बुधवार 24 मई 2023 - 07:35
कज़ा नमाज़ के बारे में पाँच बिंदु

हौज़ा / जितनी नमाज़ें पढ़ी नहीं गई हैं या बातिल हो गई हैं और अब उनका समय भी बीत चुका है, उनकी क़ज़ा करना ज़रूरी है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

कज़ा नमाज़ के बारे में पाँच बिंदु

1⃣ वह तमाम नमाज़ें जो पढ़ी न गई हों या बातिल हो गई हों और अब उनका वक़्त भी गुज़र गया हो तो उनकी क़ज़ा करना ज़रूरी है।

2. क़ज़ा नमाज़ो को जमाअत के साथ पढ़ा जा सकता है।

3⃣ क़ज़ा नमाज़ जब भी मौका मिले किसी भी समय पढ़ी जा सकती है।

4⃣ नमाज़ कज़ा मूल के अधीन है, उदाहरण के लिए, यदि नमाज़ चार रकअत क़ज़ा है, तो चार रकात पढ़ी जाएंगी, उदाहरण के लिए, सुबह, मगरिब, इशा को आवाज़ के साथ पढ़ा जाता हैं। इन्हें झरी नमाज़ कहा जाता है, तो इनकी क़ज़ा भी ऐसी ही है, और अगर ज़ुहर और अस्र आमतौर पर बिना आवाज़ के पढ़ी जाती हैं। तो उनका क़ज़ा उसी तरह अदा किया जाएगा और उन्हें इख़्फ़ा कहा जाता है।

5⃣ यात्रा के दौरान चार रकत नमाज क़सर अर्थात दो रकत पढ़ी जाती है।

लेकिन
उनकी कज़ा भी दो रकअत पढ़ी जाएगी।

स्रोत:
1. तहरीर अल-वसिला, खंड 1, पृष्ठ 223
2. तहरीर अल-वसिला, खंड 1, पृष्ठ 265
3. तहरीर अल-वसिला, खंड 1, पृष्ठ 224

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