۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
کربلا-روز عاشور

हौज़ा/अमेरिका के मशहूर इतिहासकार एप्रोनिक वाशिंग्टन से लिखता है कि: इमाम हुसैन अ.स. यज़ीद के सामने झुक कर अपनी जान को बचा सकते थे, लेकिन इमामत की ज़िम्मेदारी इजाज़त नहीं दे रही थी कि आप यज़ीद जैसे इंसान को ख़लीफ़ा मानें, उन्होंने इस्लाम को बनी उमय्या के चंगुल से नजात दिलाने के लिए हर तरह की कठिनाइयों और मुश्किलों को हंसी ख़ुशी क़बूल कर लिया, चिलचिलाती धूप में तपते हुए जंगल में हुसैन ने हमेशा बाक़ी रहने वाली ज़िंदगी ख़रीद ली,

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,अमेरिका के मशहूर इतिहासकार एप्रोनिक वाशिंग्टन से लिखता है कि: इमाम हुसैन अ.स. यज़ीद के सामने झुक कर अपनी जान को बचा सकते थे, लेकिन इमामत की ज़िम्मेदारी इजाज़त नहीं दे रही थी कि आप यज़ीद जैसे इंसान को ख़लीफ़ा मानें, उन्होंने इस्लाम को बनी उमय्या के चंगुल से नजात दिलाने के लिए हर तरह की कठिनाइयों और मुश्किलों को हंसी ख़ुशी क़बूल कर लिया, चिलचिलाती धूप में तपते हुए जंगल में हुसैन ने हमेशा बाक़ी रहने वाली ज़िंदगी ख़रीद ली,

अल्लाह ने इमाम हुसैन अ.स. के लिए ख़ास इंतज़ाम रखा है जो किसी नबी या मासूम के लिए नहीं रखा सवाल यह है कि क्यों और कैसे इमाम हुसैन अ.स. ने यह मक़ाम हासिल किया, इसका जवाब आपकी ज़िंदगी और सीरत पढ़ने से मिल जाता हैं।

इमाम हुसैन अ.स. न केवल शियों के दिलों में ख़ास मक़ाम रखते हैं बल्कि सारे मज़हब और धर्म के लोग आपको एक ख़ास निगाह से देखते हैं और विशेष सम्मान करते हैं और आपके के लिए कुछ अहम बातों की तरफ़ इशारा भी किया है जिसमें से कुछ की तरफ़ इस लेख में ग़ैर मुस्लिम स्कॉलर्स की ज़बानी बयान कर रहे हैं।

ए. एल. पोएड लिखते हैं कि: इमाम हुसैन अ.स. ने यह सीख दी है कि दुनिया में कुछ हमेशा बाक़ी रहने वाले उसूल जैसे अदालत, रहम, मोहब्बत वग़ैरह पाए जाते हैं जिनको बदला नहीं जा सकता और इसी तरह जब समाज में कोई बुराई फैल जाए और इंसान उसके मुक़ाबले उठ खड़ा हो तो वह दुनिया भर में एक न बदले जाने वाले उसूल की तरह हमेशा बाक़ी रहेगा, पिछली कुछ सदियों में कुछ लोग हमेशा हिम्मत, ग़ैरत, इज़्ज़त जैसी चीज़ों को पसंद करते आए हैं, और यही वजह है कि आज़ादी और अदालत, ज़ुल्म और फ़साद के सामने नहीं झुकी है,

इमाम हुसैन अ.स. भी उन लोगों में से एक थे जिन्होंने आज़ादी और अदालत को ज़िंदा रखा, मुझे ख़ुशी महसूस हो रही है कि मैं उस दिन उन लोगों के साथ जिनके बलिदान की कोई मिसाल नहीं थी उनके साथ शामिल हुआ हूं, हालांकि इमाम हुसैन अ.स. के इतिहास को 1300 साल से ज़्यादा गुज़र चुके हैं।


अमेरिका के मशहूर इतिहासकार एप्रोनिक वाशिंग्टन से लिखता है कि: इमाम हुसैन अ.स. यज़ीद के सामने झुक कर अपनी जान को बचा सकते थे, लेकिन इमामत की ज़िम्मेदारी इजाज़त नहीं दे रही थी कि आप यज़ीद जैसे इंसान को ख़लीफ़ा मानें, उन्होंने इस्लाम को बनी उमय्या के चंगुल से नजात दिलाने के लिए हर तरह की कठिनाइयों और मुश्किलों को हंसी ख़ुशी क़बूल कर लिया, चिलचिलाती धूप में तपते हुए जंगल में हुसैन ने हमेशा बाक़ी रहने वाली ज़िंदगी ख़रीद ली, ऐ बहादुर, ऐ बहादुरी के अलमदार, ऐ मेरे हुसैन,

इमाम हुसैन अ.स. की विलादत से पहले और विलादत के बाद शहादत तक सारी मख़लूक़ ने आप पर आंसू बहाए हैं और क़यामत तक यह आंसू बहते रहेंगे, ऐसा हादसा किसी के लिए न पेश आया है और न पेश आएगा, हां हज़रत यहया के लिए भी आसमान ने आंसू बहाए थे जैसाकि मजमउल बयान में अल्लामा तबरिसी "فما بکت علیھم السماء والارض" की तफ़सीर में लिखते हैं कि दो लोगों हज़रत यहया और इमाम हुसैन अ.स. के लिए आसमानों ने और फ़रिश्तों ने 40 दिन तक आंसू बहाए हैं, और इसी तफ़सीर में आया है कि दोनों की शहादत से लेकर 40 दिन तक सूरज निकलने और डूबने के समय लाल रहता था।

इमाम हुसैन अ.स. सारी फज़ीलतों और कमालात में सारे इंसानों से बेहतर थे, क्यों आपकी कुन्नियत अबू अब्दिल्लाह है? ज़ाहिर में इस कुन्नियत के अंदर ऐसी ख़ास बात है जो आपके सारे कमाल को एक जगह जमा कर देती है।
अबू अब्दिल्लाह यानी अल्लाह के बंदे का बाप, बाप का ख़ानदान में एक अहम और बुनियादी रोल होता है, वह इस ख़ानदान के लिए मिसाल होता है, बाप एक मुरब्बी होता है, इमाम हुसैन अ.स. भी एक अल्लाह के सारे बंदों के बाप हैं यानी सारे इबादत करने वाले कमाल को हासिल करने के लिए आपके दरवाज़े पर सर झुकाए खड़े रहते हैं, दुनिया के सारे कमाल और सारी फ़ज़ीलतें आपके वजूद में जमा हैं।

 इमाम हुसैन अ.स. की ज़ियारत हज और उमरे का सवाब रखती है, बहुत सारी रिवायतों में आया है कि अगर किसी दिन ऐसा हो कि अल्लाह का घर हाजियों से ख़ाली हो तो उस समय सारे मुसलमानों पर हज वाजिब हो जाता है चाहे मुस्ततीअ हो या न हो, वाजिब हज अदा कर चुका हो या न किया हो, अल्लामा सदूक़ ने यही बात इमाम हुसैन अ.स. ने यही बात इमाम हुसैन अ.स. के बारे में लिखी है कि अगर कभी ऐसा हो कि इमाम हुसैन अ.स. का रौज़ा ज़ायरीन से ख़ाली हो जाए तो सारे शियों पर ज़ियारत पर जाना वाजिब हो जाएगा, इमाम का रौज़ा ज़ायरीन से ख़ाली नहीं रहना चाहिए। (नक़्ल अज़ आयतुल्लाह मरअशी)

 इमाम हुसैन अ.स. अपने वालिद की तरह रात के अंधेरे में अपने कंधों और पीठ पर अनाज की बोरी रख कर फ़क़ीरों के घरों में पहुंचाते थे, यही वजह है कि शहादत के बाद आपकी पीठ पर कुछ निशान ऐसे पाए गए जो न तलवार के थे न नैज़े के बल्कि अनाज की बोरी पीठ पर ले जाने की वजह से वह निशान पड़ गए थे, जब इमाम सज्जाद अ.स. से जब उन निशानों के बारे में पूछा तो आपने फ़रमाया: यह ज़ख़्म ग़रीबों और फ़क़ीरों के घरों तक खाना पहुचाने के हैं, इस हदीस को बहुत से लोगों ने बयान किया है जैसे इब्ने जौज़ी ने तज़्केरतुल ख़वास में और अबू नईम इस्फ़हानी ने हिलयतुल औलिया में,

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