, हमारी जानें उन पर फ़िदा हों।

दो साल के बाद इस मुबारक कॉन्फ़्रेंस का आयोजन ख़ुशी और इनशाअल्लाह बर्कत का सबब होगा। नमाज़ की क़द्र और इस मुबारक फ़रीज़े की अहमियत को ज़ाहिर करने के लिए हर कोशिश चाहे वैचारिक हो या अमली हो, इंसानों के दिलों के नूरानी करने और उनकी ज़िन्दगी की महफ़िल को प्रकाशमय बनाने की राह में किया गया काम है।
अल्लाह की याद जिसका मोकम्मल नमूना नमाज़ है मन व आत्मा को आज़ाद और समाज को आबाद करती है। एक ख़ुशक़िस्मत और अच्छे काम करने वाले समाज में दोस्ती, क्षमाशीलता, छोटी मोटी बातों को नज़रअंदाज़ करना, मेहरबानी, हमदर्दी, एक दूसरे की मदद, एक दूसरे की भलाई चाहना और ऐसे ही दूसरे अहम रिश्ते, नमाज़ के प्रचलित और क़ायम होने की बर्कत से मज़बूत होते हैं।

जमाअत की नमाज़ की लाइनें, समाजी सरगर्मियों की एक दूसरे से जुड़ी हुयी लाइनों को वजूद में लाती हैं। मस्जिद का अपनाइयत और जोश से भरा केन्द्र, समाजी मैदान में आपसी सहयोग के केन्द्रों में रौनक़ लाता है। जब भी नमाज़, अल्लाह की बारगाह में मौजूदगी के एहसास के साथ अदा की जाए, ज़िन्दगी के सभी पहलुओं में उसका असर ज़ाहिर होता है और शख़्स और समाज का लोक परलोक दोनों संवर जाता है।
नमाज़ी -जो भी हो जहाँ भी हो- अपनी गुंजाइश के मुताबिक़ नमाज़ से फ़ायदा हासिल करता है, लेकिन इस में बच्चे और नौजवान सबसे आगे हैं, ख़ुलूस से अदा की जाने वाली नमाज़ से उन्हें हासिल होने वाला फ़ायदा कहीं ज़्यादा है। बच्चों और नौजवानों का दिल उस भलाई तक पहुंचने के लिए ज़्यादा तैयार होता है जिसकी तरफ़ तेज़ी से बढ़ने की नमाज़ सिफ़ारिश करती है।
माँ-बाप, टीचर, उस्ताद, नसीहत करने वाले और मार्गदर्शन करने वाले नमाज़ और नौजवानों के बीच इस संपर्क को याद रखें और उनके कंधों पर जो ज़िम्मेदारी है, उसे पहचानें।


स्कूल, यूनिवर्सिटियां ख़ास तौर पर टीचर्ज़ ट्रेनिंग यूनिवर्सिटियां, रेडियो और टीवी संस्था और कल्चरल सरगर्मियां करने वाले दूसरे विभाग “नमाज़ क़ायम करो” के असली मुख़ातब हैं अल्लाह से सभी की तौफ़ीक़ की दुआ करता हूं।

सैय्यद अली ख़ामेनेई

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