۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
शौकत भारती

हौज़ा / दुनिया भर के अक्लमंदो,इंसाफपसंदो और दबेकुचलो की यही पुकार है कि *अच्छाइयां करने वालों को ईनाम और बुराइयां करने वालों को सज़ा मिलनी चाहिए*!  अक्ल भी यही चाहती है,इंसाफ भी यही चाहता है और दबे कुचले इंसान भी यही चाहते हैं की अच्छे लोगों को ईनाम और बुरे लोगों को सज़ा मिले,यही वजह है की कुरान जो अदल और अमन कायम करने की सब से बड़ी इलाही किताब है उसमें साफ साफ लिखा हुआ हैं की  *जो ज़र्रा बराबर नेकी यानी अच्छे काम करेगा उसे उसकी जज़ा मिलेगी जो ज़र्रा बराबर बदी करेगा यानी बुरे काम करेगा उसे उसकी सज़ा मिलेगी* *कुरान का ये उसूल 1400 साल पहले वाले मुसलमानों के लिए भी है और कयामत तक पैदा होने वालों के लिए भी है,ये उसूल अहलेबैत,अज़वाज और असहाब सबके लिए है कोई अगर इसका इंकार कर दे तो वो खुद गलत है*।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

लेखकः शौकत भारती

कुरान ने जहां गलतियां कर बैठने वालों को तौबा का मौक़ा दिया है,वहां ये भी बता दिया की कयामत के दिन अच्छे और बुरे दोनों तरह के आमाल को यानी कर्मो को एक तराजू में तौला जायेगा और अगर बुराइयों का पल्ला भारी हो गा तो इंसान जहन्नम में जायेगा और अगर अच्छाइयों का पल्ला भारी होगा तो जन्नत में जायेगा। दीन ने ही हमे बताया है की गुनाह भी दो तरह के हैं एक वो जो अल्लाह और उसके बंदे के बीच हैं यानी अल्लाह की तरफ़ से जो नमाज़,रोज़ा वगैरह वाजिब किया है उसको न करना गुनाह है जिसे तौबा करने के बाद अल्लाह माफ़ भी कर सकता है,दूसरा  गुनाह वो है जो इंसान और इंसान के बीच हैं जैसे किसी को कत्ल कर देना,किसी का माल हड़प लेना या किसी भी तरह से किसी को तकलीफ देना ये वो गुनाह है की जब तक वो जिसके साथ जुल्म और ना इंसाफी की गईं है जब तक वो नहीं माफ करेगा अल्लाह भी माफ नहीं करेगा इसका मतलब अगर गुस्से या लालच में किसी के साथ जुल्म ज्यादती या ना इंसाफी की गई है तो उससे किसी भी तरह से माफी मांग कर अपने आप को माफ करवा ले,क्यों की जब तक बंदा नहीं माफ करेगा अल्लाह भी नहीं माफ करे गा। याद रखिए किसी के भी जुर्म को छुपाना या जुर्म करने वालों की वकालत करना या जुर्म करने वालों की तारीफ करना भी जुर्म हैं।

दुनिया की बेहतरीन अदालतें सिर्फ वो है जो मुजरिम चाहे कोई हो,चाहे कितना बड़ा मंसब दार क्यों न हो किसी का साथी और रिश्तेदार क्यों न हो अदालत मुजरिम को मुजरिम और नेक इंसान को नेक बताती है मुजरिम को सज़ा देती है और बेगुनाह को बा इज्जत बरी करती है और बड़े से बड़े मंसब और दौलत वाले मुजरिमों  को सजा दे कर इंसाफ करती है,अगर अदालत ही इंसाफ न करे तो इंसाफ का कत्ल हो जायेगा और समाज में पीस का होना नामुमकिन हो जायेगा। क्यों की इस्लाम के मायने ही पीस के हैं और पीस जस्टिस के बगैर कायम हो ही नही सकती और इस्लाम अदल और अमन कायम करने के लिए आया है  इस लिए उसी इस्लाम के कानून की किताब कुरान में जहां एक तरफ नेक लोगों की जगह जगह तारीफ की गई है चाहे फिरौन की बीबी हजरत आसिया ही क्यों न हो वहीं जो गलत था उसके जुर्म को भी बताया है,कुरान ने किसी मुजरिम को छिपाया नहीं है मिसाल के तौर पर जनाबे यूसुफ के भाइयों के जुर्म को कुरान ने बताया है,जनाबे लूत की बीबी के जुर्म को कुरान ने बताया है,जनाबे नूह के बेटे का जुर्म बताया है,जनाबे मूसा के साथियों के जुर्म बताए हैं की जब जनाबे मूसा तौरात लेने के लिए गए तो वो सब के सब पलट गए,इतना ही नहीं सूरए तहरीम में रसूल अल्लाह की बीवियों की रसूल अल्लाह के खिलाफ की गई साजिश भी बेनकाब कर के उनकी तंबीह भी की गई है ये है कुरान का उसूल याद रखिए कुरान ही मुसलमानों का दस्तूरुल अमल है यही दीन है की हक को हक़ कहो सही को सही और गलत को गलत कहो याद रखिए किसी मुल्ला के लिखी हुई कुरान और हदीस मुखालिफ किताबे और फतवे या तकरीरें दीन नहीं है दीन की मौत है।

खुदा उन लोगों की कब्रों में आग भरे जिन्होंने खानदाने रसूल पर जुल्म के पहाड़ टूटते हुए देखे और खामोश रहे, खुदा उन हुकूमत से चिपके हुए सभी मुफ्तियों,काजियों और मुल्लाओं की कब्रों में भी आग भर दे जिन्होंने जालिम हुक्मूरानों के जुल्म पर सिर्फ इस लिए परदे डाले ताकि उनको हुकूमत की खुशनूदी और हुकूमत से फायदे उन्हे मिलते रहें और खुदा गारत करे आज के ज़माने के भी उन सभी मुल्लाओं और मुफ्तियों को जो जालिम बनी उमय्या और बनी अब्बास की हुकूमतों के खत्म हो जाने के बाद आज के माहौल में भी खानदाने रसूल पर जुल्म करने वाले मुजरिमों को मुशाजेरते सहाबा न बयान करने की बात कर के छिपाते हैं,जुल्म और जुर्म पर कफफे लिसान के पहरे लगाए हुए हैं,जालिमों को खताए इजतेहादी की आड़ में बचाने का काम में मारूफ हैं और बड़े बड़े मुजरिमों और जालिमों को सहाबी कह कर सहाबियत जैसे मुकद्दस लफ़्ज़ का कत्ल कर रहे हैं, लफ्जे सहाबा का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं, इस्लाम में सबसे बड़ी गंदगी *सहाबा* लफ़्ज़ का गलत इस्तेमाल कर के ही डाली गई है,1400 साल पहले के मुल्लाओं और मुफ्तियों ने सबसे पहले सहाबा लफ़्ज़ का गलत इस्तेमाल किया और यजीद जैसे जालिम,फासिक और फजिर को तख्ते खिलाफत तक पहुंचा दिया,जो काम हुकूमत से चिपके हुए 1400 साल पुराने मुल्ला मुफ्ती कर चुके हैं आज के मुल्ला मुफ्ती भी उन्ही की  पैरवी कर रहे हैं और आज भी गलत लोगों के साथ सहाबा का लफ़्ज़ इस्तेमाल कर रहे है। जबकि मुजरिमों को और जालिमों को सहाबा कहना खुद एक बहुत बड़ा जुर्म है।

याद रखिए सही दीन समझने के लिए सबसे बड़ी जरूरत इस बात की है की *साहबा* लफ्ज़ की डिफिनेशन को खूब गैर फिक्र कर के सही ढंग से समझ लिया जाए,इस मुकद्दस लफ़्ज़ को सिर्फ और सिर्फ रसूल अल्लाह के उन साथीयों के लिए ही इस्तेमाल किया जाए जिसने हालते ईमान में रसूल अल्लाह को देखा और अपनी आखरी सांस तक अल्लाह और रसूल की इताअत करते रहे,जो लोग रसूल अल्लाह के सामने चन्द दिनों के लिए ठीक थे और रसूल के सामने ही बदल गए या रसूल अल्लाह के बाद बदल गए या रसूल अल्लाह के विसाल के बाद अल्लाह और रसूल के नाफरमान हो गए ऐसे रसूल अल्लाह के साथी किसी भी हाल में जन्नती सहाबी नहीं हो सकते,सहाबी बनने के लिए रसूल अल्लाह के साथियों को अपनी आखरी सांस तक अल्लाह और रसूल की इताअत करना जरूरी था, याद रखिए जिसने रसूल अल्लाह के किसी फैसले को उनकी जिंदगी में या उनके विसाल के बाद नही माना या रसूल अल्लाह के फैसले के खिलाफ अपने दिल में तंगी महसूस की रसूल के उन सभी साथियों के सारे नेक आमाल हफ्त हो जाते हैं ये मेरा नहीं कुरान का फैसला है,रसूल और आले रसूल के साथ हल्की से भी ज्यादती,हत्ता की ऊंची आवाज़ में अगर रसूल से बात भी की तो उसके सारे नेक आमाल हफ्त हो गए। जब्त और हफ्त में फ़र्क है स्मगलिंग का  कोई माल जब पकड़ लिया जाता है तो वो जब्त कर लिया जाता है लेकिन जब चरस गांजा या नशे वगैरा का सामान पकड़ा जाता है तो उसे जला दिया जाता है इसे कहते हैं हफ्त। जिसने भी रसूल अल्लाह को उनकी जिंदगी में या बादे रसूल आले रसूल को उनकी जिंदगी में अजीयत दी तो उसने भी रसूल अल्लाह की मुखालिफत की और वो रसूल अल्लाह के फैसले के खिलाफ खड़ा हो गया और ऐसे शख्स के सारे नेक आमाल हफ्त्त हो गए वो चाहे अपने आप को रसूल का कितना ही करीबी क्यों न समझता हो इस लिए सहाबा सिर्फ और सिर्फ वही है जिसने रसूल अल्लाह के सामने और रसूल अल्लाह के बाद रसूल अल्लाह की इताअत की।

कोई कैसे सच्चा सहाबी और उम्मती हो सकता है जो नमाज़ में मोहम्मद और आले मोहम्मद पर दुरूद भेजता हो और नमाज़ के बाहर मोहम्मद और आले मोहम्मद को अजीयत दे और उनकी इताअत न करे,मेरे हिसाब से सहाबी सिर्फ और सिर्फ वो है जिसने हालते ईमान में रसूल अल्लाह को देखा और आखरी सांस तक रसूल और आले रसूल की इताअत करता रहा रसूल और आले रसूल का गुस्ताख सहाबी हो ही नही सकता,जो लोग ये कहते है की उन्हों ने रसूल अल्लाह को देखा उनके साथ रहे अब वो जो चाहे करें उनकी पिछली अगली गलतियां सब माफ हैं, उनके आपसी मुशाजेरात पर सुकूत अख्तियार करो, खुदा की कसम ऐसे लोग ही कुरान हदीस और अक्ल के दुश्मन हैं और यही लोग सही इस्लाम समझने के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा हैं और इनकी वजह से ही उम्मत में इत्तेहाद नहीं हो पा रहा है।


अक्ल मंद इंसान जरूर से जरूर हक और बातिल झूठ और सच जालिम और मजलूम का फर्क जानना चाहता है और जानने के बाद बताना भी चाहता है और अक्ल के दुश्मन तो सिर्फ अंध भक्त होते हैं वो खुद अंध भक्त होते हैं और अंध भक्त ही पैदा करते है और 1400 सालों से *सहाबा* लफ़्ज़ के नाम पर अंध भक्त बनने और बनाने का खेल जारी है और यही इत्तेहाद के लिए सबसे बड़ा कैंसर है।
नोटः लेखक के अपने व्यक्ति गत विचार है हौजा न्यूज का लेखक के विचारो से सहमत होना आवश्यक नही है।


 

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