हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के कैडिट कालेजों के स्टूडेंट्स के कम्बाइंड स्टडी सेशन को वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए ख़िताब किया। उन्होंने इस वर्चुअल मुलाक़ात में कहाः “जो लोग दूसरों के सहारे अपनी सुरक्षा हासिल करने के भ्रम में हैं, जान लें कि जल्द ही इसका तमांचा खाएंगे।”
आर्म्ड फ़ोर्सेज़ के कैडिट कालेजों के स्टूडेंट्स का कम्बाइंड स्टडी सेशन रविवार 3 अक्तूबर को आयोजित हुआ, जिसे सुप्रीम लीडर ने वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए संबोधित किया। इमाम हुसैन कैडिट कॉलेज के इस प्रोग्राम में आर्म्ड फ़ोर्सेज़ की कई इकाइयां और उनके कमांडर मौजूद थे।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस प्रोग्राम में देश की आर्म्ड फ़ोर्सेज़ को ईरानी जनता और देश के लिए मज़बूत क़िला बताते हुए कहाः “जैसा कि अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः फ़ौजें अल्लाह की आज्ञा से रिआया का क़िला हैं।” हमारा देश इस कथन पर पूरा उतरता है। आज आर्म्ड फ़ोर्सेज़ संस्था, फ़ौज, आईआरजीसी, पुलिस और स्वंयसेवी बल बसीज आंतरिक व बाहरी दुश्मनों के ख़तरों के मुक़ाबले में सही अर्थ में सुरक्षा शील्ड हैं।
इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर ने देश में सुरक्षा की अहमियत को बयान करते हुए कहाः “किसी भी देश की तरक़्क़ी की बुनियादी शर्त सुरक्षा है। आर्म्ड फ़ोर्सेज़ को सुरक्षा पर, सबसे अहम मामले के तौर पर ध्यान देना चाहिए।”
उन्होंने किसी देश की सुरक्षा को उसी देश के सुरक्षा बलों के हाथों मुहैया होने और किसी देश की सुरक्षा के विदेशियों के हाथ में न होने पर बल देते हुए कहाः “जो लोग दूसरों के सहारे अपनी सुरक्षा हासिल करने के भ्रम में हैं, जान लें कि जल्द ही इसका ख़मियाज़ा भुगतेंगे।”
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने यूरोप-अमरीका के बीच हालिया मतभेद का ज़िक्र करते हुए कहा कि इससे हर देश की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उसी देश की फ़ोर्सेज़ के हाथों में होने की अहमियत का पता चलता है। उन्होंने कहाः “हाल ही में यूरोप और अमरीका के बीच हुयी कहासुनी में यूरोपियों ने कहा कि अमरीका ने उनकी पीठ में छुरा घोंपा है। माजरा यह है कि यूरोप को नैटो से हटकर जिसमें अमरीका बुनियादी हैसियत रखता है, अपनी सुरक्षा अपनी फ़ोर्सेज़ के हाथों मुहैया करने की ज़रूरत पड़ गई है।”
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने यूरोपीय देशों की सुरक्षा को विदेशी फ़ोर्सेज़ पर निर्भर बताया और इसे इन देशों के नुक़सान में बताया। उन्होंने तुलना करते हुए कहा: “यहाँ तक कि यूरोप के विकसित देश भी जब अपनी सुरक्षा को बाहरी ताक़त पर निर्भर पाते हैं, चाहे वह बज़ाहिर उनकी दुश्मन नहीं है, तो वह अपने भीतर कमी का एहसास करते हैं। सच्चाई भी यही है कि यह कमी है। वे देश जो विकसित नहीं हैं, जिनकी फ़ोर्सेज़ अमरीका और उसके जैसे देशों के अख़्तियार में हैं, उनके लिए तो और भी ज़्यादा ही चिंता की बात है।”
सुप्रीम लीडर ने किसी देश के सुरक्षा मामले में विदेशियों के हस्तक्षेप को, उस देश के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बताते हुए कहाः “दुनिया के देशों के लिए सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि विदेशी उनके सुरक्षा मामलों में हस्तक्षेप करें, उनके लिए जंग और शांति की योजना बनाएं और उन्हें गाइडलाइन दें। आज यूरोपीय देश जो नेटो की छत्रछाया में जी रहे हैं, स्वाधीन तौर पर आगे बढ़ना चाहते हैं।”
इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर ने क्षेत्र में अमरीका सहित विदेशी फ़ोर्सेज़ की मौजूदगी को जंग और तबाही की वजह बताते हुए कहाः “सभी को यह कोशिश करनी चाहिए कि देश स्वाधीन रहे, फ़ौजें आत्मनिर्भर रहें, अपनी जनता पर निर्भर रहें, दूसरे पड़ोसी देशों सहित क्षेत्र की दूसरी फ़ौजों के साथ मिल कर सहयोग करें।”
उन्होंने इसी परिप्रेक्ष्य में अफ़ग़ानिस्तान में अमरीकी फ़ोर्सेज़ के जुर्म का ज़िक्र करते हुए कहाः “अमरीकी फ़ोर्सेज़ पारम्परिक और ग़ैर पारम्परिक हथियारों से लैस होकर हमारे पड़ोसी देश अफ़ग़ानिस्तान में दाख़िल हुयीं कि तालेबान को हटाएं। इस देश में 20 साल रहीं, नरसंहार और जुर्म किए, नाजायज़ क़ब्ज़ा किया, ड्रग्स को बढ़ावा दिया, इस देश के लिमिटेड इन्फ़्रास्ट्रक्चर को तबाह कर दिया, बीस साल बाद तालेबान के हाथ में सत्ता थमा कर निकल गयीं।”
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने क्षेत्र में विदेशी फ़ौजों को किसी तरह के हस्तक्षेप की इजाज़त न देने पर बल देते हुए क्षेत्र की सरकारों को सुझाव दियाः “हम ऐसा न होने दें कि विदेशी फ़ौजें हज़ारों किलोमीटर दूर से आएं, इन देशों में हस्तक्षेप करें, फ़ौज के तौर पर मौजूद रहें और उनकी फ़ौजों में हस्तक्षेप करें जबकि विदेशी फ़ौजों का क्षेत्रीय राष्ट्रों से कोई संबंध नहीं है, बल्कि वे अपने फ़ायदे के बारे में सोचती हैं। ख़ुद इस क्षेत्र की फ़ोर्सेज़ इस क्षेत्र को संभाल सकती हैं, दूसरों को दाख़िल होने की इजाज़त मत दीजिए।”
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनेई ने देश के पश्चिमोत्तरी छोर पर हुयी कुछ घटनाओं की ओर इशारा करते हुए कहाः “हमारे देश के पश्चिमोत्तर में हुई घटनाएं, कुछ पड़ोसी देशों में हो रही हैं, यह भी उन मामलों में है जिसे इसी तर्क से हल करना चाहिए। अलबत्ता हमारा देश, हमारी फ़ोर्सेज़ तर्क के साथ क़दम उठाती हैं।”
आख़िर में इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर ने क्षेत्र की सरकारों को सूझबूझ के साथ क़दम उठाने का सुझाव देते हुए कहाः “दूसरों को भी सोच समझ कर क़दम उठाना चाहिए। क्षेत्र को किसी मुश्किल में फंसने न दें। जो लोग अपने भाई के लिए कुआं खोदते हैं, पहले ख़ुद उस कुएं में गिरते हैं।”