हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,मुख़तलिफ़ ज़ियारतों में हम जो इल्तेजा का अंदाज़ देखते हैं जिनमें कुछ की सनद भी बहुत मोतबर है, उनकी बहुत अहमियत है। इमाम महदी अलैहिस्सलाम से इल्तेजा, आपकी ओर ध्यान, आपसे लगाव। इस, लगाव से मुराद यह नहीं है कि कोई यह कहे कि मैं तो इमाम को देखता हूं,
आपकी मुबारक आवाज़ को सुनता हूं। हरगिज़ नहीं, ऐसा नहीं होता। इस तरह की बातें जो कही जाती हैं, उनमें ज़्यादातर या तो झूठ पर आधारित होती हैं यह वह शख़्स झूठ नहीं बोल रहा होता है बल्कि अपने ख़यालात व तसव्वुर के असर में इस तरह की बातें शुरू कर देता है।
हमने ऐसे कुछ लोगों को देखा है जो झूठ बोलने वाले इंसान नहीं थे बल्कि अपनी ख़याली बातों के असर में थे। अपनी उन ख़याली बातों को लोगों के सामने हक़ीक़त के तौर पर पेश करते थे। इन बातों के असर में नहीं आना चाहिए। सही रास्ता तर्क और दलील का है।
इमाम से इल्तेजा और राज़-व-न्याज़ का जहाँ तक सवाल है तो यह अमल, इंसान दूर से अंजाम देता है। इमाम अलैहिस्सलाम उसे सुनते हैं और इल्तेजा को क़ुबूल भी करते हैं। हम किसी हस्ती से अगर दूर से ही अपना कुछ हाले दिल बयान करते हैं तो इसमें कोई हरज नहीं है।
अल्लाह तआला, सलाम करने वालों और पैग़ाम देने वालों का पैग़ाम और सलाम हज़रत तक पहुंचाता है। यह इलतेजा और यह रूहानी लगाव अच्छा व ज़रूरी काम हैं।
इमाम ख़ामेनेई,