۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
शौकत भारती

हौज़ा / कुरान और अहलेबैत दोनों किसी भी हाल में एक दूसरे से जुदा नहीं होंगे और दोनों हौज़े कौसर पर एक साथ उनके पास पहुचेंगे।इस हदीस से ये साफ़ हो गया की बादे रसूल अज़वाज, असहाब और उम्मत को रसूल अल्लाह के बाद हर हाल में कुरान और अहलेबैत के पीछे पीछे ही चलना था और चलना है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

शौकत भारती द्वारा लिखित, ह्कीकी मुसलमान रसूल अल्लाह स.व की अनमोल हदीस हदीसे सकलैन को कभी नहीं भुला सकता जिसपर अमल न करने में जहन्नम की और अमल करने में जन्नत की गारंटी है, इस हदीस में साफ साफ बता दिया गया  है की रसूल अल्लाह अपने बाद अपनी ज़ौजा,अपने सहाबी और अपनी उम्मत की हिदायत और उन्हें  गुमराही से बचाने के लिए दो चीज़ें छोड़ कर गए थे एक कुरान और दूसरे अहलेबैत,रसूल अल्लाह ये भी बता गए थे की जो इन दोनो को मजबूती से पकड़े रहेगा सिर्फ वही गुमराह होने से बचेगा और जो नहीं पकड़ेगा वो गुमराह होकर जहन्नम चला जायेगा।उन्हों ने ये भी गारंटी दे दी थी की कुरान और अहलेबैत दोनों किसी भी हाल में एक दूसरे से जुदा नहीं होंगे और दोनों हौज़े कौसर पर एक साथ उनके पास पहुचेंगे।इस हदीस से ये साफ़ हो गया की बादे रसूल अज़वाज, असहाब और उम्मत को रसूल अल्लाह के बाद हर हाल में कुरान और अहलेबैत के पीछे पीछे ही चलना था और चलना है।अजवाज,असहाब और उम्मत सभी को नसीहत करने वाली रसूल अल्लाह की ये अनमोल हदीस ये बता रही है की इस्लाम की सारी बात पर अमल करने के बाद भी अगर कोई इस हदीस पर अमल नहीं करेगा तो वो गुमरही से नहीं बचेगा और जन्नत की खुशबू भी नही सूंघ पाएगा और सीधा जहन्नम में जायेगा। अल्लाह की मर्जी से कलाम करने वाले रसूल ने इस हदीस में दो गारंटी दी है, कुरान और अहलेबैत के दामन को पकड़ने वालों को जन्नत की गारंटी कुरान और अहलेबैत को छोड़ देने वालों को जहन्नम की गारंटी।

अफसोस की बात है कि बादे रसूल खिलाफत हासिल करने की डर्टी पॉलिटिक्स करने वालो ने जहन्नममी और जन्नती का फर्क बताने और उम्मत को मुत्तहिद रखने वाली इसी अनमोल हदीस को खिलाफत की कुर्सी हासिल करने के खेल में ठुकरा दिया और इसी हदीस को ठुकराने की वजह से 50 साल में इस्लाम का वो हशर हो गया कि जो इस्लाम हर तरह की बुराइयों को खत्म कर के अदल और अमन कायेम करने आया था उसी इस्लामी खिलाफत की कुर्सी पर यजीद जैसा बुराइयों का सबसे बड़ा मुजस्समा खलीफा बन कर बैठ गया।

बादे रसूल कुरान को ठुकरा कर  जो तकवे में सब से अफ़ज़ल नहीं था उसे खलीफा बना दिया गया जब की कुरान में साफ साफ एलान कर दिया है की "अल्लाह की निगाह में जो तकवे में सबसे अफ़ज़ल वही सबसे अफ़ज़ल" इसी कुरानी  उसूल के तहत मैदाने गदीर के सवा लाख के मजमे में पैगंबर ने उस अली को सबका मौला और उलील अमर बना दिया था जिसके तकवे का दुनिया में कोई जोड़ ही नहीं था,मगर कुरान के उसूल के मुताबिक किए गए रसूल अल्लाह के सिलेक्शन को बादे रसूल खुले आम रिजेक्ट कर के कुरान और अहलेबैत दोनों से ही मुंह मोड़ लिया गया और इस तरह बादे रसूल खुले आम कुरानी उसूलों को तोड़ कर खिलाफत हासिल करने का खेल शुरू हो गया और इसी का नतीजा ही 50 साल बाद यजीद की शक्ल में सामने आ गया और यजीद ने कुरान और अहलेबैत की तौहीन की सारी हदें पार कर डालीं। किसी ने सही कहा है की रसूल की आंख बंद होते ही रसूल का कलमा पढ़ने वालों ने कुरान को पकड़ा ही नहीं और अहलेबैत को जिंदा छोड़ा ही नहीं बादे रसूल उम्मत कुरान और अहलेबैत को छोड़ कर इतना खुद मुख्तार हो गई थी की वो कुरान से एक पल के लिए भी जुदा न होने वाले अहलेबैत को अपने पीछे पीछे चलाने के चक्कर में पड़ गई और  उसी कोशिश में सबसे पहले रसूल अल्लाह की चहीती बेटी जनाबे फातिमा पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़ डाले जबकि सब जानते थे की रसूल के अहलेबैत में सबसे ज्यादा करीबी रसूल की बेटी ही है जिसके लिए रसूल अल्लाह बता गए थे की मेरी बेटी फातिमा मेरा टुकड़ा है जिसने इसे अजीयत दी उसने मुझे अजीयत दी अल्लाह ने भी सूरए अहजाब की आयत नंबर 57 में बता दिया है की रसूल अल्लाह को अजीयत देने वालों पर अल्लाह और उसके रसूल की लानत है और उसके लिए दर्दनाक अजाब है।रसूल अल्लाह ये भी बता गए थे की मेरी बेटी फातिमा के गजबनाक होने से अल्लाह गजबनाक होता है, मगर उसी बेटी के घर को आग लगाई गई,उसके शिकम में पल रहे उसके बच्चे को शिकम के अंदर ही शहीद कर दिया गया, रसूल का कलमा पढ़ने वालों ने रसूल की बेटी को इतना  इतना सताया,इतना दुख दिया की वो रसूल अल्लाह के विसाल के 6 महीने के बाद ही दुनिया को छोड़ गईं। खुद रसूल की एक ज़ौजा ने हदीस सकलैन की खुली हुई मुखालिफत करते हुए फातिमा के शौहर और सिलसिलतुजजहेब की पहली कड़ी ताजदारे विलायत और इमामत और अहलेबैत के दूसरे फर्द अली पर एक बड़े लश्कर के साथ हमला कर दिया, उन पर कतले उस्मान का झूठा इल्जाम लगा कर उन्हें कत्ल करना चाहा मगर वो जंग हार गईं जिसका सुबूत जंगे जमल है, उसके बाद अपने आप को सहाबी कहने वालों ने अली से जंगे सिफ्फीन और जंगे नहरवान की इस तरह से अपने आप को रसूल का सहाबी बताने वालों ने खुले आम हदीस सकलैन की मुखालिफत करते हुए हज़रत अली से जंग की और सारी जिंदगी अली पर ज़ुल्म किए अपने मतलब के लिए कुरान का खुल कर गलत इस्तेमाल किया आखिर कार एक गहरी साजिश कर के मस्जिदे कूफा में सजदे कि हालत में अली पर हमला करवाया अली उस हमले से इतना शदीद जख्मी गए की उनकी शहादत हो गई, अली शहीद हो गए हजरत अली को शहीद करने वाले,उनसे जंग करने वाले,उन्हे मस्जिदों से गालियां देने वाले अच्छी तरह जानते थे की अली सिलसिलातुजजहेब की पहली कड़ी हैं इनका दुश्मन मुनाफिक है,अली पहले इमाम हैं जिन्हे नबी ने उनके तकवे की बुनियाद पर अल्लाह के हुक्म से सबका मौला बनाया था,अली के बड़े बेटे इमाम हसन को जो सिलसिलातुजजहेब की दूसरी कड़ी थे उन्हे भी ज़हर दिलवा कर शहीद कर दिया गया उनके जनाजे पर तीर भी बरसाए गए और रसूल का कलमा पढ़ने वालों ने रसूल के इस नवासे को रसूल के पहलू में दफन तक नहीं होने दिया जबकि सब इमाम हसन पर भी नमाज़ में दुरूद भेजते थे और उन्हें जन्नत सरदार मानते थे,हजरत अली के दूसरे बेटे और सिसिलातुजजहेब की तीसरी कड़ी रसूल अल्लाह के छोटे नवासे और जन्नत के दूसरे सरदार इमाम हुसैन को औरतों बच्चों और खानदान वालों के साथ मदीना छेड़ने पर मजबूर कर दिया गया,उन्हें मक्के में भी पनाह नहीं दी गई आखिर कार उन्हें और उनके 71 साथियों को मैदान कर्बला में यजीदी फौज ने तीन दिन का भूखा प्यासा रख कर शहीद कर डाला,शहीदों के सर काट कर नैजों पर बुलंद किए गए लाशों पर घोड़े दौड़ाए गए,शहीदों की लाशों को दफ़न भी नही करने दिया,इमाम हुसैन और उनके साथियों की लाशें यूं ही खुले आसमान के नीचे पड़ी रहीं।

जिंदा बचे हुए रसूल अल्लाह के खानदान के लोगों जिनमें औरतें बच्चे और एक बीमार बेटा शामिल था कैदी बना कर के गलियों और बाजारों में घुमाया गया खूब जलील किया गया और फिर यजीद के सामने कैदी बना कर पेश किया गया,यजीद रसूल के नवासे और दीगर  शहीदों के सरों और रसूल अल्लाह के खानदान वालों को कैदियों की शक्ल में देख कर बहुत खुश हुआ और उसने भरे हुए दरबार में सबके सामने कहा की इन बागियों ने हमारी हुकूमत के खिलाफ खुरूज किया था ये उन बागियों के सर हैं और ये जंग के कैदी हैं उसने एक शेर पढ़ा जिसका माफहूम यह है "मोहम्मद पर न कोई वही आती थी न वो कोई रसूल था,उसने तो हुकूमत हासिल करने के लिए ये सब ढोंग रचा था,काश बद्र और ओहद में मोहमद से जंग करनेवाले मेरे आबाओ अजदाद जिंदा होते तो ये सब देख कर बहुत खुश होते और मुझे दुआ देते की मैने बद्र में मारे जाने वाले अपने खानदान वालों का मोहम्मद के खानदान से चुन चुन कर बदला ले लिया"।

 रसूल अल्लाह के जाने के फकत 50 साल के बाद ये एलान यजीद इस्लामी तख्त पर बैठ कर कर अपने भरे दरबार में कर रहा था और कुरान,इस्लाम और रसूल का कलमा पढ़ने वाले वाले ये सब सुन रहे थे और अपनी अज़ान और नमाज़ में अल्लाह की वहदानियत और रसूल की रिसालत का इकरार भी कर रहे थे,अपनी नमाजों में जिन आले मोहम्मद पर रसूल के साथ दुरुद भी भेज रहे थे उनका ये अंजाम सब के सब अपनी आंखों से देख रहे थे। ये सब उस अनमोल हदीस को ठुकराने का नतीजा था जो रसूल अल्लाह के पचास साल बाद यजीद की शक्ल में मौजूद था,इस वाकए के बाद मदीने वालों ने यजीद की बैयत तोड़ दी और इसके जवाब में यजीद ने मदीने पर हमला करवाया यजीद की फौज के सिपाही अंग्रेज या यहूदी नहीं थे सब के सब  मुसलमान थे जिन्हो ने मदीने में तीन दिन तक कतले आम किया  हज़ारों सहाबियों की लड़कियों का रेप किया जिसके नतीजे में एक हज़ार नजायेज बच्चे पैदा हुए,मस्जिदे नब्वी को यजीदी फौज ने अपने जानवरों को बांधने का अस्तबल बना दिया, जहां जानवर पेशाब पाखाना करते रहे तीन दिन तक मस्जिद नबवी में नमाज़ भी नहीं हो सकी,मदीने को बर्बाद करवाने के बाद यजीद ने मक्के पर हमला करवा दिया खानए काबा में आग लगा लगवा दी यजीद और न जाने क्या क्या करवाता मगर इसी बीच वो मर गया,यजीद के बाद के तख्ते खिलाफत संभालने वालों ने मस्जिदों के मिबरों से अहलेबैत को गालियां दीं खास कर अली को  गालियां दीं जबकि वो रसूल अल्लाह की हदीस सब अच्छी तरह जानते थी की जिसने अली को गाली दी उसने रसूल अल्लाह को गाली दी,अहलेबैत को गाली देने का ये सिलसिला बनी उमय्या के आखरी बादशाह उमर बिन अब्दुल अजीज ने बड़ी मुश्किल से बंद करवाया और उसने फिदक की जागीर भी वापस की जो दोबारा ले ली गई, बनी उमय्या और बनी अब्बास के खलीफाओं ने अहलेबैत के इमामों और अली और फातिमा की औलादों को जिन्हें मुसलमान सिलसिलातुजजहेब कहते हैं उस सिलसिले के चौथे इमाम,इमाम जैनुल आब्दीन, पांचवे,इमाम, इमाम मोहम्मद बाकर,छटे,इमाम, इमाम जाफर सादिक,सातवें इमाम, इमाम मूसा काजिम, आठवें इमाम,इमाम अली रजा, नवें इमाम इमाम मोहम्मद तकी, दसवें इमाम,इमाम अली नकी और ग्यारवें इमाम, इमाम हसन असकरी सब के सबको  ज़हर दे दे कर शहीद करवा दिया,इनका कुसूर ये था की ये सभी लोग एक पल के भी लिए कुरान से जुदा होने को तैयार नहीं थे और वो हो भी नहीं सकते थे क्यों की रसूल अल्लाह इस बात की गारंटी दे कर खुद गए थे वो लोग इन बादशाहों को इस्लामी खलीफा नहीं मानते थे इस लिए उन नाम निहाद इस्लामी खकीफाओ ने इन लोगों की लिए ज़हर का इस्तेमाल किया अगर खुले आम शहीद करते तो इनका कुसूर बताना पड़ता खुले आम शहीद करते तो यजीद की तरह वो भी बदनाम हो जाते इस लिए उन्होंने जहर का इस्तेमाल किया,अल्लाह ने आखरी इमाम,इमाम मेहदी को अपनी हिक्मत से बचा लिया और उनके जुहूर के बाद ही अल्लाह ताला दुनिया को जुल्म और सितम से नज़ात देगा।अल्लाह से दुआ है की अल्लाह जल्द से जल्द सिलसिलातुजजहेब की बारवीं कड़ी इमाम मेहदी का जुहूर करे।

हदीसों और तारीख की किताबों को पढ़ने से यही नतीजा निकला की मुसलमानों ने रसूल अल्लाह की अनमोल हदीस,हदीस सकलैन को ठुकरा दिया और अहलेबैत को इमामों को इस लिए शहीद कर दिया की वो कुरान से एक पल के लिए भी हटने को तैयार नहीं थे अफसोस है की रसूल अल्लाह की अनमोल हदीस हदीस सकलैन की मुखालिफत करते हुए मुसलमानों ने कुरान को पकड़ा नहीं और अहलेबैत को जिंदा छोड़ा नहीं।यही वो बुनियादी वजह है की अहलेबैत के हकीकी चाहने वाले  मुसलमानों को कुरान और अहलेबैत के दामन से वाबस्ता करने के काम में लगे हुए हैं और मुसलमानों को जन्नत वालों और जन्नत के सरदारों से जोड़ने के काम में लगे हुए हैं।

धंधे बाज़ मूल्ला और पीर अहलेबैत के नाम पर फकत अपनी रोटी चला रहे हैं और अपने हाथ चुमवा रहे हैं और ऐश कर रहें हैं उन्होंने तो अपने मुरीदों को जिन्हें ये सिलिसिलतूजजहेब कहते हैं उन 12 इमामों के नाम तक याद नहीं करवाए हैं,अल्लाह से यही दुआ है की जो लोग भी रसूल अल्लाह की उममत को कुरान और अहलेबैत के दामन से वाबस्ता करने और अहलेबैत के दुश्मनों से दूरी अख्तियार करवाने के काम में लगे हुए हैं उनकी तौफीकात में लगातार  इज़ाफा करे।
(शौकत भारती)
(सदर असर फाउंडेशन)

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